स्वर्ग जाना भला कौन नहीं चाहता? लेकिन समस्या तो यह है कि स्वर्ग या नर्क जाने का फैसला तो जीवित शरीर को त्याग कर, मृत्यु हो जाने के बाद होता है। फिर जीवित अवस्था में स्वर्ग कैसे जाया जा सकता है?
लेकिन आपको बता दें आज से हजारों साल पहले एक महाज्ञानी संत ने स्वर्ग जाने का मार्ग ढूंढ लिया था। जी हां दोस्तों आइए आज हम आपको स्वर्ग जाने वाले उस मार्ग का रहस्य बताते हैं।
यह बिल्कुल सच्ची घटना है, बात आज से हजारों साल पहले की है, भारतवर्ष के एक राज्य में नन्द नाम का एक राजा हुआ करता था। राजा नन्द अपना अधिक समय भोग-विलास में ही व्यतीत करता था। प्रजा की भलाई के लिए उसने कोई काम नहीं किया था। राज्य के मंत्री और अन्य अधिकारीगण भी प्रजा को तंग करते और लूटते थे। राज्य में प्रजा की हालत दिनोंदिन खराब होती जा रही थी।
इन्हीं हालातों में राजपाठ का काम चल रहा था। फिर एक बार इस राज्य कपिलवस्तु में भगवान बुद्ध का आगमन होता है। तो लोग उनके पास पहुंचने लगे और अपने तथा राज्य के हालातों से अवगत कराया। प्रजा के कष्टों का हाल सुन भगवान बुद्ध को बहुत ही दुःख हुआ। उन्होंने उसी समय नन्द से मिलने का मन बनाया और पहुंच गए राज दरबार।
राजा नन्द उस समय अपने राज दरबार में नृत्य-संगीत का आनंद ले रहे थे। महात्मा बुद्ध को देखते ही एक दरबारी ने उन्हें अतिथिगृह में ठहराया और कहा कि राजा नन्द शीघ्र ही आपसे मिलने आएंगे। तब तक आप यहां विश्राम करें। इतना कहकर वह दरबारी वहां से चला गया।
महात्मा बुद्ध अतिथि गृह में बहुत देर तक प्रतीक्षा करते रहे लेकिन राजा नन्द अपने विलासिता समय में इतने व्यस्त हो गए कि उन्हें ध्यान ही न रहा कि उनका कोई इंतजार भी कर रहा है। फिर वे राजा नन्द से बिना मिले ही लौट आए।
जब राज दरबार खाली हो गया और सभी अपने शयनकक्ष में जा चुके थे और राजा नन्द भी अपने कक्ष की ओर बढ़ ही रहे थे सहसा उन्हें याद आया की अतिथि गृह में उनसे मिलने उनका भाई आया है।तबतक बहुत देर हो चुकी थी। भगवान बुद्ध वहां नहीं थे। वहां उपस्थित प्रहरी ने बताया वो बहुत समय पहले ही यहां से जा चुके हैं। यह सुन राजा नन्द को दुख हुआ। उसने महात्मा बुद्ध से इस बात के लिए माफी मांगने का निश्चय किया। राजा नन्द भगवान बुद्ध के सौतेले भाई थे।
राजा नन्द महात्मा बुद्ध से मिलने के लिए तैयार हो गए। अब जाने से पहले उन्होंने सोचा एक बार अपनी रानी के पास से होकर आता हूँ, फिर चलूँगा महात्मा बुद्धदेव से मिलने। वह रानी के कक्ष में गया तो रानी उस समय हाथों पर सुगंधित लेप लगा रही थी। राजा नन्द ने पिछली घटना का जिक्र रानी से किया और बताया कि वह महात्मा बुद्ध से मिलने उनके पास जा रहे हैं। इतना सुनने के बाद रानी ने
मनमाने ढंग से कहा जाइए मगर ध्यान रहे मेरे हाथों का लेप सूखने से पहले ही लौट आइयेगा।
राजा नन्द भगवान बुद्ध के पास पहुंचते ही उनसे बीते दिन में हुई गलती के लिए क्षमा मांगी। तथागत भगवान बुद्ध ने यह देख राजा नन्द से कहा- भाई यदि सच में तुम्हें कल की घटना से दुःख हुआ है तो आज तुम अपना सारा समय मुझे दे दो।
राजा नन्द का ध्यान यहां कम और अपनी रानी की कही बातें “मेरे हाथों का लेप सूखने से पहले लौट आइएगा” पर अधिक था।
लेकिन इतने वर्षों बाद भ्रातृ प्रेम की वजह से भगवान बुद्ध को आज का समय देने की हामी भर दी। भगवान बुद्ध राजा नन्द के मन में चल रहे कोलाहल को समझ रहे थे। उन्होंने स्नेह पूर्वक राजा नन्द से कहा- नन्द, यदि तुम आजीवन सुखमय जीवन व्यतीत करना चाहते हो तो जाओ, आज मैं तुम्हें स्वर्ग लिए चलता हूं।
इतना कहना ही था कि उसी क्षण वहां का सारा दृश्य बदल गया। आश्रम की जगह वहां प्रकाशमान मार्ग दिखाई दे रहा था। अब वहां केवल राजा नन्द और भगवान बुद्ध ही दिख रहे थे।
बुद्ध बोले – नन्द यही वह मार्ग है जो तुम्हें स्वर्ग की ओर लेकर जाएगा। आओ हम इस मार्ग पर आगे बढ़ते हैं। नन्द बिना कुछ कहे बुद्ध के साथ बढ़ने लगे। राजा नन्द उस मार्ग के अगल-बगल देखते हैं एक से बढ़कर एक सुंदर महल, उनमें अदभुत सुंदर उपवन, वहां नृत्य करती अद्वितीय सुंदर अप्सराएं, यह सब देख राजा नन्द को अपना राजमहल फीका लगने लगा। स्वर्ग का ऐसा मनमोहक दृश्य देख वह अंदर ही अंदर छटपटाहट से जूझने लगा। यह सुख प्राप्त करने के लिए जैसे बेचैन हो रहा था।
भगवान बुद्ध से यह सब छुपा न रहा और उन्होंने कहा- नन्द तुम इस अनंत सुख को पाना चाहते हो ना।
राजा नन्द ने बिना देर किए कहा हाँ मैं यह पाना चाहता हूं।
इसपर बुद्ध बोले – किन्तु इस मार्ग पर अभी मैं तुम्हें लाया हूँ। वह भी मात्र कुछ पलों के लिए। यदि तुम यह सब पाना ही चाहते हो तो इस मार्ग पर आने के लिए तुम्हें केवल एक कठिन तप करना होगा। राजा नन्द स्वर्ग पाने के लिए बेचैन हो चुका था इसलिए वह किसी भी कार्य को करने के लिए तैयार हो गया। भगवान बुद्ध ने राजा नन्द को वह कठिन तप बता दिया जिससे स्वर्ग जाने का मार्ग खुलता था।
अब क्या था राजा नन्द सबकुछ भूलकर वह कठिन तप करना आरम्भ कर देते हैं।
दिन बीतने लगे। स्वर्ग का सुख पाने के लिए वह इतना अधीर था की उसका मन किसी भी बात में लगता ही न था। बुद्ध शरण में आये लोगों को उपदेश देते थे तब राजा नन्द उन उपदेशों को ध्यान से सुना करते थे।
कुछ महीनों के बाद राजा नन्द को धीरे-धीरे इस तपस्या में आनंद की अनुभूति मिलने लगी। उसने महसूस किया मानो उसका ज्ञान रूपी नेत्र खुल चुका है। वह अपने आसपास ही स्वर्ग का अनुभव प्राप्त कर रहा था। इससे पहले उसने धरती और इसकी प्रकृति को इस रूप में कभी देखा ही नहीं था। यह सब देख वह आनंदित हो रहा था।
तभी भगवान बुद्ध नन्द के पास आये और बड़े स्नेह से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा- राजा नंद तुम्हारी तपस्या पूरी हो गई अब तुम स्वर्ग का सुख पाने के लिए स्वर्ग के मार्ग पर जा सकते हो। इतना सुनते ही नन्द हाथ जोड़कर भगवान बुद्ध से कहने लगा- हे तथागत ज्ञानरूपी स्वर्ग प्राप्त करने के उपरांत भोग विलास भरे उस स्वर्ग में मेरी स्वर्ग जाने की इच्छा ही समाप्त हो गई है। मुझे क्षमा करें, अब मुझे स्वर्ग सुख नहीं चाहिए। मेरे बंद नेत्र खुल चुके हैं, मुझे सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है।
भगवान बुद्ध मुस्कुराये और राजा नन्द को आशीर्वाद देते हुए आगे बढ़ गए।
दोस्तों सच्चा स्वर्ग हमारा स्वयं का सच्चा ज्ञान ही है।
यह कहानी आपको कैसी लगी हमें कमेंट में अवश्य बताइयेगा।
धन्यवाद।
पढ़ें खास खबर–
Mobile की दुनिया में अबतक का जबरजस्त ऑफर। Oppo ने किया ई-स्टोर प्लेटफॉर्म की ग्रैंड ओपनिंग, दे रहा है बम्पर डिस्काउंट, जाने ऑफर का अंतिम दिन।
कोरोना मरीज ब्लैक फंगस इंफेक्शन से बचे। ICMR ने जारी की एडवाइजरी।
जैसा हम खाते हैं, वैसा ही आचरण भी बनाते हैं।
वज्रासन-2 के नियमित अभ्यास से पुरुषों में सेक्स संबंधित शिकायतें दूर होती है।