Chandil : बृहस्पतिवार 30 जून, 2022
आज दिनांक 30 जून को ए.आई.डी.एस.ओ एवम् ए.आई.डी.वाई.ओ के संयुक्त तत्वाधान में हूल दिवस का कार्यक्रम चांडिल गोल चक्कर स्थित सिद्धू कान्हू चौक पर मर्यादा पूर्वक मनाया गया। कार्यक्रम की शुरुआत ए आई डी वाई ओ के राज्य सचिव हराधन महतो द्वारा सिद्धू कान्हू की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर किया गया।
उन्होंने कहा कि आज से 165 वर्ष पहले जब पूरे भारत में ब्रिटिश हुकूमत का राज था। लोग कहते थे कि अंग्रेजी शासन का सूरज कभी अस्त नहीं होता है, वैसे परिस्थिति में चंद लोगों ने अंग्रेजी राज सत्ता से संघर्ष किया, सिद्धू -कान्हू, चांद, भैरव, फूलो, झानो जैसे झारखंड के क्रांतिकारी शहीदों ने जमींनदारी, अतिरिक्त लगान, जबरन वसूली, अत्याचार के ख़िलाफ़ ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संघर्ष किया।झारखंड के संथाल परगना में मशहूर संथाल विद्रोह जिसे हूल विद्रोह के नाम से भी जानते हैं,1855 से 1856 तक 1 वर्ष तक सिद्धू कान्हू के नेतृत्व में अपने जल जंगल जमीन को बचाने के लिए 15,000 से अधिक आदिवासी शहीद हो गए थे।
सिद्धू कान्हू ने अपनी जमीन जंगल को बचाने के लिए अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ आवाज उठाया था। सोवियत संघ के नायक ने हूल विद्रोह को भारत की पहली जनक्रांति का नाम दिया था, क्योंकि भारत में इससे पहले इतने बड़े स्तर पर अंग्रेजो कर खिलाफ आम जन, आदिवासियों ने विद्रोह नहीं किया था।वर्तमान के हालात में भी हुल की जरूरत है क्युकी कही ना कही जबरन जंगलों को कटाई की जा रही है, गरीबों को उनकी जमीन से बेदखल किया जा रहा है। उनकी मूलभूत सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है, स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन, आवास के लिए लोगो को अपनी जान तक देनी पड़ रही है और चंद मुट्ठी भर लोगो के हाथो में सभी संसाधन को सौंप दिया जा रहा है।
साथ ही छात्र संगठन के चांडिल लोकल कमेटी इंचार्ज युधिष्ठिर प्रमाणिक ने कहा कि कुछ लोग इसे एक जाति विशेष की विद्रोह की उपमा देते हैं। यह बिल्कुल असत्य है और झूठी बात है, हुल विद्रोह में सभी समुदाय के लोगों ने अपनी कुर्बानिया दी थी, चाहे वह लकड़ी काटने वाला हो या फिर लोहे से तीर बनाने वाला हो। तथा साथी मार्सल हांसदा ने गीत कि प्रस्तुति दी।
आज के कार्यक्रम में उदय तंतुबाई, युधिष्ठिर प्रामाणिक, मार्शल हांसदा, प्रदीप मुर्मू, राजा प्रामाणिक, सिद्धू मुर्मू, कान्हु मुर्मू, राकेश अन्य सदस्य उपस्थित थे।