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“3.5 लाख में बनिए डॉक्टर! 30 मिनट में बनिए इंजीनियर! मगर फर्जीवाड़े की ये दुकान अब बंद हो चुकी है!”
मानगो में चला ‘डॉक्टर-इंजीनियर’ बनाने वाला फर्जीवाड़ा, एसडीओ ने किया खुलासा
जमशेदपुर के मानगो में चल रहा था एक बड़ा फर्जी प्रमाण पत्र रैकेट
ओसम रिसोर्स साइबर कैफे में एसडीओ शताब्दी मजूमदार की छापेमारी में खुला चौंकाने वाला सच
- फर्जी बीटेक, एमबीबीएस, मैट्रिक, इंटर, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस
- एडिटिंग सॉफ्टवेयर से बनाए जाते थे नकली सर्टिफिकेट
- 3 साल से चल रहा था यह फर्जीवाड़ा
- कई बेरोजगारों से ठगे गए लाखों रुपए
वीडियो नीचे देखें –
जमशेदपुर, मानगो: जमशेदपुर के मानगो स्थित जवाहरनगर रोड नंबर 6 में चल रहे “ओसम रिसोर्स साइबर कैफे” में फर्जी प्रमाण पत्र बनाने के एक बड़े रैकेट का भंडाफोड़ हुआ है। इस फर्जीवाड़े का खुलासा एसडीओ शताब्दी मजूमदार द्वारा की गई छापेमारी के दौरान हुआ, जहां से लगभग डेढ़ सौ फर्जी दस्तावेज बरामद किए गए।

कैसे चलता था फर्जीवाड़ा?
कैफे संचालक मोहम्मद इलियास तीन साल से यह साइबर कैफे चला रहा था। इलियास मात्र 30 मिनट में अनपढ़ को ‘डॉक्टर’ और ‘इंजीनियर’ बना देता था—वह भी 3.50 लाख रुपये लेकर।
जांच में सामने आया कि इलियास बायोडाटा बनाते समय असली प्रमाण पत्र स्कैन कर लेता था और फिर एडिटिंग सॉफ्टवेयर की मदद से उन्हें नए नाम से बनाकर बेचता था।
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फर्जी दस्तावेज़ और उनकी कीमतें:
- बीटेक / एमबीबीएस – ₹3,50,000
- डिप्लोमा – ₹80,000
- आईटीआई – ₹60,000
- ड्राइविंग लाइसेंस – ₹2,500
- आधार कार्ड – ₹3,000
- मतदाता पहचान पत्र (Voter ID) – ₹2,000
- मैट्रिक (10वीं) – ₹15,000
- इंटरमीडिएट (12वीं) – ₹17,000
- बी.ए. (BA) – ₹25,000
- एम.ए. (MA) – ₹25,000
खाड़ी देश में नौकरी का सपना बना सबूत
फर्जीवाड़े का पर्दाफाश तब हुआ जब एक व्यक्ति ने खाड़ी देश में नौकरी के लिए एमबीबीएस सर्टिफिकेट बनवाने हेतु इलियास को एक लाख रुपये एडवांस दिए। न तो सर्टिफिकेट मिला, न ही पैसा वापस। उस व्यक्ति ने डीसी अनन्य मित्तल से शिकायत की, जिसके बाद छापेमारी का आदेश दिया गया।
क्या मिला छापेमारी में?
- 150 से अधिक फर्जी दस्तावेज
- आधार, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आईडी
- कंप्यूटर से मिले एडिटिंग सॉफ्टवेयर और व्हाट्सएप चैटिंग
- डिजिटल लेनदेन का रिकॉर्ड
एसडीओ शताब्दी मजूमदार ने बताया कि प्रारंभिक जांच में एडिटिंग और ऑनलाइन भुगतान के ठोस सबूत मिले हैं। विस्तृत जांच जारी है।
समीक्षा: फर्जीवाड़े की जड़ें और हमारी लापरवाही
इस घटना ने एक बार फिर दिखाया है कि डिजिटल सुविधा और सरकारी दस्तावेजों की मांग का लाभ उठाकर कुछ लोग सिस्टम को ही मजाक बना देते हैं। सवाल यह भी उठता है कि तीन साल तक ये फर्जीवाड़ा कैसे चलता रहा और स्थानीय प्रशासन को भनक तक क्यों नहीं लगी?
सरकारी सिस्टम में दस्तावेजों की सत्यता की जांच के लिए कोई एकीकृत, मजबूत प्रक्रिया नहीं होने से इस तरह के मामले पनपते हैं। इतना ही नहीं, जब समाज में “सर्टिफिकेट” को योग्यता का पर्याय मान लिया जाए, तो फर्जीवाड़ा फलता-फूलता है।
इलियास जैसे लोग सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि उन हजारों लोगों की संभावनाओं से भी खिलवाड़ करते हैं, जो मेहनत करके डॉक्टर-इंजीनियर बनना चाहते हैं।
निष्कर्ष:
यह केवल एक साइबर कैफे का मामला नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की कमजोरी को उजागर करता है। अब यह जरूरी है कि प्रशासन न केवल इस कैफे को सील करे, बल्कि ऐसे अन्य स्थानों की गहन जांच कर पूरे नेटवर्क का पर्दाफाश करे। साथ ही जनता को भी जागरूक करने की ज़रूरत है कि वे ऐसे शॉर्टकट से बचें और फर्जीवाड़े की सूचना तत्काल प्रशासन को दें।
सवाल ये नहीं कि कितने बने डॉक्टर, सवाल ये है कि सिस्टम कब तक सोता रहेगा?
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