क्राइम
🔍 Police refused: “जब पुलिस ने किया इनकार, मां ने की जांच” – एक मां की जिद ने किया दो हत्याओं का पर्दाफाश!

Police refused, the mother investigated – A mother’s insistence exposed two murders!
📍 ठाणे से उठी एक मिसाल: फरीदा खातून की इंसाफ की जिद ने हिला दी पुलिस और समाज की कार्यशैली
🧕 बेटा बोला था, “10 मिनट में लौटता हूं” – मां 10 साल तक तलाशती रही
CRIME DAIRY : 2015 की गर्मियों का वो दिन, 17 अप्रैल। महाराष्ट्र के ठाणे के मुंब्रा इलाके में 17 वर्षीय सोहेल कुरैशी अपनी मां से कहकर निकला – “10 मिनट में आता हूं…” लेकिन वो लौटकर कभी नहीं आया।
सिंगल मदर फरीदा खातून के लिए यह इंतजार एक डरावने सफर की शुरुआत थी। जब उन्होंने बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने पुलिस थाने का रुख किया, तो उन्हें सिर्फ यह जवाब मिला – “लड़का यहीं कहीं होगा, लौट आएगा।”
🚔 पुलिस की सुस्त रवैये ने मां को बना दिया ‘जासूस’
पुलिस की बेरुखी ने एक मां को मजबूर कर दिया कि वो खुद ही अपने बेटे की खोज में जुट जाए। फरीदा, जो पेशे से नर्स थीं, हर संभावित जगह गईं – बेटे के दोस्तों से पूछताछ की, जेलों के बाहर घंटों बैठीं, दरगाहों तक खोज की।
मुबीन शेख नामक एक पत्रकार की मदद से उन्होंने एक-एक सुराग जोड़े। धीरे-धीरे उन्हें शक हुआ कि सोहेल का गायब होना अकेला मामला नहीं है – उसी दिन से उसका एक दोस्त शब्बीर भी लापता था।
🕵️♀️ मां, पत्रकार और एक और मां की टीम ने खोला राज
शब्बीर की मां हसीना और पत्रकार मुबीन के साथ मिलकर फरीदा ने दो संदिग्धों के नाम पता लगाए – दीपक वाल्मीकि उर्फ सैम और मोहम्मद चौधरी उर्फ बाबू। ये दोनों सोहेल और शब्बीर के दोस्त थे।
तीनों ने क्राइम ब्रांच जाकर सबूतों के साथ गुहार लगाई। इस बार पुलिस ने जांच शुरू की।
🔪 सामने आई दिल दहला देने वाली सच्चाई
पूछताछ में खुलासा हुआ कि दीपक और मोहम्मद ने मिलकर सोहेल और शब्बीर की हत्या कर दी थी।
- शब्बीर की बहन का अफेयर दीपक से था, और जब शब्बीर ने विरोध किया, तो उसकी हत्या कर दी गई।
- सोहेल को शक के आधार पर मारा गया, क्योंकि दीपक को लगा कि अफेयर की जानकारी उसी ने दी होगी।
दोनों की लाशों को टर्भे इलाके के मैदान में दफन कर दिया गया था। नवंबर 2015 में पुलिस ने वहीं से उनके अवशेष बरामद किए।
🥇 फरीदा की जीत – दो बेटों को इंसाफ और कई परिवारों को उम्मीद
अगर फरीदा हार मान लेतीं, तो ये दो हत्याएं अनसुलझी रह जातीं। उनकी जिद, जज़्बा और ममता ने उन्हें न सिर्फ अपने बेटे के लिए इंसाफ दिलाया, बल्कि एक सामाजिक उदाहरण बना दिया।
बाद में, फरीदा को कई सम्मानों और पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्होंने एक संगठन शुरू किया जो लापता लोगों की खोज में परिवारों की मदद करता है।
📌 विश्लेषण: इस घटना से क्या सीख मिलती है?
👮♀️ पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल
- जब एक मां ने सुराग खोजे, अपराधी पकड़े गए – यह बताता है कि पुलिस की शुरुआती प्रतिक्रिया कितनी लापरवाह थी।
- लापता मामलों में पुलिस अक्सर ‘भाग गया होगा’ या ‘अपने आप आ जाएगा’ जैसे रवैये पर अटक जाती है।
👥 सरकार और प्रशासन की जवाबदेही
- क्या हमारे पास लापता बच्चों के लिए कोई तेज और वैज्ञानिक खोज प्रणाली है?
- क्या हर जिले में ‘मिसिंग सेल’ जैसी व्यवस्था सही से काम कर रही है?
💛 इंसानियत की मिसाल – एक मां, एक पत्रकार और एक संघर्षशील औरत
फरीदा, हसीना और मुबीन – तीन आम लोगों ने वो कर दिखाया जो एक सिस्टम नहीं कर सका। ये घटना बताती है कि
अगर नीयत साफ हो और जज्बा मजबूत, तो इंसाफ दूर नहीं।
🔚 निष्कर्ष: फरीदा सिर्फ एक मां नहीं, एक मिशन हैं।
आज भी अगर कोई मां अपने गुमशुदा बेटे के लिए रास्ता तलाश रही है, तो फरीदा की कहानी उसे रोशनी दे सकती है।
ये सिर्फ हत्या की कहानी नहीं, ये एक मां की जंग है – सिस्टम से, समाज से और तक़दीर से।
👉 क्या अब भी हम पुलिस सुधार और जवाबदेही की बात को नजरअंदाज कर सकते हैं?