ऑस्ट्रेलिया : सोमवार 18 अगस्त, 2021
अपने बेबाक बातों से अपना पक्ष रखने वाले सांसद क्रेग केली ने एक बार फिर अपने सक्रिय और संवेदनशील रवैये से विश्व के राजनीतिक और सामाजिक पटल पर फार्मा कंपनियों की मनमानी और सरकार के सहयोग पर व्यंग्यात्मक तरीके से प्रश्न किया है।
यह कदम उन्हें एक मजबूत राजनीतिज्ञ के तौर पर दर्शाता है। सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले सांसद क्रेग केली ट्विटर पर अपने मन की बातों को भी खूब शेयर करते हैं।
आज उन्होंने बिग फार्मा और ऑस्ट्रेलिया की केंद्र सरकार के बीच चल रहे भाई चारे को दुनियाँ के सामने लाकर रख दिया है। इससे यह तो साफ हो जाता है कि भ्रष्टाचार ने ऑस्ट्रेलिया में भी अपनी जड़ें मजबूती से जमा ली हैं।
इस विषय पर उन्होंने ट्विटर बेहतर ट्वीट किया है एक ट्वीट में उन्होंने कहा
‘ग्लेडिस की ICAC पब्लिक हियरिंग के साक्ष्य बताते हैं कि अनुदान आवेदन में वाग्गा गन क्लब की “देखभाल” की गई।
सवाल उठता है कि क्या संघीय सरकार और नौकरशाहों द्वारा बिग फार्मा की “देखभाल” की जा रही है।’
वही उन्होंने अपने दूसरे ट्वीट में अपनी बातों को साफ करते हुए कहा
‘क्या सरकार, बिग फार्मा और स्वास्थ्य नौकरशाहों के बीच अस्वस्थ संबंध हैं ??
सरकार, बिग फार्मा और स्वास्थ्य नौकरशाहों के बीच जो भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संबंध हो, उसकी तत्काल जांच की आवश्यकता है।’
अब इन बातों का क्या अर्थ आप भली भांति समझ चुके होंगे।
Guardian News में प्रकाशित एक खबर को शेयर करते हुए सांसद केली ने अपने पक्ष को मजबूती प्रदान कर दी है। आइये जानते हैं कि गार्जियन न्यूज के विश्लेषक इस विषय पर क्या कहते है?
विशेषज्ञों का मानना है कि फार्मास्युटिकल उद्योग ऑस्ट्रेलियाई राजनीतिक दलों को लाखों का दान करता है। दवा कंपनियां लॉबीवादियों की विशाल संख्याओं को रोजगार भी देती हैं और उनका प्रभाव ऑस्ट्रेलिया में दवा की कीमतों में हो रही बढोत्तरी को योगदान देता है।
यह हाल केवल ऑस्ट्रेलिया के ही नहीं है। विश्व के लगभग प्रत्येक देश का यही हाल है। हमारा देश भारत भी इससे अछूता नहीं है। सस्ती दवाएं उपलब्ध तो है लेकिन डॉक्टर सस्ती दवा जैसे लिखना ही नहीं जानते।
लगभग 72 अलग-अलग फार्मास्यूटिकल कंपनियां सरकारी निर्णयों और नीति को प्रभावित करने के लिए भाड़े पर लॉबीस्ट चुनते हैं। दान देने और प्राप्त करने वाली संस्थाओं से प्राप्त कई आंकड़ों पर इन्होंने अपना निर्णय बताया है। जिसका विश्लेषण करते हुए इसकी पुष्टि की जा सकती है। वर्ष 1998-99 और 2016-17 में फार्मेसी कंपनियों ने उदार, राष्ट्रीय और श्रम पार्टियों को $ 4.7m दान किया था।
दान देने की सँख्या अब और बढ़ गई है।
सवाल यह उठता है कि जब सरकारें दान पर टिकी हो तो निष्पक्ष न्याय और व्यवस्था बनाए रखना क्या कठिन नहीं होगा?
Evidence at Gladys’ ICAC Public Hearings suggests that the Wagga gun club got “looked after” in a grant application
The question arises as to whether Big Pharma is being “looked after” by Federal Govt & bureaucrats
Time for a #FederalICAC NOW#auspolhttps://t.co/8cs4yYKPge
— Craig Kelly MP (@CraigKellyMP) October 18, 2021
Is there an unhealthy relationship between Govts, Big Pharma & health bureaucrats ??
Investigation urgently needed into whatever direct & indirect links there may be between Govts, Big Pharma & health bureaucrats#RoyalCommission#FederalICACNowhttps://t.co/lfwOa8sppj
— Craig Kelly MP (@CraigKellyMP) October 18, 2021
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