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महिला औधोगिक प्रशिक्षण संस्थान राँची के प्रांगण में दिव्यम ड्रीम फाऊंडेशन के द्वारा आयोजित “एक पेड़ मां के नाम” कार्यक्रम।

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रांची :  दिव्यम ड्रीम फाऊंडेशन झारखंड सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त स्वयंसेवी संस्था है,जो सामाजिक उत्थान के लिए कार्य करती हैं। दिव्यम ड्रीम फाउंडेशन के द्वारा “एक पेड़ मां के नाम” मुहिम की शुरुआत महिला आईआईटी मैदान हेहल,रांची से किया जा रहा हैं ,जहाँ सैकड़ों पौधा लगाया जाएगा औऱ पूरे राँची में 10000 पौधा लगाने का संकल्प लिया गया है। इस कार्यक्रम में बच्चें भी अपनी माँ के साथ या फ़ोटो के साथ शामिल हुए उनके पास तख्ती पर माँ का नाम लिखा गया,चींटियों से बचाने के लिए चुना से घेरा गया और वे पौधे की देखभाल की जिम्मेदारी भी लिए ।

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इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ इन बी चौधरी, निदेशक केन्द्रीय तशर संस्थान नगड़ी, dr जे पी पांडेय, वैज्ञानिक, सूरज प्रकाश कुमार सहायक प्रशासक राँची नगर निगम, सौरभ केशरी सहायक अभियंता, स्नेहलता प्रिंसिपल आ. “टी. आई. ,कुमुद झा अध्यक्ष दिव्यम ड्रीम फाउंडेशन, भावेश सिंह, जितेंद्र कुमार, श्रीनिवास, रवि मेहता नेहा सिंह, अंजलि ,राजकुमार, बाबू सोना एवं सभी छात्राएं उपस्थित रहीं। इत्यादि उपस्थित रहे।
निदेशक डॉ एन बी चौधरी ने कहा

इस पहल का मुख्य उद्देश्य स्थानीय आदिवासी आबादी को तसर आधारित आजीविका प्रदान करने के साथ-साथ हरियाली और हरित आवरण को बढ़ाना, मिट्टी के कटाव को कम करना, कार्बन पृथक्करण को बढ़ाना और प्रदूषण को कम करना है। टर्मिनलिया अर्जुन के विभिन्न गुण इसे इस पहल के लिए आदर्श बनाते हैं:

• टर्मिनलिया अर्जुन एक विशाल वृक्ष के रूप में विकसित होता है और यह पानी को पसंद करता है, लेकिन यह शुष्क मिट्टी में भी जीवित रह सकता है। यह पेड़ जल संकट और बंजर भूमि में भी पनपता है, जिससे इसकी जीवित रहने की दर काफी अच्छी है।

दिव्यम

• अर्जुन उन पेड़ों में से एक है जो सबसे अधिक ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं और इसे जल शोधन के लिए भी जाना जाता है। यह वायु शुद्धिकरण में भी सहायक होता है, जिससे श्वसन संबंधी समस्याएं कम होती हैं और पर्यावरण में सुधार होता है।

• यह पेड़ आमतौर पर सदाबहार होता है और इसके नए पत्ते गर्म मौसम (फरवरी से अप्रैल) में आते हैं, जो कि पत्तों के झड़ने से पहले होते हैं। इससे पूरे साल पर्यावरण को हरा-भरा रखने में मदद मिलती है।

• यह पेड़ भारत में एक महत्वपूर्ण औषधीय पेड़ है, जो जैविक गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए जाना जाता है। इसकी छाल में एंटीऑक्सीडेटिव और एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं और यह प्राचीन काल से हृदय रोगों की दवा के रूप में प्रसिद्ध है।

• अपनी विशिष्टता के कारण, अर्जुन के पेड़ का उपयोग लैंडस्केपिंग में भी किया जाता है। इसके गुणों के आधार पर, इसे भारत के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सड़कों के किनारे पौधारोपण के लिए अनुशंसित किया जाता है।
यह उल्लेख करना आवश्यक है कि पौधारोपण के 3-4 वर्षों के बाद, सड़कों के किनारे लगाए गए टर्मिनलिया अर्जुन के पेड़ों की पत्तियों का उपयोग तसर रेशमकीट (एंथरेआ मायलिटा) के पालन के लिए किया जा सकता है। इससे न केवल स्थानीय आदिवासी जनसंख्या को आजीविका प्राप्त होगी, बल्कि देश में तसर कच्चे रेशम के उत्पादन में भी वृद्धि होगी।

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आपके विशेष हस्तक्षेप की आवश्यकता है ताकि इस सहयोगात्मक दृष्टिकोण को सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया जा सके और राज्य के सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित आदिवासी तसर किसानों को स्थायी आजीविका प्रदान की जा सके। इससे न केवल पर्यावरण में सुधार होगा, बल्कि आर्थिक और सामाजिक स्तर पर भी सकारात्मक बदलाव आएंगे, जिससे आदिवासी समुदायों की समृद्धि और विकास को प्रोत्साहन मिलेगा।
इस प्रकार, यह पहल तसर उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय जनसंख्या के उत्थान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी।कुमुद झा ने कहा कि अर्जुन की पौधे की विशेषता को देखते हुए सभी लोगों को लगाने की आग्रह की गई।
भवदीय
कुमुद झा

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