शिक्षा

इंसान और जानवर में यही फर्क है।

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हुत समय पहले की बात है, एक संत हुआ करते थे एकनाथ। एक बार सुबह संत एकनाथ अपने शिष्यों के साथ गोदावरी नदी के पास गए। निर्मल जल को देखकर उन्होंने स्नान करने का मन बनाया और स्नान करने के लिए नदी में उतर गए। 

स्नान करते हुए उन्हें थोड़ी ही देर हुई थी की तभी उन्होंने अपने सामने बहता हुआ एक बिच्छू दिखाई दिया जो बहते हुए पानी में डूब रहा था। उन्होंने बिना देरी किये आगे बढ़ कर उसे अपनी हथेलियों पर उठा लिया और किनारे की ओर बढ़ने लगे किंतु स्वभाववश बिच्छू ने उनकी हथेली पर डंक मार दिया। जिससे वह बिच्छू हथेली से छूट कर दुबारा नदी में गिर गया। लेकिन सन्त एकनाथ जी ने बिना देरी किये फिर उस बिच्छू को उठाया और किनारे पर जैसे ही रखने वाले थे की बिच्छू ने फिर डंक मारा। उनके हाथ से फिर बिच्छू गिर गया और नदी में बहने लगा। लेकिन एकनाथ जी ने इस बार उसे उठाया और किनारे पर लेजाकर रख ही दिया ।

दूर बैठा उनका एक शिष्य यह सब दृश्य देख रहा था। उससे रहा नहीं गया तो उसने एकनाथ जी से पूछ ही लिया। उसने बोला- महात्मा में बहुत देर से यह घटना देख रहा हूँ कि एक बिच्छू आपको बार-बार डंक मार रहा है और आप बार-बार उसकी रक्षा कर रहे हैं। महात्मा एक निर्दयी जीव आप को चोट पहुंचा रहा है फिर भी आपने उसपर दया दिखाई यह मेरे समझ से परे है, कृपया मार्गदर्शन करने की कृपया करें।

शिष्य की यह बात सुनकर एकनाथ स्वामी ने बड़ा ही सुंदर जवाब दिया। उन्होंने कहा – इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है पुत्र। ईश्वर ने हम मनुष्यों को अच्छे-बुरे की समझ दी है किंतु इस अबोध जीव को नहीं। वहीं मैं अपने स्वभाव धर्म का पालन कर रहा था और वह अपने स्वभाव धर्म का। बिच्छू का गुण ही डंक मारना है और हम मनुष्यों का गुण ही दया, प्रेम और क्षमा देना है। फिर भला मैं अपने धर्म से कैसे विमुख हो जाता? यही तो फर्क है ‘मनुष्य और अन्य जीवों में।’ 


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