झारखंड

जिला पूर्वी सिंहभूम के सबर परिवारों को स्वस्थ व कुपोषण मुक्त रखने की मुहिम, 31 गांवों के 382 परिवारों को अबतक पोषण वाटिका से जोड़ा गया।

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SUCCESS STORY : JAMSHEDPUR

घनी आबादी वाले क्षेत्र से अलग सुदूर दुर्गम क्षेत्रों में निवास करने वाले सबर जनजाति को मुख्यधारा में लाने, उनके स्वास्थ्य व उचित पोषण को लेकर जिला प्रशासन द्वारा संवेदनशील प्रयास किए जा रहे हैं । उपायुक्त श्रीमती विजया जाधव द्वारा भी क्षेत्र भ्रमण के क्रम में सबर टोलों को प्राथमिकता दी जाती है, वहां रह रहे लोगों का रहन सहन, सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन तथा उनके स्वास्थ व पोषण को लेकर काफी संवेदनशील रहती हैं तथा सबर परिवारों के सामाजिक, आर्थिक उत्थान की दिशा में क्या बेहतर प्रयास हो सकते हैं इसे लेकर पदाधिकारियों को हमेशा दिशा निर्देश देते रहती हैं। इसी कड़ी में JTDS की परियोजना ने सबर परिवारों को उनके घरों के सामने खाली स्थान, चापाकाल व जल के दूसरे स्रोत के आसपास पोषण वाटिका अर्थात किचन गार्डन ने उनके जीवन और स्वास्थ्य में बदलाव लाना शुरु कर दिया है। 

JTDS ने वर्तमान में पोटका, डुमरिया, मुसाबनी, पटमदा और बोड़ाम प्रखंड के 18 पंचायत के 31 गांव में 382 आदिम जनजाति परिवारों को पोषण वाटिका से जोड़ा है। जिला उद्यान विभाग के अभिसरण से पोषण वाटिका लगाया जा रहा जिसका शुभांरभ एन.ई.पी की निदेशक द्वारा पटमदा प्रखंड के धुसरा गांव में कुछ माह पूर्व किया गया था। JTDS ने किचेन गार्डन के लिए लौकी, करैला, झींगा, टमाटर, भिंडी, लाल साग व अन्य साग का बीज 382 लाभुकों के बीच वितरित किया, साथ ही सघन फॉलोअप एवं बैठक के द्वारा सबर परिवारों को पोषण वाटिका से जुड़ने के लिए प्रेरित किया जिसका अच्छा परिणाम देखने को मिल रहा है। 5 प्रखंड के 31 गांवों/टोलों में सभी सबर जन जाति के घर सब्जी भाजी लगी हुई है, वे इसका निजी उपभोग के साथ-साथ बाजार में बेचकर थोड़ा बहुत आमदनी भी करने लगे हैं । किचन गार्डेन का उद्देश्य खान-पान में सब्जी के उपयोग से विटामिन और पोषक तत्व को बढ़ावा देकर कुपोषण और रक्त अल्पता की कमी को दूर करना है।


JTDS के डीपीएम ने बताया कि जनजाति परिवारों के आर्थिक सामाजिक उत्थान के लिए केन्द्र और झारखंड सरकार के सहयोग से आदिम जन जाति के लाभुकों के बीच यह योजना चलाई जा रही है। इस योजना में स्वास्थ्य, शिक्षा, बचत, जीविका, पशुपालन, कृषि पर जागरुकता के साथ प्रत्येक परिवार को उनकी इच्छा और जरुरत के अनुसार पशुधन उपलब्ध कराना तथा बांस  और पत्ता से निर्मित उत्पाद, विषय पर प्रशिक्षण देना है। इसके साथ ही उनके टोलों में गल्ला की दुकान, मनिहारी दुकान, चाय- नाश्ता का होटल आदि से जोड़ा जाना है।

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