प्रतीकात्मक चित्र |
एक संत हुआ करते थे जिनका नाम था सन्त पोयेमन ।
एक बार की बात है उनके पास एक व्यक्ति आया और उनसे कहा – हे मुनि मेरा भाई दुष्ट प्रकृति का है और वह मुझसे हमेशा जलता रहता है। फिर भी भाई होने के नाते मैं उसे माफ करता रहता हूँ।किंतु इसका उस पर कुछ असर नहीं होता है। विपरीत इसके वह मुझसे और नाराज हो जाता है, वह ऐसा क्यों करता है ?
पोयेमन ने बड़े ही सरलता से उत्तर दिया – सच्चे दिल से बताओ, तुम उसे माफ करते हो। जब तुम उसे मांफ करते हो तब क्या तुम्हारे मन में यह विचार नहीं आते कि तुमने कोई गुनाह नहीं किया है फिर भी वह तुम्हें बेवजह ही कोस रहा है, तुमपर गुस्सा कर रहा है?
व्यक्ति ने पहले तो सोचा फिर हैं में सर हिला दिया।यह देख सन्त ने कहा – बुरा न मानो लेकिन मैं तुमसे सच कहता हूं , जब तुम उसे माफ करते हो, तब सच्चे मन से नहीं करते।
तुम्हारे हृदय में यह ख्याल उठते हैं कि तुमने कोई गुनाह किया भी नहीं, गुनाह तो भाई ने किये हैं फिर भी तुम ही उसे माफ करते हो। बस यही कारण है कि तुम अपने भाई को खुश होने की वजह नहीं देते।
किसी को दिखावे के लिए माफ न करो , माफी देनी है तो दिल से दो। जिससे इंसान तो क्या ईश्वर भी प्रसन्न हो जाये।
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