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पत्रकार: तंगहाली और बदनसीबी की मार झेलता रहा पत्रकार का परिवार।

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पत्रकारिता को समर्पित बिनोद दास के परिवार को जरूर करें मदद

जमशेदपुर । आज जो पत्रकारिता का दौर आप देख रहे हैं और पहले का जो दौर था इसमें काफी बदलाव आया है.आज छोटे से पोर्टल और युट्युब चैनल चलाकर भी पत्रकारों को कार और बड़े फ्लैट मेंनटेन करते देखा जा सकता है, लेकिन कभी ऐसा समय था जब 1000-1500 रूपए ही हाऊस पत्रकारों को वेतन दिया करता था जिस पर परिवार के मुखिया के सिर पर आश्रितों का भारी बोझ होता था.

तंगहाली और बदनसीबी की मार झेलता एक पत्रकार आज भी हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं.मेरे विचार से इस खबर को हर पत्रकार और विशेषकर हाऊस के मालिक व संपादकों को पढ़नी चाहिए.जमशेदपुर के परसुडीह थाना क्षेत्र में रहने वाले क्रांतिकारी पत्रकार बिनोद दास का देहांत गत् दिनों बेहतर ईलाज के अभाव में एमजीएम अस्पताल में हो गया.

क्रांतिकारी पत्रकार बिनोद दास

क्रांतिकारी पत्रकार बिनोद दास

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बिनोद दास के अंतिम समय में बदतर हालात से जुझते हुए कुछ पत्रकारों ने ही साथ दिया और सरकारी अस्पताल के चक्कर काटते वो इंसान काल के गाल में समां गया. और तो और मृतक पत्रकार बिनोद दास के शव को किसी तरह पार्वती घाट में ले जाकर अंतिम संस्कार कर दिया गया, उस वक्त मृतक के बेटे के पास मात्र दो सौ रूपये ही शेष थे. ऐसे में वहां मौजूद कुछ गरीब पत्रकारों ने ही हिम्मत जुटाकर इस दाह: संस्कार को सफलीभुत किया .

इस झकझोर देने वाली घटना का मैं खुद प्रमाण भी हूं और जो मैंने देखा तो‌ लगा कि पत्रकार होने के लिए ईमानदारी का जरूरत से ज्यादा होना क्या सही है ? अगर सच पूछिए तो एक ईमानदार पत्रकार अगर अच्छे वेतनमान पर नहीं है तो उसे तुरंत पत्रकारिता छोड़ देनी चाहिए ? खासकर तब जब आपके पीछे एक भरा-पूरा परिवार हो.

पत्रकारिता का जुनून ऐसा था कि बिनोद के परिवार को पसंद न‌ था, क्योंकि वो एक ईमानदार और स्वतंत्र पत्रकार था. वैसे वे कुछ साल तक हिंदुस्तान अखबार के लिए भी करणडीह क्षेत्र से खबर लिखा करते थे . इसके बाद कुछ छोटे न्यूज़ पेपर में भी खबर भेजने का काम कर रहे थे. परन्तु आज वे खुद एक खबर का हिस्सा बन गये हैं. उनके परिवार के लोग चाहते थे कि बिनोद कुछ ऐसा काम करें जिससे परिवार चले लेकिन वह सुनता नहीं था.

नतीजतन बिनोद ने अपने पत्नी और बच्चों को ही छोड़ दिया और घर से अलग रहने लगा.जिस घांस फूस के छोटे से कोठरे में वह रहता था, वहां लोग जानवरों को भी न रखें.ऐसी बदतर जिंदगी जीते हुए भी वह फटेहाल मुस्कुराते दिखाई देता था.

एक पत्रकार की दुखभरी दास्तां लिखने की हिम्मत नहीं है और अगर लिख भी दिया जाय तो शायद ही कोई पत्थर दिल होगा जिसके आँख से आंसू न निकलेंगे.

जब उसके परिवार से मिला गया तो पता चला कि घर की माली हालत बहुत ही खराब है. रविवार को विनोद दास का श्राद्ध कर्म है और परिवार के पास कुछ भी नहीं है.शायद हम सभी को आज पत्रकार होने का धर्म निभाना चाहिए, इसके लिए प्रेस क्लब एवं अन्य पत्रकार संगठनों को आगे आने की जरूरत है, ताकि एक गरीब पत्रकार के परिजन का उद्धार हो सके. वैसे AISMJW ऐसोसिएशन ने जमशेदपुर शहरी जिला ईकाई द्वारा मृतक परिवार को 50 हजार रुपए और एक वर्ष का सूखा राशन देने का नेक पहल की है. लेकिन फिर भी इस परिवार को अन्य सभी संगठनों और सभी पत्रकारों की ओर से मदद मिलनी चाहिए. यही उस दिवंगत आत्मा के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

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