वाराणसी | उत्तर प्रदेश
वाराणसी के ज्ञानवापी मामले पर की सुनवाई का फैसला आ चूका है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने अपनी रिपोर्ट जिला न्यायाधीश को सौंप दी है। वहीँ हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने सौंपी गयी रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दी है।
GPR सर्वे पर ASI ने कहा है कि यहां पर एक बड़ा भव्य हिन्दू मंदिर था और वर्तमान ढांचे या मस्जिद के पहले यहाँ एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था।
रिपोर्ट में क्या है ?
ASI की सर्वे रिपोर्ट में उक्त स्थान पर मंदिर होने के 32 से अधिक प्रमाण मिलने की बात कही गई है। वहीँ बताया गया है कि वहां 32 ऐसे शिलालेख मिले हैं जो पुराने हिंदू मंदिरों के हैं। वहीँ ASI की रिपोर्ट कहती है कि हिंदू मंदिर के खंभों को थोड़ा बहुत बदलकर या यूँ कहें की छेड़छाड़ कर एक नए ढांचे के लिए इस्तेमाल किया गया था।
इस रिपोर्ट के आते ही विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता आलोक कुमार ने कहा कि ज्ञानवापी संरचना से ASI द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि मस्जिद का निर्माण एक भव्य मंदिर को ध्वस्त करने के बाद ही किया गया था।
आलोक कुमार ने कहा कि वजूखाने में मिले शिवलिंग से कोई संदेह नहीं रह जाता है कि संरचना में मस्जिद का लक्षण नहीं है। उन्होंने कहा कि संरचना में मिले शिलालेखों में जनार्दन, रुद्र और उमेश्वर जैसे नामों की खोज इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि यह एक मंदिर था।
आलोक कुमार ने यह भी कहा कि ASI द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्य और दिए गए निष्कर्ष यह साबित करते हैं कि इस पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में था और वर्तमान में यह एक हिंदू मंदिर के रूप में है।
जानें आलोक कुमार ने सरकार से क्या मांग की है ?
विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता श्री आलोक कुमार ने आज कहा कि ज्ञानवापी संरचना से एएसआई द्वारा एकत्र किए गए सबूत इस बात की पुष्टि करते हैं कि मस्जिद का निर्माण एक भव्य मंदिर को ध्वस्त करने के बाद किया गया था। मंदिर की संरचना का एक हिस्सा, विशेष रूप से पश्चिमी दीवार हिंदू मंदिर का शेष हिस्सा है। रिपोर्ट यह भी साबित करती है कि मस्जिद की अवधि बढ़ाने और सहन के निर्माण में संशोधनों के साथ स्तंभों और स्तंभों सहित पहले से मौजूद मंदिर के कुछ हिस्सों का पुन: उपयोग किया गया था।
जिसे वज़ुखाना कहा जाता था उसमें मौजूद शिवलिंग से इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता है कि इस संरचना में मस्जिद का चरित्र नहीं है। उन्होंने कहा कि संरचना में पाए गए शिलालेखों में जनार्दन, रुद्र और उमेश्वर सहित नामों की खोज इसके मंदिर होने का स्पष्ट प्रमाण है।
श्री आलोक कुमार ने यह भी कहा कि एकत्र किए गए साक्ष्य और एएसआई द्वारा प्रदान किए गए निष्कर्ष यह साबित करते हैं कि इस पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में था और वर्तमान में एक हिंदू मंदिर है। इस प्रकार, पूजा स्थल अधिनियम, 1991 की धारा 4 के अनुसार भी, संरचना को हिंदू मंदिर घोषित किया जाना चाहिए
इसलिए विश्व हिंदू परिषद (VHP) सुझाव देती है कि:
- हिंदुओं को तथाकथित वज़ुखाना क्षेत्र में पाए जाने वाले शिवलिंग की सेवा पूजा करने की अनुमति दी जाए, और
- इंतेज़ामिया समिति से ज्ञानवापी मस्जिद को सम्मानपूर्वक किसी अन्य उपयुक्त स्थान पर स्थानांतरित करने और काशी विश्वनाथ के मूल स्थल को हिंदू समाज को सौंपने के लिए सहमत होने का आह्वान किया।
विहिप का मानना है कि यह नेक कार्य भारत के दो प्रमुख समुदायों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
Press statement:
HANDOVER THE GYANVAPI STRUCTURE TO HINDUS: ALOK KUMAR
New Delhi. Jan, 27,2024. The ASI, an official and expert body, has submitted its report to the District Judge hearing the Gyanvapi matter in Kashi. The Int’l working president of Vishva Hindu Parishad and… pic.twitter.com/vGNrTNvrSK
— Vishva Hindu Parishad -VHP (@VHPDigital) January 27, 2024