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सुहागिनों ने किया वट वृक्ष की पूजा, जानें क्या इस पूजा के पीछे की धार्मिक कहानी ?
🌳✨ सुहागिनों ने वट सावित्री व्रत पर बरगद वृक्ष की पूजा कर मांगी अखंड सौभाग्य की कामना ✨🌳
📅 आज पूरे देश में पारंपरिक आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा वट सावित्री व्रत
🔴 सुहागिनों ने किया वट वृक्ष की परिक्रमा, बांधा लाल सूत, मांगा अखंड सौभाग्य का वरदान
आज वट सावित्री व्रत के पावन अवसर पर पूरे देशभर में सुहागिन महिलाएं श्रद्धा और आस्था के साथ वट (बरगद) वृक्ष की पूजा-अर्चना करती नजर आईं। मंदिरों, सार्वजनिक स्थलों और जहां कहीं भी वट वृक्ष मौजूद है, वहां सुबह से ही महिलाओं का हुजूम उमड़ पड़ा। सभी महिलाओं ने पारंपरिक विधियों से पूजा कर अखंड सौभाग्य और पति की दीर्घायु की कामना की।
💃 नवविवाहिताओं में दिखा विशेष उत्साह, सोलह श्रृंगार में पहुंचीं पूजा के लिए
इस अवसर पर खासकर नवविवाहिता महिलाएं अत्यधिक उत्साहित नजर आईं। उन्होंने पारंपरिक सोलह श्रृंगार किया और रंग-बिरंगे परिधानों में सजधज कर पूजा में सम्मिलित हुईं। पूजा के दौरान महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर शुभकामनाएं दे रही थीं और एक-दूसरे को वट सावित्री व्रत की बधाई भी दे रही थीं।
🪔 पूरे विधि-विधान से संपन्न हुई पूजा
महिलाओं ने वट वृक्ष के चारों ओर सात बार परिक्रमा करते हुए लाल सूत बांधा और व्रत की कथा सुनी। इस दौरान श्रद्धा और भक्ति का माहौल देखते ही बन रहा था। महिलाओं ने देवी सावित्री और वट वृक्ष की संयुक्त आराधना कर अपने पति की लंबी उम्र की कामना की।
👩👩👧👧 कई प्रमुख महिलाएं रहीं मौजूद
इस धार्मिक अवसर पर सीमा वर्मा, श्रेया सोनी, मनीषा देवी, पिंकी देवी, नेहा वर्मा, कविता अग्रवाल समेत कई महिलाएं बड़ी श्रद्धा के साथ पूजा-अर्चना में शामिल हुईं। सभी ने पूरे मनोयोग और पारंपरिक विधि से व्रत का पालन किया।
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जानें क्या इस पूजा के पीछे की धार्मिक कहानी ?
📜 वट सावित्री व्रत का पौराणिक महत्व
हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है। पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने तप और संकल्प से यमराज से अपने पति सत्यवान का जीवन वापस प्राप्त किया था। तभी से इस दिन को सुहागिनें अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना के लिए व्रत रखती हैं।
🌳 वट सावित्री व्रत का पौराणिक महत्व – विस्तार से विवरण 🌳
📚 वट सावित्री व्रत की कथा और धार्मिक पृष्ठभूमि
वट सावित्री व्रत का उल्लेख महाभारत के वनपर्व और स्कंद पुराण में मिलता है। यह व्रत मुख्यतः सुहागिन स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु, स्वास्थ्य और अखंड सौभाग्य के लिए किया जाता है। वट (बरगद) वृक्ष, सावित्री, और सत्यवान की कथा इस व्रत का मूल आधार है।
👩❤️👨 सावित्री-सत्यवान की कथा: त्याग, प्रेम और दृढ़ संकल्प की अमर गाथा
प्राचीन भारत की एक पवित्र कथा के अनुसार, राजा अश्वपत की पुत्री सावित्री अत्यंत रूपवती, बुद्धिमती और धर्मनिष्ठा से युक्त थी। विवाह योग्य होने पर उसने अपने लिए स्वयंवर के माध्यम से एक योग्य वर का चयन किया — राजकुमार सत्यवान, जो कि एक अंधे वनोंवासी राजा द्यमत्सेन का पुत्र था। हालांकि ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि सत्यवान की आयु अल्प है और विवाह के एक वर्ष के भीतर उसकी मृत्यु हो जाएगी।
इसके बावजूद सावित्री ने संकल्प लिया कि वह सत्यवान से ही विवाह करेगी। विवाह के बाद वह अपने पति के साथ वन में रहने लगी और सास-ससुर की सेवा में लग गई।
⚰️ जब यमराज ले जाने लगे सत्यवान की आत्मा
एक दिन सत्यवान जंगल में लकड़ी काटने गया और वहीं वह मूर्छित होकर गिर पड़ा। तभी यमराज वहाँ आए और उसकी आत्मा को ले जाने लगे। सावित्री ने यमराज का पीछा किया और अपने विवेक, धर्मज्ञान और समर्पण से उन्हें प्रभावित किया। यमराज ने सावित्री से कहा कि वह कुछ भी वरदान मांग सकती है, पर सत्यवान के जीवन की मांग न करे।
सावित्री ने चतुराई से पहले सास-ससुर की आंखों की रोशनी, उनका खोया हुआ राज्य, सौ पुत्र, और अंत में पति के साथ जीवन मांग लिया। यमराज को आखिरकार सावित्री की निष्ठा और धैर्य के आगे झुकना पड़ा और उन्होंने सत्यवान को जीवनदान दे दिया।
🌳 वट वृक्ष का प्रतीकात्मक महत्व
व्रत में वट (बरगद) वृक्ष की पूजा का विशेष स्थान है क्योंकि यह वृक्ष स्थायित्व, दीर्घायु, और अखंडता का प्रतीक माना जाता है। वट वृक्ष की जड़ें गहराई तक जाती हैं और शाखाएं व्यापक रूप से फैलती हैं, जो जीवन की स्थिरता और विकास का संकेत देती हैं। सावित्री ने सत्यवान की आत्मा की रक्षा इसी वट वृक्ष के नीचे की थी, इसलिए इस वृक्ष की पूजा से पति की दीर्घायु की कामना की जाती है।
🔱 व्रत का धार्मिक और सामाजिक महत्व
- नारी शक्ति का प्रतीक: यह व्रत भारतीय स्त्री के धैर्य, संकल्प और पति-परायणा रूप को दर्शाता है।
- संस्कारों की शिक्षा: इस व्रत के माध्यम से भावी पीढ़ी को पारंपरिक मूल्यों और विवाह की पवित्रता का ज्ञान मिलता है।
- धार्मिक अनुशासन: इस दिन महिलाएं उपवास रखती हैं, व्रत कथा सुनती हैं और संकल्पपूर्वक पूजा करती हैं, जो मानसिक एकाग्रता और आत्मशुद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।
- सामूहिक सहभागिता: महिलाओं के बीच आपसी स्नेह, सहयोग और संस्कृति के आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलता है।
🧵 मुख्य विशेषताएं:
🔹 व्रतधारिणी महिलाओं का सुबह से ही वट वृक्ष के पास जुटना
🔹 लाल सूत से वट वृक्ष की परिक्रमा कर गठबंधन
🔹 सिंदूर का आदान-प्रदान कर बधाइयों का दौर
🔹 व्रत कथा और मंत्रोच्चार के साथ विधिपूर्वक पूजा
🔹 सामाजिक समरसता और महिला एकता का संदेश
📌 निष्कर्ष:
वट सावित्री व्रत न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह भारतीय नारी की आस्था, श्रद्धा और अपने वैवाहिक जीवन के प्रति समर्पण का प्रतीक है। आज के दिन महिलाओं ने यह फिर साबित कर दिया कि परंपरा और संस्कृति आज भी समाज में जीवंत हैं और अगली पीढ़ी तक पहुंच रही हैं।