महाराष्ट्र के एक गाँव में एक सद्पुरुष रामशास्त्री रहा करते थे। वे अत्यंत ही सादगीपूर्ण तरीके से रहते थे। और यही सीख उन्होने अपनी पत्नी को भी दिया था।
एक बार की बात है उनकी पत्नी को पेशवा के यहां से किसी खास उत्सव हेतु निमंत्रण आया। उनकी पत्नी ने इस उत्सव में हिस्सा भी लिया। उत्सव समाप्त होने के उपरांत वापस जाते समय पेशवा की रानी ने उन्हें बहुमूल्य वस्त्र और आभूषण दिये। लेकिन उसने लेने से मना कर दिया।
अब रानी ने बड़ा आग्रह किया जिसे वह टाल न सकी और उन्हें पहिनकर अपने घर आ गई।
रामशास्त्री धर के बाहर ही खड़े होकर अपनी पत्नी की राह देख रहे थे।
थोड़ी देर में इन्होंने देखा उनकी पत्नी बहुुमूल्य वस्त्र और आभूषण पहनकर आ रही है। उसे आते देख रामशास्त्री ने घर का द्वार अन्दर से
बन्द कर लिया। यह देख उनकी पत्नी को कुछ समझ न आया। तब उनकी पत्नी ने द्वार खोलने के लिए दरवाजा खटखटाया।
अंदर से रामशास्त्री बोले – “कौन है?”
जवाब में उनकी पत्नी ने कहा- “मै”
रामशास्त्री- “मैं कौन?”
उनकी पत्नी ने कहा- “मैं आपकी पत्नी।”
रामशास्त्री ने चिढ़ कर कहा – “तुम मेरी पत्नी नहीं हो। मेरी पत्नी बहुमूल्य वस्त्र नहीं पहनती है और न ही कीमती आभूषण ही धारण करती है।”
इस बात को सुनकर उनकी पत्नी समझ गई कि माजरा क्या है? वह उसी समय वापस राजमहल आई। और रानी को अपने पति के स्वभाव के बारे में सबकुछ बताया और आग्रह करते भेंट किये हुए आभूषण व वस्त्र को वापस दे दिया। अब नित्य की तरह साधारण कपड़े पहनकर घर आयी।
साधारण वस्त्र में देरवकर रामशास्त्री खुश हुए और तब जा कर उसे अन्दर आने दिया।
पढ़ें यह खास खबर –
मंगल ग्रह पर लोगों को भेजने वाले प्रोजेक्ट पर काम करने वाले कर्मचारियों को भूखों भी रहना पड़ा था।
टाटा स्टील वर्क्स क्षेत्र में बोन्साई और हर्बल पार्क बनाया गया।