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5000 से 1000 वर्ष पहले: सोने की कीमत और समाज में उसकी महत्ता

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Business: सोना मानव इतिहास में हमेशा से एक महत्वपूर्ण धातु रहा है। प्राचीन काल में यह न केवल धन और शक्ति का प्रतीक था, बल्कि सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं में भी इसकी अहम भूमिका थी। 5000 से 1000 वर्ष पूर्व के समय में सोने का महत्व और उसकी कीमत आज की तुलना में बिल्कुल अलग थी।

सोने की महत्ता: सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण

1. समृद्धि और सत्ता का प्रतीक

  • सोना राजाओं, साम्राज्यों और कुलीन वर्ग का प्रमुख प्रतीक था।
  • शाही मुकुट, आभूषण और हथियारों पर सोने का प्रयोग किया जाता था।
  • प्राचीन मिस्र में फिरौन की कब्रें और वस्तुएं सोने से जड़ी होती थीं, जो उनकी समृद्धि और धार्मिक मान्यताओं को दर्शाती थीं।
  • भारतीय राजघराने मंदिरों और महलों को सोने से सजाते थे।

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2. धार्मिक महत्ता

  • हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और अन्य प्राचीन धर्मों में सोना पवित्र माना जाता था।
  • सोने का उपयोग देवी-देवताओं की मूर्तियों, मंदिरों और धार्मिक अनुष्ठानों में होता था।
  • मिस्र में सोने को “सूर्य देवता रा” का प्रतीक माना जाता था।

3. लेन-देन और व्यापार का माध्यम

  • सोने के सिक्के प्राचीन सभ्यताओं में वैश्विक व्यापार और आर्थिक लेन-देन का मुख्य साधन थे।
  • रोमन साम्राज्य, मौर्य साम्राज्य और गुप्त काल में सोने के सिक्के चलन में थे।
  • भारत में “सुवर्ण” और “हिरण्य” नामक सोने के सिक्के व्यापार और कर संग्रह का मुख्य आधार थे।

4. कला और आभूषण

  • सोना कला और आभूषण निर्माण का प्रमुख स्रोत था।
  • प्राचीन सभ्यताओं ने सोने का उपयोग गहनों, मूर्तियों और धार्मिक कलाकृतियों को बनाने में किया।

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5000 से 1000 वर्ष पूर्व सोने की कीमत

उस समय सोने की कीमत वस्तु विनिमय प्रणाली और श्रम पर निर्भर करती थी। मुद्रा के स्थान पर वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान होता था।

1. प्राचीन मिस्र (3000-1000 ईसा पूर्व)

  • मिस्र में सोना “देवताओं की धातु” माना जाता था।
  • सोने की कीमत उसकी दुर्लभता और खनन में लगने वाले श्रम के अनुसार तय होती थी।

2. सिंधु घाटी सभ्यता (3000-1500 ईसा पूर्व)

  • खुदाई में मिले सोने के आभूषण यह दिखाते हैं कि सोना यहाँ सामाजिक प्रतिष्ठा और सौंदर्य का प्रतीक था।
  • इसकी कीमत श्रम और स्थानीय संसाधनों पर निर्भर थी।

3. प्राचीन भारत (1000 ईसा पूर्व – 1000 ईस्वी)

  • वैदिक काल में सोने को “हिरण्य” के रूप में जाना जाता था।
  • मौर्य काल में सोने के सिक्के “सुवर्ण” और गुप्त काल में “दीनार” प्रचलन में थे।
  • गुप्त साम्राज्य के समय सोने का अत्यधिक महत्व था।

4. रोमन साम्राज्य (1000 वर्ष पूर्व)

  • सोने का उपयोग व्यापार, कर संग्रह और सिक्कों के निर्माण में होता था।
  • सोने की कीमत अन्य वस्तुओं के विनिमय से तय होती थी।

सोने का स्रोत और व्यापार

  • सोना मुख्य रूप से नदियों, खानों और अफ्रीका, एशिया और यूरोप के विभिन्न क्षेत्रों से प्राप्त होता था।
  • भारत, मिस्र, नूबिया और दक्षिण अमेरिका के साम्राज्य सोने के प्रमुख भंडार थे।
  • रेशम मार्ग (Silk Road) और समुद्री व्यापार मार्गों के जरिए सोने का आदान-प्रदान होता था।

समाज में सोने का प्रभाव

  • सोना मुख्य रूप से राजाओं, पुजारियों और उच्च वर्ग के पास सीमित था।
  • आम जनता के लिए सोना दुर्लभ था और यह केवल धनी वर्ग का हिस्सा था।

निष्कर्ष

5000 से 1000 वर्ष पहले सोना न केवल एक मूल्यवान धातु था, बल्कि यह समाज, संस्कृति और धर्म का अभिन्न हिस्सा था। उस समय सोने की कीमत उसकी उपलब्धता, श्रम और संसाधनों पर निर्भर करती थी। प्राचीन सभ्यताओं में सोने की व्यापक उपयोगिता और इसकी महत्ता ने इसे “शाश्वत मूल्य” वाली धातु बना दिया। आज भी सोना समाज में उसी प्रतिष्ठा के साथ मौजूद है।

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