क्राइम

समाजसेवी अर्जुन शर्मा के सहयोग से 30 वर्षों तक टाटा की नौकरी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता की TMH में इलाज के दौरान हुआ दुर्व्यवहार, जाने उनके मुख से TMH की सच्चाई

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30 वर्षों तक टाटा की नौकरी करी, चीफ एडिटर, संपादक, पद किसी काम का नहीं, कुछ काम नहीं आया। 

Jamshedpur : टाटा कंपनी में 30 साल का लीगल सेल एडवाइजर रहने के बाद भी यदि दुर्गति हो वह भी टाटा मेन हॉस्पिटल (TMH) में तो वाकई यह दुर्भाग्यपूर्ण बात होगी। 

हम बात कर रहे हैं साहित्य में कई अंतरराष्ट्रीय अवार्ड प्राप्त करने वाले श्री लक्ष्मी निधि जी के बारे में। आपको बता दें कि लक्ष्मी निधि जी जमशेदपुर के वरिष्ठ अधिवक्ता और लेप्रोसी सोसाइटी आश्रम के प्रेसिडेंट भी हैं। न्यू बाराद्वारी, साकची, जमशेदपुर में रहने वाले प्रतिष्ठित व्यक्ति के साथ TMH में दुर्व्यवहार होता है तो वाकई यह चिंता का विषय है। 

जब ऐसे लोगों के साथ दुर्व्यवहार की घटना हो सकती है तो आम लोगों के साथ क्या उम्मीद की जा सकती है??

टिस्को में लगातार 30 वर्षों तक लीगल एडवाइजर के रूप में कार्यरत रहे हैं लक्ष्मी निधि जी। कोरोना काल में परिवार के चार सदस्यों को कोरोना हो गया था।  जिसमें स्वयं लक्ष्मी जी, उनकी पत्नी ज्योति,  बेटा विनोद निधि और बहु अनिता निधि थे।

समाजसेवी अर्जुन शर्मा और जमशेदपुर विश्वकर्मा समाज के पदाधिकारी गण के सहयोग से पूरे परिवार को टीएमएच में एडमिट करवाया। किन्तु लक्ष्मी निधि जी की पत्नी की हालत इतनी नाजुक हो चुकी थी कि वे हॉस्पिटल नहीं जा सकी और  70 वर्ष की अवस्था में उनका स्वर्गवास हो गया। अर्जुन शर्मा और उनके सहयोगीयों के द्वारा उनका अंतिम संस्कार करवाया गया। कोरोना काल में इनके परिवार को देखने वाला भी कोई नहीं था। अर्जुन शर्मा के सहयोग से पूरे परिवार को नया जीवन दान प्राप्त हुआ।  घर में केवल छोटा बेटा और पोता ही कोरोना संक्रमण से सुरक्षित रह गए थे।

अब आपको टीएमएच हॉस्पिटल की सच्चाई बताते हैं। श्री लक्ष्मी निधि के मुख से जाने टीएमएच की सच्चाई। TMH में इलाजरत श्री लक्ष्मी निधि ने बताया कि इलाज के दौरान किस प्रकार से उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया। 

प्यास लगने पर चिल्ला- चिल्ला कर मांगते थे पानी। लेकिन कोई एक गिलास पानी तक लाकर नहीं देता था।  खुद से उठकर जाना पड़ता था। चिल्लाते – चिल्लाते गला बैठ गया था,  लेकिन किसी ने पानी नहीं दिया।  ऑक्सीजन लगा हुआ था नाक पर, सिर्फ दवाई आकर दे जाते थे। जो आदमी बाथरूम जा सकता था वो उठ नहीं सका।  जो उठ नहीं सका समझो वह तो सीधे नर्क में गया। टट्टी लगने पर बोल रहे थे बर्तन दीजिए, लेकिन कोई सुनने वाला ही नहीं था। बर्तन मांगते- मांगते बिस्तर पर ही हो गया। जो गंदगी यहां हुई, वहीं पर कल भी होगा। सफाई की कोई व्यवस्था नहीं थी।  बिछवने परी टट्टी पेशाब होता रहा।  9 दिनों तक इसी बेड पर यह सब होता रहा, लेकिन इसका सफाई करने वाला कोई नहीं था। आधे बेड पर कंबल और गमछा के सहारे टट्टी पेशाब करते रहे। पूरा बेड पर प्लास्टिक बिछा हुआ है, जिससे यह गीला ही रहता था।  30 वर्षों तक टाटा की नौकरी करी, चीफ एडिटर, संपादक, पद किसी काम का नहीं, कुछ काम नहीं आया। 

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