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मन की भड़ास

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My Pen : रविवार 10 अक्टूबर, 2021

ये देश है अद्भुत सवालों का, होशियारों का, मस्तानों का, इस देश का यारों क्या कहना। मन की भड़ास में आप सभी का स्वागत है। 

भारत गणराज्य जिसकी व्यवस्था में ही व्यथा है। जिसकी व्यवस्थापिका, न्यायप्रणाली और कानून व्यवस्था पर ही प्रश्नचिन्ह है। जहां जलते पेट की भूख को शांत करने के लिए एक पांच रुपये की रोटी चोर को मिलती है कड़ी सजा, वहीं लाखो करोड़ो रूपये की चोरी करने वाला चोर बेख़ौफ दुबई और लंदन में जाकर बस जाता है। जहां देखा जाता है कि ट्रैफिक हवलदार ट्रैफिक व्यवस्था सुदृढ न करके हेलमेट चेकिंग में लग जाता है और फाइन वसूलना बखूबी जानता है, लेकिन सड़क में नाला है या नाले में सड़क है यह बेचारे ट्रैफिक हवलदार ने कभी जानना जरूरी नहीं समझा। सड़को में छोटे से विशाल गड्ढे प्रतिदिन हो रहे एक्सीडेंट के प्रमुख कारण बनते जा रहे हैं, कितनों के परिवार वाले यूँ ही बिछड़ते जा रहे है, लेकिन इन्हें बस फाइन में बिजी रहना है। 

नगर प्रशासन कुव्यस्था को कम करने के बजाय इसे बढ़ाने पर अधिक ध्यान देती है। नगरों की सफाई का स्तर क्या है यह भारत में रहने वाले स्थानीय नागरिकों से ही पूछा जाए। 

स्वच्छ भारत मिशन में करोडों रुपये की बर्बादी के बाद आया स्वच्छ भारत मिशन पार्ट-2 जिसमें हम उम्मीद लगा सकते हैं कि इसबार यह अरबों रुपये में पहुंच जाएगी। सफाई का स्तर सबको पता है। साल में एकाकबर रेसिन्डेन्सियल एरिया में झाड़ू लग भी जाये तो कचड़ा किसी कोने में स्वच्छ्ता को मुंह चिढ़ाता हुआ जरूर नजर आ जायेगा। रही मच्छर भगाने के फॉगिंग की तो कई महीनों के बाद बस्तियों में ये सुविधा आ तो जाती है लेकिन बाहर के मच्छर घर के अंदर मुस्कुराते हुए जरूर आते हैं।

और सबसे मजे की बात तो राजनीतिक करने वालों महान नेताओं की है। जो सत्ता के लिए धर्म, जाती और अपनी बेटी तक का सौदा कर देते हैं। केवल सत्ता के लालच में धार्मिक उन्माद फैलाते हैं। कभी कोई हिन्दुओं की लाश पर मातम मनाता है तो कभी कोई मुस्लिमों की मौत पर विधवा विलाप करता है। आम नागरिक बेचारे सीधे साधे इनकी बातों में फंस कर अपना ही नुकसान कर बैठते हैं।

और इन सबसे भी एक और मजेदार बात यह है की ये जो आम लोग है न इन्हें बहकाना बड़ा सरल है। ये सबकुछ जानते हुए भी आंखे बंद कर लेते हैं। जानते हैं ऐसा ये क्यों करते हैं? क्योंकि दिन भर की मजदूरी और कमाई से घर में भूखे बैठे परिवार का पेट भरना है। परिवार इंतजार कर रहा होता है। फटे कपड़ों को सीलने तक कि इन्हें फुर्सत नहीं होती, क्योंकि इन्हें परिवार में हर एक का तन ढ़कने की चाहत होती है। 

राज्य और देश चलाने की नौटंकी करने वाले ये राजनेता इन आम लोगों को सुखी रोटी पकड़ा कर खुद बिरयानी खाते हैं। राशन कार्ड और मनरेगा का ऐसा झुनझुना पकड़ाया की ये आमलोग आज भी इसे बड़े प्यार से बजाते है। तमाशा तो ये है कि ये आम लोग बजा कर थकते भी नहीं है। अब एक नया ड्रामा चालू किया गया है – लुंगी और साड़ी का। 

अच्छा ये तो फिर भी ठीक है, लेकिन 14% वाले अल्पसंख्यक कब 35% बन गए पता ही नहीं चला। जबकि 2% वाले अल्पसंख्यक  अब गायब है। देश का मंदिर कहे जाने वाले संसद भवन में जानवरों की तरह लड़ने वाले वैसे लोग भी हैं, जो जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। 

आगे जारी …….। 

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