देवघर, 21 जुलाई 2024: झारखंड के देवघर में आयोजित होने वाला श्रावणी मेला, भगवान शिव के भक्तों के लिए आस्था और भक्ति का महाकुंभ है। यह मेला सावन मास में आयोजित होता है, जो हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस साल श्रावणी मेला 22 जुलाई से शुरू हुआ है जो 26 अगस्त तक चलेगा।
सावन का महत्व:
सावन मास भगवान शिव का महीना माना जाता है। इस महीने में भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं। कहा जाता है कि इस महीने में भगवान शिव कैलाश पर्वत से धरती पर आते हैं और गंगा नदी में निवास करते हैं।
श्रावणी मेले का इतिहास:
श्रावणी मेले का इतिहास हजारों साल पुराना है। माना जाता है कि भगवान राम ने भी इस महीने में बाबा बैद्यनाथ के दर्शन किए थे। तब से यह मेला हर साल आयोजित किया जाता है।
कांवरियों की यात्रा:
श्रावणी मेले का मुख्य आकर्षण कांवरिए होते हैं। ये भक्त गंगाजल से भरे कलश लेकर बाबा बैद्यनाथ के दर्शन करने के लिए पैदल यात्रा करते हैं। यह यात्रा कई किलोमीटर लंबी होती है और इसमें कई दिन लगते हैं।
यात्रा का मार्ग:
कांवरिए विभिन्न मार्गों से देवघर पहुंचते हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध मार्ग सुल्तानगंज से देवघर का है। यह यात्रा करीब 100 किलोमीटर लंबी है।
यात्रा की कठिनाईयां:
कांवरियों की यात्रा आसान नहीं होती है। उन्हें रास्ते में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उन्हें पैदल चलना पड़ता है, तपस्या करनी पड़ती है और कई बार भूखे-प्यासे रहना पड़ता है।
भक्ति और त्याग का प्रतीक:
कांवरियों की यात्रा भक्ति और त्याग का प्रतीक है। ये भक्त अपनी तन-मन लगाकर भगवान शिव की पूजा करते हैं और अपनी इच्छाओं का त्याग कर देते हैं।
सांस्कृतिक महत्व:
श्रावणी मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक उत्सव भी है। इस मेले में देश के विभिन्न भागों से लोग आते हैं और अपनी संस्कृति का प्रदर्शन करते हैं।
पर्यावरणीय प्रभाव:
श्रावणी मेले का पर्यावरण पर भी प्रभाव पड़ता है। कांवरिए प्लास्टिक की बोतलें, थैलियां और अन्य कचरा मेला क्षेत्र में फेंक देते हैं। इससे प्रदूषण होता है।
निष्कर्ष:
श्रावणी मेला आस्था, भक्ति, त्याग और सांस्कृतिक विविधता का अद्भुत संगम है। यह मेला लाखों लोगों को एक साथ लाता है और उन्हें भगवान शिव के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है।