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अक्षय नवमी के दिन कचहरी बाबा मंदिर में आंवला पेड़ की हुई पूजा, बंटे भोग। जानें अक्षय नवमी का धर्मिक महत्व।

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Jamshedpur : शनिवार 13 नवम्बर, 2021

अक्षय नवमी के दिन जमशेदपुर के जिला कार्यालय क्षेत्र में स्थित कचहरी बाबा मंदिर में आंवला पेड़ की विशेष पूजा अर्चना की गई। उपस्थित सभी श्रद्धालुओं एवं आगंतुकों को प्रसाद के रूप में भोग का वितरण किया गया। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में मंदिर समिति और सदस्यों का प्रमुखतः से योगदान रहा।

कचहरी बाबा मंदिर परिसर में प्रसाद ग्रहण करते श्रद्धालु

कचहरी बाबा मंदिर परिसर में प्रसाद ग्रहण करते श्रद्धालु-2

अक्षय नवमी क्या है?

कार्तिक मास की नवमी तिथि को अक्षय नवमी, धात्री नवमी और कूष्मांडा नवमी 
के नाम से जाना जाता है।

अक्षय नवमी का धार्मिक महत्व क्या है?

धार्मिक दृष्टि से कार्तिक मास की अक्षय नवमी का महत्व अक्षय तृतीया से कम नही है। दिवाली पर यदि भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा नही कर पाए हैं तो आज के दिन उनकी पूजा करते हुए दीपावली के दिन की तरह ही लक्ष्मी-नारायण की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

ऐसी मान्यता है कि अक्षय नवमी के दिन किए गए पुण्य का शुभ फल प्राप्त होता है।
यह दिन अक्षय तृतीया के समान ही फलदायक होता है।

अक्षय नवमी के दिन विशेष ईश्वरीय आशीर्वाद एवं शुभ फल प्राप्ति के लिए क्या किया जाना चाहिए?

अक्षय नवमी के दिन विशेष पूजा के लाभ का उल्लेख ग्रंथों में मिलता है। यह पूजा आंवले के पेड़ की जाती है तथा प्रसाद के रूप में आंवला लक्ष्मी नारायण को अर्पित किया जाता है। आंवले के पेड़ की छाया में भोग (खिचड़ी एवं खीर) ग्रहण करना और उसे बांटना भी विशेष फलदायक माना जाता है।

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आंवला और आंवला का वृक्ष

अक्षय नवमी के दिन आंवला क्यों महत्वपूर्ण है?

अक्षय नवमी की पूजा के दिन आंवला को महत्वपूर्ण माना गया है। धार्मिक दृष्टि से माना जाता है कि आंवला तुलसी और बेल दोनों के गुणों को धारण करने वाला एकमात्र पेड़ है।  ऐसा माना जाता है कि इस दिन आंवले के पेड पर त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) अपनी धर्मपत्नियों (सरस्वती, लक्ष्मी और देवी पार्वती) संग वास करते हैं।
वहीं स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह वृक्ष अधिक महत्वपूर्ण है। यह युवाअवस्था एवं स्वास्थ्यवर्धक जीवन को बनाये रखने में सहायक है।

धार्मिक ग्रंथों में कई कथाएं विद्दमान हैं जो बतलाती है कि आंवला की उत्पत्ति कैसे हुई?

ग्रन्थ बतलाते हैं कि एक बार कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को ब्रह्माजी भगवान विष्णु के ध्यान में लीन थे। अचानक भक्ति भाव भरे उनके नेत्रों से आंसू बहने लगे और आंसू की दो बूंदे धरती पर गिर गई। यह आंसू जहां गिरे वहां आंवले का वृक्ष प्रकट हो गया। इसलिए भगवान विष्णु को आंवला अत्यंत प्रिय है और आज के दिन आंवला की पूजा की जाती है।

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