झारखंड

एसडीओ की कार्रवाई पर सवाल: नो पार्किंग, गुटखा, और अवैध बालू खनन

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जमशेदपुर : जमशेदपुर में अनुमंडल पदाधिकारी (एसडीओ) विधि-व्यवस्था को सख्ती से लागू करने के लिए लगातार सक्रिय नजर आ रहे हैं। उन्होंने चाय दुकानों पर भीड़ नियंत्रण के लिए चाय की गुणवत्ता की जांच की, प्रतिबंधित गुटखा बेचने वाले दुकानदारों पर जुर्माना लगाया और नो पार्किंग में खड़ी गाड़ियों का चालान काटा। इतना ही नहीं, कुछ मामलों में नो पार्किंग में खड़ी गाड़ियों की हवा निकालने की कार्रवाई भी की गई। हालांकि, इस प्रकार की कार्रवाई ने जनता को असमंजस में डाल दिया है। विशेषकर तब, जब मेडिकल स्टोर के बाहर दवा लेने आए जरूरतमंदों की गाड़ियों को भी निशाना बनाया गया।

अवैध बालू खनन: प्रशासन की उदासीनता

इन छोटी-छोटी समस्याओं पर सख्ती के बावजूद, जमशेदपुर में बागुनहातु घाट, बारीडीह घाट और हुरलूंग घाट जैसे इलाकों में अवैध बालू खनन और परिवहन का गोरखधंधा खुलेआम चल रहा है। स्थानीय लोग लगातार इस बात की शिकायत कर रहे हैं कि प्रशासन इन अवैध गतिविधियों पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। हुरलूंग पुल के पास हाल ही में एक अवैध बालू से लदे ट्रैक्टर ने एक बाइक सवार युवक को टक्कर मार दी, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। इस घटना ने अवैध बालू खनन के खतरों को उजागर किया, लेकिन इसके बावजूद प्रशासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

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राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवैध कारोबार

मानगो एनएच 33 पर डिमना से लेकर पारडीह तक लगभग 10 स्थानों पर अवैध बालू खनन और भंडारण का काम जोरों पर चल रहा है। आश्चर्य की बात यह है कि डिमना स्थित अंचल कार्यालय से महज 70-80 मीटर की दूरी पर ही बालू का भंडारण और खुलेआम बिक्री हो रही है। स्थानीय लोगों के अनुसार, प्रशासन को इन गतिविधियों की पूरी जानकारी है, लेकिन वे अनदेखी कर रहे हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या प्रशासन केवल दिखावटी कार्रवाइयों में व्यस्त है?

जनता के बीच असंतोष

प्रशासन की प्राथमिकताएं जनता के बीच असंतोष का कारण बन रही हैं। गुटखा और नो पार्किंग जैसी छोटी समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, प्रशासन को अवैध बालू खनन जैसे गंभीर और बड़े मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए। स्थानीय लोगों का आरोप है कि सरकारी अधिकारियों को इन अवैध गतिविधियों की पूरी जानकारी होने के बावजूद वे इन्हें रोकने में कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं।

व्यवस्था पर सवाल

अवैध बालू खनन से जुड़े मुद्दे केवल आर्थिक नुकसान ही नहीं पहुंचा रहे, बल्कि लोगों की जान के लिए भी खतरा बन रहे हैं। इसके बावजूद प्रशासन की चुप्पी व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रही है। नो पार्किंग में गाड़ियों की हवा निकालने या गुटखा बेचने वालों पर जुर्माना लगाने जैसी कार्रवाइयां महज सतही लगती हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन को इन गंभीर समस्याओं पर तुरंत ध्यान देना चाहिए।

जनता यह जानना चाहती है कि आखिर प्रशासन की यह अनदेखी कब तक जारी रहेगी? आखिर कब अवैध बालू खनन और इसके खतरों पर प्रभावी कार्रवाई होगी?

अवैध बालू खनन और प्रशासन की प्राथमिकताएं: दिखावे से परे ठोस कार्रवाई की जरूरत

अवैध बालू खनन और प्रशासन की प्राथमिकताओं के विषय पर विचार करते हुए, यह स्पष्ट है कि जमशेदपुर जैसे क्षेत्र में प्रशासनिक कार्यवाही की प्राथमिकता को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है। एसडीओ द्वारा नो पार्किंग में खड़ी गाड़ियों पर चालान काटने और गाड़ियों की हवा निकालने जैसी कार्रवाइयों से यह तो स्पष्ट होता है कि वे विधि-व्यवस्था लागू करने को लेकर गंभीर हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह प्रयास वास्तविक समस्याओं के समाधान के लिए पर्याप्त हैं?

अवैध बालू खनन न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक है, बल्कि यह स्थानीय समुदायों के लिए भी खतरनाक है। इससे नदियों की संरचना को नुकसान होता है, कृषि प्रभावित होती है, और सड़क दुर्घटनाओं जैसी गंभीर घटनाएं भी सामने आती हैं। हुरलूंग पुल के पास अवैध बालू से लदे ट्रैक्टर की टक्कर में युवक की मौत एक बड़ी चेतावनी है, जो प्रशासन के लिए तत्काल कार्रवाई का संकेत देती है।

प्रशासन का मुख्य कार्य जनता की सुरक्षा और समाज में सुव्यवस्था बनाए रखना है। लेकिन जब गुटखा बेचने वाले छोटे दुकानदारों पर फाइन लगाना या मेडिकल स्टोर के बाहर गाड़ियों की हवा निकालने जैसे कार्य बड़े मुद्दों से ज्यादा प्राथमिकता प्राप्त कर लेते हैं, तो यह जनता में असंतोष का कारण बनता है।

यह भी देखा गया है कि डिमना अंचल कार्यालय के पास ही बालू का अवैध भंडारण और बिक्री हो रही है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या प्रशासनिक अधिकारियों को इन गतिविधियों की जानकारी नहीं है, या फिर वे जानबूझकर इन मुद्दों को नजरअंदाज कर रहे हैं?

समाधान के सुझाव

  1. अवैध बालू खनन पर कठोर कार्रवाई: प्रशासन को अवैध खनन के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिए, जिसमें नियमित जांच और दोषियों के खिलाफ कठोर दंड शामिल हो।
  2. स्थानीय शिकायतों पर ध्यान: स्थानीय लोगों की शिकायतों को प्राथमिकता देनी चाहिए और उन्हें विश्वास दिलाना चाहिए कि उनकी समस्याओं को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।
  3. प्राथमिकताओं का पुनर्गठन: छोटी-छोटी व्यवस्थाओं पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, प्रशासन को व्यापक और गंभीर मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

प्रशासन की कार्यशैली में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। जब तक बड़े मुद्दों पर कार्रवाई नहीं की जाएगी, जनता का भरोसा प्रशासन से उठता रहेगा। अवैध गतिविधियों को नजरअंदाज करना न केवल कानून-व्यवस्था के लिए खतरा है, बल्कि यह सामाजिक असंतोष का कारण भी बनता है।

प्रशासन केवल व्यवस्था का दिखावा करने के बजाय वास्तविक समस्याओं के समाधान के लिए ठोस कदम उठाए।

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