टेक्नोलॉजी

अन्तरिक्ष में हो रही है वर्चस्व की लड़ाई क्योंकि चाँद पर रहने चले हैं धरतीवासी।

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ह कोई कल्पना नहीं बल्कि हकीकत होने जा रहा है। जी हां दोस्तों अब वह दिन दूर नहीं जब चाँद पर भी होंगे मानव की बस्तियां। लेकिन यह बस्तियां आम लोगों के लिए नहीं होंगी बल्कि यह रिसर्चर्स के लिए होगा।

विश्व में आर्थिक रूप से मजबूत सभी देश इस दिशा में कार्य करना आरंभ कर चुके हैं। जिसमें अमेरिका, रूस और चीन अग्रणी देशों की श्रेणी में सबसे आगे हैं। इनमें से तीनों देश इस कीर्तिमान को सबसे पहले हासिल करना चाहता है। जिस वजह से इनमें प्रतिद्वंद्विता की भावना उत्पन्न हो चुकी है।

 

जैसा कि आप सभी जानते हैं द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से दुनियाँ तीन प्रमुख शक्तियों में बंट गई थी। जिसमें सबसे पावरफुल कहे जाने वाले दो ही देश थे पूर्व में सोवियत संघ रूस और पश्चिम में अमेरिका। विश्व में सबसे शक्तिशाली होने का ख़िताब इन दोनों को चाहिए था। दोनों महत्वकांक्षी देश भी हैं। फलस्वरूप कोल्डवार की राह ने सोवियत संघ को टुकड़ों में बांट दिया और रूस थोड़ा कमजोर जरूर हो गया लेकिन उसका दबदबा आज भी कायम है। जहां वर्चस्व कि बात आती है तो साम, दाम, दंड, भेद सब जायज हो जाता है।

यह वर्चस्व की लड़ाई धरती तक ही सीमित नहीं रही बल्कि अन्तरिक्ष तक पहुंच चुकी है। जिसमें अमेरिका ने चाँद पर बस्तियां बसाने के प्रोग्राम को पूरी करने में अपनी पूरी ताकत लगा दी थी वह भी केवल रूस को पीछे करने के लिए। जिस वजह से रूस ने अपनी नीतियों में बदलाव करते हुए चीन से हाथ मिलाने का फैसला कर लिया है। 

अब इन दो देशों की टेक्नोलॉजी मिलकर इस प्रोग्राम पर काम करेंगी। दोनों देशों ने ऐलान भी कर दिया है कि वे अब साथ मिलकर चांद पर साइंटिफिक रिसर्च स्टेशन बनाएंगे।

बता दें कि अमेरिका एक बार फिर इंसान को चांद पर भेजने की तैयारी कर रहा है। वर्ष 2024 में यह मिशन पूरा करने पर कार्य कर रहा है।

अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में अन्तरिक्ष पर पहला झंडा कौन गाड़ता हैं?

रूस और चीन ने साथ में काम करने के लिए एक मेमोरंडम साइन किया है जिसमें इंटरनैशनल साइंटिफिक लूनर स्टेशन मिलकर बनाने की बात कही गई है। 

रूस के अपने एक बयान में कह है कि चाँद पर बनने वाला यह स्टेशन एक एक्सपेरिमेंटल रिसर्च सेंटर होगा जो चांद की सतह या उसकी कक्षा में स्थित होगा। इसका उपयोग भिन्न-भिन्न कार्यों और रिसर्चों के लिए डिजाइन है।

यह सेंटर मानवरहित और मानव के लायक बनाया जाएगा जो कि हर तरह की क्षमताओं से लैस होगा।

आखिर ऐसी क्या बात है जिसकी वजह से अमेरिका और रूस स्पेस प्रोग्राम से अलग हो गए?

बात दें कि कुछ साल पहले अमेरिका की स्पेस एजेंसी रूसी सोयुज स्पेसक्राफ्ट की मदद से अंतरिक्ष में जाया करते थे लेकिन पिछले साल एलन मस्क की कम्पनी SpaceX जो कि एक अमेरिकी कंपनी है के मदद से भेजा। SpaceX के Crew Dragon स्पेसक्राफ्ट की मदद से अपने ऐस्ट्रोनॉट्स भेजे थे। यह भी एक वजह हो सकती है।


लेकिन बड़ी बात यह है कि इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन प्रोग्राम खत्म होने जा रहा है। जिस वजह से ही रूस  अमेरिका से अलग होना चाहता है। वहीं रूस ने अमेरिका के साथ हुए आर्टेमिस समझौते को भी नहीं माना है जिसका उद्देश्य चांद पर अंतरराष्ट्रीय एक्सप्लोरेशन को बनाये रखना था। जिसे लेकर रूस ने साफ तौर पर कहा है कि यह अमेरिका का अपना निजी स्वार्थ था और यह अमेरिका-केंद्रित समझौता था।

अमेरिका और रूस के बीच वर्चस्व को लेकर चीन का फायदा अवश्य हो रहा है।  चीन भी अंतरिक्ष की रेस में आगे निकलना चाहता है। जैसा कि आप जानते हैं चीन और अमेरिका के यान मंगल ग्रह पर जीवन की खोज में भेजें गए हैं। 

चीन का तियानवेन-1 प्रोब मंगल ग्रह की कक्षा का चक्कर लगा रहा है जो मई या जून में मंगल की सतह पर पहुंचेगा। अब तक उसने लाल ग्रह की बेहद ही स्पष्ट तस्वीरें भेजी हैं। 

वहीं, अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA द्वारा भेज गया Perseverance रोवर मंगल ग्रह के Jezero Crater पर लैंड हो चुका है। उतरते ही उसने इस लाल ग्रह पर जीवन होने के सबूतों की खोज चालू कर दी है। 

भारत भी अंतरिक्ष अनुसंधान को लेकर सजग है और आने वाले दिनों में भारत इन देशों को कड़ी टक्कर देगा। भारतीय टेक्नोलॉजी की सबसे बड़ी और अच्छी बात यह है कि यह आधुनिक उपकरणों की सहायता से बहुत ही कम खर्चे में अपने मिशन को पूरा करने में सक्षम है।


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