Jamshedpur : सोमवार 30 जनवरी, 2023
आदिवासी सेंगेल अभियान (ADIVASI SENGEL ABHIYAN) के तहत महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को लिखा बिमो मुर्मू ने पत्र। पत्र का विषय है – जैनों के कब्जे से मरांग बुरु को मुक्त करना और 2023 साल में सरना धर्म कोड लागू करने संबंधी। आदिवासी गेल अभियान झारखंड बंगाल बिहार, उडीसा, असम आदि के अलावे नेपाल, भूटान, बांग्लादेश में भी आदिवासी सशक्तिकरण के लिए कार्यरत है।
पत्र के माध्यम से आदिवासी गेल अभियान ने निम्नलिखित मांगे मांगी है : –
1) प्रकृति पूजक आदिवासियों को 2023 से हर हाल में सरना धर्म कोड देना है, लेना है। चूंकि अधिकांश आदिवासी हिन्दू, मुसलमान, ईसाई आदि नहीं है और 2011 की जनगणना में जैन धर्म वाले 44 लाख थे तो सरना धर्म लिखाने वाली की संख्या 50 लाख से ज्यादा थी।
2) झारखण्ड के पारसनाथ पहाड़ में अवस्थित आदिवासियों के ईश्वर मरांग बुरु को अविलंब जैनों के कब्जे से मुक्त करना है, और आदिवासियों को सुपुर्द करना है। भारत देश के सभी पहाड़ पर्वतों को आदिवासियों को सौपा जाए क्योंकि पहाड़ी में आदिवासियों देवी देवता] रहते है और पहाड़ों की सुरक्षा तथा प्रकृति पर्यावरण और क्लाइमेट की रक्षा आदिवासी समाज कर सकता है।
3) झारखंड प्रदेश अबुआ दिशोम अबुआ राज है। आदिवासियों का गढ़ है। यहां संविधान कानून मानव अधिकारों को लागू कर इसे शहीदों के सपनों को सच बनाना है। जो आज लूट, झूठ, भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है।
4) झारखंड प्रदेश में एकमात्र बड़ी आदिवासी भाषा संताली, जो आठवीं अनुसूची में भी शामिल है, को अविलम्ब झारखण्ड की प्रथम राजभाषा का दर्जा दिया जाए और बाकी आदिवासी भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए।
(5) असम अंडमान के झारखंडी आदिवासियों को अविलम्ब एसटी का दर्जा दिया जाए।
(6) आदिवासी स्वशासन व्यवस्था ट्राइबल सेल्फ रूल सिस्टम में जनतंत्र और संविधान को समाहित करते हुए इसमें सुधार लाकर इसे अविलम्ब समृद्ध किया जाए।
इस सम्बन्ध में आदिवासी गेल अभियान का कहना है की –
यदि 30 जनवरी 2023 तक संबंधित सरकारों द्वारा आदिवासियों के ईश्वर- मराग बुरु (पारसनाथ पहाड़) जैनों के कब्जे से मुक्त नहीं किया जाएगा और आदिवासियों को सुपुर्द नहीं किया जाएगा तथा देश भर के महान पर्वतों को आदिवासियों को नहीं सौपा जाएंगा और 2023 में प्रकृति पूजक आदिवासियों के धर्म-सरना धर्म कोड लागू नहीं किया जाएगा तो आदिवासी संगेल अभियान अन्य तमाम आदिवासी समाज के सहयोग से 11 फरवरी 2023 से राष्ट्रीय स्तर पर अनिश्चितकालीन रेलरोड चक्का जाम को बाध्य है। चूंकि यह हमारा संवैधानिक अधिकार है।