कोरोना वायरस को धरतीवासीयों ने अच्छी तरह से जान लिया है। लेकिन क्या इसके परिवार को भी उतनी ही अच्छी तरह से समझा है।
जी हाँ, कोरोना का कोई छोटा सा नहीं बल्कि एक बड़ा परिवार भी है। कोरोना तो अब परदादा बन चुका है। उसके बच्चे, नाती-पोते सभी आ गए हैं धरती पर। ये तो रही समझने और समझाने की बात।
वैज्ञानिक तरीके से कहे तो कोरोनावायरस म्युटेड होकर नए वेरिएंट में बदल-बदल कर लोगों को प्रभावित कर रहा है।
ये COVID-19 के वेरिएंट का क्या मतलब है?
जैसा कि आप जानते हैं वायरस हमेशा बदलते रहते हैं। वे अपने आप को अपडेट करते रहते हैं। जिससे वायरस एक नए रूप में आता है। और यह रूप वायरस की क्षमता और प्रभाव को भी बदलता है। लेकिन कभी-कभी वायरस बिल्कुल अलग तरह से पेश आते हैं। इसी प्रकार कोरोना भी खुद को भौगोलिक परिस्थितियों में बदल रहा है और इन्हीं बदले हुए रूप को कोरोना के वेरिएंट के तौर पर देखा जा रहा है। हमारे वैज्ञानिक इस पर लगातार रिसर्च कर रहें हैं की COVID-19 के दूसरे वेरिएंट किस प्रकार से लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
कोरोना वायरस दुनियां में कैसे फैला?
ऐसा माना जाता है कि कोरोना वायरस या कोविड-19, चीन के वुहान शहर से निकल कर पूरी दुनियां में फैला है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि चमगादड़ ही कोरोना वायरस का मूल स्रोत है। कुछ लोगों के द्वारा यह दलील पेश की जा रही है कि चीन के वुहान शहर में ‘जानवरों की एक मंडी’ है जहां से यह वायरस कुछ इंसानों में पहुंचा और उसके बाद पूरी दुनिया में तेजी से फैल गया।
वहीं कुछ लोगों का यह दावा भी है कि चीन ने इस वायरस को अपने लैब में तैयार करवाया है। जो कि एक वैज्ञानिक परीक्षण के दौरान गलती से वैज्ञानिकों के संपर्क में आया, फिर पूरी दुनियां में फैल गया।
लेकिन कुछ वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि कोरोना वायरस अभी हाल ही में सामने नहीं आया है। इस वायरस का एक बड़ा परिवार हैं जो लंबे समय से हमारे आसपास हैं। उनमें से कई हल्की खांसी से लेकर सांस की गंभीर बीमारियों तक कई तरह की बीमारियों का कारण बन सकते हैं।
कोरोना वायरस की संरचना कैसी होती है?
कोरोनावायरस का इलेक्ट्रॉन माइक्रोग्राफ देखने पर इसमें पाया गया है-
लाल- स्पाइक प्रोटीन (एस), ग्रे- लिपिड बिलीयर लिफाफा, पीला- लिफाफा प्रोटीन (ई), नारंगी- झिल्ली प्रोटीन (एम) है।
सभी जीवों के शरीर में डीएनए (DNA) मौजूद होता है। लेकिन कोरोना वायरस आरएनए (RNA) से बना है। यह एक ऐसा वायरस है जो स्तनधारियों और पक्षियों में बीमारियों का कारण बन रहा है। यह वायरस श्वसन ग्रंथियों द्वारा शरीर को संक्रमित करता है। यह संक्रमण हल्के से लेकर घातक तक हो सकता हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि यह वायरस सबसे पहले उस समय जानकारी में आया जब उत्तरी अमेरिका में वर्ष 1920 के दशक में पालतू मुर्गियों में श्वसन संक्रमण की समस्या उत्पन्न हुई।
कोविड -19 को लेकर कुछ वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि यह शायद कुछ समय पहले जानवरों में रहा है। और जानवरों से इंसानों के संपर्क में आया।लेकिन यह वायरस दुनिया के लिए नया नहीं है किन्तु, इंसानों के लिए नया है।
वहीं जब साल 2019 में वैज्ञानिकों को पता चला कि लोगों में बढ़ रहा यह संक्रमण अत्यधिक जानलेवा है तो उन्होंने इसे नोवेल कोरोनावायरस का नाम दिया। और इस स्ट्रेन को SARS-CoV-2 कहा गया।
कोविड -19 वायरस जब किसी को संक्रमित करते हैं, तो वे शरीर के अंदर फेफड़े की कोशिकाओं से जुड़ जाते हैं और उनके अंदर आते ही अपने आरएनए की प्रतियां बनाते हैं यानी कॉपी करते हैं। और यदि कोई कॉपी बनने में कोई गलती होती है तो सीधे वायरस का आरएनए बदल जाता है। वैज्ञानिक हुए इन परिवर्तनों को उत्परिवर्तन कहते हैं। उनमें यह परिवर्तन अचानक से या किसी दुर्घटना से होते हैं। इसलिए यह वायरस किसी व्यक्ति के शरीर को उसकी स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए प्रभाव डालता है।
कोरोना वायरस के नए वेरियंट आने से लोगों के मन में यह बात अब आने लगी है कि विश्व में कितने कोरोना वायरस के वेरियंट मौजूद हैं?
कोरोना के नए परिवार के सदस्य या वेरियंट हैं- अल्फा कोरोनावायरस, बीटा कोरोनावायरस, गामा कोरोनावायरस, डेल्टा कोरोनावायरस, लेम्बडा कोरोनवायरस और अभी यह अपना वंश बढ़ा ही रहा है।
बता दें कि वर्ष 2019 से अब तक कोरोना कई बार म्युटेड हो चुका है।
अल्फा (बी.1.1.7)– वर्ष 2020 के अंत में, विशेषज्ञों के एक दल ने दक्षिण-पूर्वी इंग्लैंड के लोगों में यह वायरस पाया गया। वहीं यू.एस. वैज्ञानिकों का यह अनुमान है कि यह वेरियंट अधिक खतरनाक है जो कि आसानी से फैल सकता है। अल्फा वैरिएंट खासकर स्पाइक प्रोटीन पर अधिक असर डालता है। जो वायरस को अपने मेजबान को संक्रमित करने में पूरी तरह से मदद करता है।
बीटा (बी.1.351)- कोरोना का यह वेरियंट दक्षिण अफ्रीका और नाइजीरिया सहित अन्य देशों में पाया गया है। यह बड़ी आसानी से फैलता है साथ ही यह अधिक खतरनाक है।
गामा (पी.1) – इस वेरियंट की जानकारी जनवरी 2021 में, हुई और यह ब्राज़ील के उन लोगों में देखा गया जिन्होंने जापान की यात्रा की थी। यह वेरियंट पहले के वेरियंट की तुलना में अधिक संक्रामक और खतरनाक है।
डेल्टा (बी.1.617.2) – यह वेरियंट वर्ष 2020 के दिसंबर में भारत में पाया गया। और अप्रैल 2021 आते-आते तेजी से वृद्धि कर गया। इस वायरस के अन्य मामले यू.एस., सिंगापुर, यूके और ऑस्ट्रेलिया
सहित 43 अन्य देशों में पाया गया है। वैज्ञानिक शोध से यह भी पता चला है कि स्पाइक प्रोटीन में बदलाव अन्य COVID-19 वेरिएंट की तुलना में डेल्टा वेरिएंट को 50% अधिक ट्रांसमिसिबल बना सकता है।
लैम्ब्डा (Lambda) – लैम्ब्डा वेरियंट पहली बार दक्षिण अमेरिका के पेरू में पहचाना गया। जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 14 जून, 2021 को ग्लोबल वैरिएंट बताया। साथ ही इस नए वेरियंट की पहचान 29 देशों में हुई है। अप्रैल 2021 से लेकर अब तक पेरू में इस वेरियंट के 81% मामले सामने आए हैं।
11 मई, 2021 को इसे पहली बार भारत में पहचाना गया था। जिसे वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट के रूप में पहचान दी गई। दुनिया भर में यह तेजी से फैला जिस वजह से WHO ने इसे ‘वैरिएंट ऑफ कंसर्न’ के तौर पर वर्गीकृत किया।
कोरोना वायरस के विभिन्न रूपों, वेरियंट के बारे में चीन में एक शोध के द्वारा यह बात सामने आया की मनुष्यों में पाए जाने वाले कोरोना वायरस सभी एक जैसे नहीं होते हैं। उनमें अंतर होता है। ऐसी उम्मीद है कि भविष्य में COVID-19 स्वयं को बदलता रहेगा और विशेषज्ञों को नए वेरिएंट मिलते रहेंगे। यह पूरी तरह से कहना सही भी है और नहीं भी। क्योंकि बदलाव होता रहता है और होगा वही जो वायरस चाहते हैं।
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Bahut badhiya report bhaiya,
Es report se bahut Kuch information Mila, thanks
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।