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“वो बाजार के खिलाड़ी हैं, तेरा हर ख्वाब बेंच डालेंगें।”

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Jamshedpur : आज दिनांक 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस के उपलक्ष में झारखंड ह्यूमैनिटी फाउंडेशन के जनरल सेक्रेटरी खालिद इकबाल ने मीडिया के माध्यम से अपने विचार साझा किए हैं। उनके सुंदर विचारों के लिए The News Frame की ओर से उन्हें बहुत-बहुत धन्यवाद। 


आइये उनके द्वारा रचित इस लेख को पढ़ते हैं और उनके विचारों पर आत्मचिंतन करते हैं।

– आज है हिंदी पत्रकारिता दिवस। सिर्फ रस्म अदायगी का नहीं। आत्म चिंतन का, आत्म परीक्षण का। आज हम कहाँ खड़े हैं? जनता में हमारी विश्वसनीयता कितनी है? सच्चाई यह कि आमजन जब सारे तंत्र से निराश हो जाता है। फिर भी वो अपना आत्म विश्वास नहीं खोता। उसे लगता है कि मीडिया तो है जो उसके साथ खड़ी रहेगी। फिलवक्त जब विपक्ष भी कमजोर हालत में है। 

मीडिया की ज़िम्मेदारी अवाम के प्रति और भी बढ़ जाती है।लेकिन अफसोस क्या आज मीडिया का एक बड़ा तबका सरकार के साथ खड़ा दिखाई नहीं पड़ रहा है? क्या आम जनता का भरोसा मीडिया से टूटता नहीं दिखाई पड़ रहा है? यह स्थिति बहुत खतरनाक है। मीडिया को पब्लिक के प्रति जवाबदेह होना था, आज मीडिया की भूमिका को देख कर ऐसा महसूस हो रहा है कि वह सरकार के प्रति अपनी जवाबदेही तय करने में लगी है। 

मोटे तौर पर अख़बारों का बाजारीकरण, कॉरपोरेट घरानों की बड़ी भागीदारी आदि मीडिया की घटती विश्वसनीयता की बड़ी वजह दिखाई देती है। हमारे समाज में कुछ प्रोफेशन ऐसे भी हैं जिन्हें नोबल प्रोफेशन की श्रेणी में रखा गया है। जिनमें डॉक्टर, अध्यापक और पत्रकार भी आते हैं। ठीक है इस प्रोफेशन में शामिल लोगों को इसी से अपनी जीविका भी चलानी होती है। इसके बावजूद भी इन लोगों की ज़िम्मेदारी मानवता और समाज के प्रति ज़्यादा है। जब ये लोग भी पूर्ण रूप से बाज़ारवाद के शिकार होजाएंगे। तब स्थितियां समाज के लिए खतरनाक साबित होंगीं। जिसके संकेत अभी से दिखने लगे हैं। महान कवि मैथली शरण गुप्ता ने इन आशंकाओं को पहले ही भांप लिया था। उनका यह कथन आज फिर प्रासंगिक मालूम पड़ता है।

“हम कौन थे ,क्या होगये,और क्या होंगें अभी।
आओ विचारें आज मिलकर,यह समस्याएं सभी।

खालिद इक़बाल- 9308652107
झारखंड ह्यूमनटी फाउंडेशन

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