आस्था और पवित्रता का महापर्व छठ का पहला अरघ आज पूरे हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुआ। यह एक ऐसा आदर्श और पवित्र पूजा है जिसमें कोई पंडित या पुजारी नहीं होता। व्रत रखने वाले पुरुष और महिलाएं ही पूरे पवित्रता के साथ इसकी आराधना नदी अथवा जल स्रोतों में करते हैं। जिसमें न कोई ऊंच होता है न कोई नीच, न कोई जाती का बंधन ही होता है। क्या अमीर और क्या गरीब, हर कोई प्रसाद ग्रहण करने के लिए श्रद्धा से हाथ फैलाता है। हर घाट पवित्र होता है। इस पूजा में भगवान सूर्य की उपासना पूरे श्रद्धा के साथ कि जाती है।
सूर्य उपासना करता श्रद्धालु
छठ पूजा (Chhath Puja) कब मनाया जाता है?
विक्रम संवत पंचांग के अनुसार छठ वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहला हिन्दू वर्ष के प्रथम मास में अर्थात चैत्र को मनाया जाता है जिसे चैती छठ भी कहते हैं और दूसरा कार्तिक मास में मनाया जाता है।
कार्तिक मास में छठ शुक्ल पक्ष की षष्ठी यानी छठी तिथि से आरंभ होता है। इसकी गणना ऐसे भी कर सकते हैं – दीपावली के 6 दिन बाद इसकी पूजा और विधि विधान आरंभ किया जाता हैं।
स्वर्णरेखा नदी में सूर्य उपासना करता छठ व्रती
यह पूजा चार दिनों तक मनाया जाता है।चार दिनों तक चलने वाले इस पूजा / पर्व में व्रती 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखती हैं।
छठ पूजा (Chhath Puja) क्यों मनाया जाता है?
छठ पूजा का व्रत घर परिवार में सुख समृद्धि और शांति के लिए रखा जाता है। साथ ही सबसे प्रमुख रूप से संतान प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र के लिए इसका व्रत रखा जाता है।
पहला दिन – नहाय खाय या लौकी भात
श्रद्धालु और व्रती उपवास रखते हुए दोपहर के भोजन में लौकी से बना हुआ सब्जी और चावल से बने भात को ग्रहण करते हैं। यह इतनी पवित्रता के साथ मनाया जाता है कि खानपान में लहसुन और प्याज का भी प्रयोग नहीं किया जाता है।
छठ पूजा का सूप
छठ पर्व में नहाय खाय में लगने वाला समान की सूची
१-अरवा चावल
२-चना दाल
३-करूतेल
४-सेंधानमक
५-खरा जिरा
६-सुखी मिर्ची
७-जिरा पाउडर
८-हल्दी पाउडर
९-लाल मिर्च पाउडर
१०-बेसन
११-आलू
१२-कद्दू
१३-कच्चा मिर्च
१४-दही
१५-चाय पत्ती
१६-चीनी
१७-दूध
१८-पैर रंगने के लिए अल्ता।
दूसरा दिन – खरना
श्रद्धालु और व्रती शाम की पूजा सम्पन्न करते हैं और पूजा उपरांत प्रियजनों एवं मित्रों के साथ प्रसाद के रूप में सामान्यतः खीर और रोटी ग्रहण करते हैं। उसके बाद उपवास रखते हैं। उपवास भोर के अरघ के बाद प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही खत्म होता है।
खरना का समान
१-अरवा चावल
२-दूध
३-गुड़
४-आटा
५-घी
६-केला का पत्ता
७-तुलसी पत्ता
८-अड़हूल का फूल
९-हुमाद,धुमना
१०-दीया
११-रुई,बत्ती
१२-अगरबत्ती
१३-कपूर
१४-पीला सिन्दूर
१५-लहठी
१६-गोईठा
१७-गंगा जल
१८-माचीस
१९-चुल्हा मिट्टी
२०-लकड़ी
व्रती वास्ते साड़ी, साया, ब्लाउज।
शाम का अरघ देते श्रद्धालु
तीसरे दिन – शाम का अरघ
व्रती नदी में लगभग कमर तक के पानी में खड़े होते हैं और स्नान, ध्यान उपरांत छठ व्रती और श्रद्धालु एक सुप में पूजन सामग्री और दीप्तमान दीपक रखकर हाथों में लेते हैं और ढ़लते सूर्य की उपासना करते हैं। प्रियजन एवं परिवार के सदस्य लोटा या हथेली से ही व्रती एवं सुप के आगे जल छोड़ते हैं। व्रती हाथ में सुप लिए 5 बार एक ही स्थान पर घूमते हैं और हर बार प्रियजन जल को छोड़ते हैं जैसे सूर्य को जल दिया जाता है। उसके बाद सभी सूर्य को नमस्कार करते हैं और श्रद्धालु व्रती के पैर छूते है।
अर्ग के लिए जरूरी समान इस प्रकार है।
१-सूप
२-आटा
३-गुड़
४-घी
५-दूध
६-बड़ी इलाईची
७-छोटी इलाईची
८-लौंग
९-गड़ी गोला
१०-छोहारा
११-अरवा चावल का आटा कसार वास्ते
१२-कुसिया केराव
१३-सुपारी
१४-पान
१५-अड़हुल का फूल
१६-पीला सिन्दूर
१७-ऐपन
१८-बद्धी माला
१९-अरकत पात
२०-कपूर
२१-हल्दी पाउडर ऐपन वास्ते
२२-अगरबत्ती
२३-हुमाद,धुना
२४-तुलसी पत्ता
२५-गंगा जल
२६-पानी नारियल
२७-गागल,डाब नींबू
२८-सेब
२९-नारंगी
३०-केला
३१-सुथनी
३२-पानी फल सिघांरा
३३-मूली
३४-अदरक
३५-केतारी,उख,गन्ना
३६-सरीफा,सिता फल
३७-अक्षत
फल इच्छानुसार।
नोट – प्राप्त जानकारी के अनुसार छठ पूजा में आवश्यक समानों की यह सूची है। समय एवं स्थान के अनुसार सामग्री में परिवर्तन हो सकता है?
चौथा दिन – भोर का अरघ
शाम की पूजन विधि को पुनः भोर के अरघ में दोहराया जाता है। पूजा के बाद व्रती का व्रत पूर्ण होता है और व्रती और श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते हैं।
यह पर्व विशेष कर उत्तर भारत में विशेष कर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है।
छठ पूजा का आरम्भ कब से हुआ ?
छठ पर्व / पूजा से जुड़ी कई धार्मिक कथाएं प्रचलित हैं। जो बताती हैं कि छठ पूजा बहुत ही प्राचीन समय से किया जाता रहा है। वहीं छठ रामायण और महाभारत काल में भी मनाया गया था इसकी बातें भी बताई जाती हैं।
रामायण काल
रावण का अंत और लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान राम ने राम राज्य की स्थापना की थी। राम राज्य स्थापना के बाद कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को भगवान श्री राम और माता सीता ने उपवास रखा और सूर्यदेव की अराधना की। बहते जल में सप्तमी के दिन सूर्योदय के समय धार्मिक अनुष्ठान के बाद सूर्यदेव से आर्शीवाद ग्रहण किया था।
महाभारत काल
इस काल की तीन कहानी अधिक प्रचलित है।
1. पांडवों की प्रिय पत्नी द्रौपदी ने सूर्यदेव की अराधना की थी। उसने अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए सूर्य देवता का व्रत और पूजा करती थी।
2. कुंती ने पुत्र प्राप्ति के लिए सूर्य देव की उपासना की थी। सूर्य देवता के आशीर्वाद से उन्हें एक देव पुत्र उत्पन्न हुआ। जो आगे चलकर महाबली कर्ण बना।
3. सूर्य पुत्र कर्ण, सूर्य देव के अनन्य भक्त थे। और प्रतिदिन घंटों जल में खड़े होकर सूर्य देव की अराधना करते थे और उन्हें अर्घ्य देते थे।
प्राप्त जानकारी के अनुसार छठ पूजा के बारे में जानकारी साझा की जा रही है। त्रुटि होने पर अथवा कुछ छूट गया हो तो हमें कमेंट करके मार्ग दर्शन करें, धन्यवाद।
आज की ताजा तस्वीरों में महापर्व छठ की आस्था और पवित्रता को साफ देख सकते हैं।