श्री राम लला के मस्तक पर सूर्य ने किया तिलक
अयोध्या : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) ने अयोध्या में सूर्य तिलक परियोजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस परियोजना के तहत, चैत्र मास में श्री राम नवमी के अवसर पर आज दोपहर 12 बजे श्री राम लला के मस्तक पर सूर्य की रोशनी डाली गई।
आईआईए की भूमिका:
- गणना और डिजाइन: आईआईए टीम ने सूर्य की स्थिति, प्रकाश प्रणाली के डिजाइन और अनुकूलन की गणना की और साइट पर एकीकरण और संरेखण का प्रदर्शन किया।
- ऑप्टो-मैकेनिकल प्रणाली का डिजाइन: आईआईए वैज्ञानिकों ने मंदिर के शीर्ष से मूर्ति के माथे तक सूर्य की किरणों को पहुंचाने के लिए आवश्यक दर्पणों, लेंसों और ऑप्टो-मैकेनिकल तंत्रों का डिजाइन तैयार किया।
- सिमुलेशन और परीक्षण: डिजाइन की कार्यक्षमता का मूल्यांकन करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह वांछित परिणाम प्रदान करेगा, विस्तृत सिमुलेशन किए गए।
- साइट पर कार्यान्वयन: आईआईए के तकनीकी विशेषज्ञों ने सिस्टम के परीक्षण, संयोजन, एकीकरण और सत्यापन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 17 अप्रैल 2024 को पहले सूर्य तिलक से पहले दर्पणों और लेंसों के महत्वपूर्ण संरेखण का भी नेतृत्व किया।
सूर्य तिलक प्रणाली:
- 4 दर्पण और 4 लेंस: यह प्रणाली 4 दर्पणों और 4 लेंसों का उपयोग करके सूर्य की रोशनी को श्री राम लला की मूर्ति पर केंद्रित करती है।
- सटीक संरेखण: दर्पणों और लेंसों को हर साल मैन्युअल रूप से समायोजित किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सूर्य की रोशनी राम नवमी के दिन मूर्ति पर पड़े।
- स्थायी स्थापना: मंदिर के पूर्ण होने के बाद दर्पणों और लेंसों को उनके स्थायी स्थानों में स्थापित किया जाएगा।
यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है:
- धार्मिक महत्व: यह परियोजना लाखों श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो राम नवमी के दिन श्री राम लला के दर्शन करने के लिए अयोध्या आते हैं।
- वैज्ञानिक कौशल का प्रदर्शन: यह परियोजना भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की उत्कृष्टता और कौशल का प्रदर्शन करती है।
- विज्ञान और धर्म का संगम: यह परियोजना विज्ञान और धर्म के बीच के संबंध को दर्शाती है और यह दर्शाती है कि विज्ञान का उपयोग सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं को बनाए रखने के लिए कैसे किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान द्वारा सूर्य तिलक परियोजना में किए गए योगदान ने इस अनूठी पहल को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह परियोजना न केवल धार्मिक महत्व रखती है बल्कि यह भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की क्षमताओं का भी प्रतीक है।