स्वास्थ्य

सम्पूर्ण शरीर के दर्द को हर ले- मत्स्येंद्रासन।

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ह आसन योग गुरु मछेन्द्रनाथ जी द्वारा आविष्कृत होने से इसे मत्स्येंद्रासन भी कहा जाता है। यह एक कठिन आसन है किंतु निरन्तर अभ्यास के बाद इसे बड़ी आसनी से किया जा सकता है। ईस आसान को सभी उम्र के महिला पुरुष कर सकते हैं।

मत्स्येंद्रासन

मत्स्येंद्रासन को करने के लिए सबसे पहले जमीन पर बैठ जाएं। फिर बायां पैर को मोड़ते हुए उसे दाएं पैर की जांघ के जोड़ पर इस प्रकार रखें कि इसकी एड़ी नाभि के पास लग जाए। 

अब दाएं पैर को बाएं पैर के ऊपर से पार करते हुए दूसरी ओर जमीन पर इस प्रकार रखें कि पैर का पंजा बाएं घुटने के पास जाकर लग जाए। अब बाएं पैर की उंगलियां बाहर की और इस प्रकार मोड़े की वे दाएं पैर की जंघा के पास सटे रहे। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। अब दाएं हाथ को पीठ के पीछे ले जाते हुए बाएं पैर की जंघा को पकड़े या उसे बाई जांघ के मूल पर रखें। आरम्भ में ऐसा करने में परेशानी होने पर जंघा की जगह बायीं ओर कमर के पास हाथ ले जा सकते हैं। 

बायां हाथ दाएं घुटने के बाहर से इस प्रकार ले जाएं कि दाएं पैर के पांव का अंगूठा पकड़ा जाए या बाएं हाथ की बगल में आ जाए।  चेहरा और छाती इसके विपरीत दिशा में हो कर रखें, दृष्टि सामने की ओर नाक पर जम जाए।

कुछ देर इस स्थिति में रहने के पश्चात पैरों और हाथों की स्थिति को बदलते हुए पुनः इस आसन को लगाए। 

मत्स्येंद्रासन

लाभ – यह आसन सम्पूर्ण शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करता है। जिससे पीठ, पेट, कमर, नाभि के निचले भाग, पेड़ू , पैर, गला, हाथ तथा छाती के स्नायुओं को दृढ़ता एवं शक्ति मिलती है। शरीर में लचक पैदा होती है। शरीर के किसी भी हिस्सों में उत्पन्न दर्द को होने।नहीं देता। नस और नाड़ी संबंधित रोगों में भी लाभकारी है। नाभी के अपने स्थान से हट जाने पर उसे उसके केंद्र में लाता है। साथ ही इसके अभ्यास से नाभी अपने स्थान से घकता नहीं है। वहीं इस आसन से पेट से संबंधित समस्त रोग तथा आंतों के सब रोग, नष्ट हो जाते हैं। भूख खुल जाती है। इस आसन से मधुमेह रोगी को भी लाभ मिलता है।

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