तिजारा, राजस्थान: निराश्रित गौवंशों के संरक्षण के लिए तिजारा के सूरजमुखी में बनी श्री मोनी बाबा गौशाला ने नस्ल सुधार को लेकर अनूठी योजना पर काम शुरू किया है। प्रबंधन कमेटी ने आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा के बाद गौशाला में नस्ल सुधार पर प्रयोग शुरू किया है। इससे दुधारू नस्ल के गौवंश से एक ओर जहां गौशाला आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सकेंगे वहीं, दूसरी ओर दुग्ध उत्पादकता बढ़ने पर गौवंशों को निराश्रित छोड़ देने की प्रथा में भी कमी आएगी।
निराश्रित गौवंशों के संरक्षण के लिए बनी श्री मोनी बाबा गौशाला का संचालन जनवरी 2008 में शुरू हुआ था। गौशाला में वर्तमान समय में लगभग 700 से अधिक निराश्रित गौवंश संरक्षित हैं। गौशाला का प्रबंधन कमेटी करती है। गौशाला में अधिकांश गाये आमतौर पर 1.5 लीटर से 3 लीटर तक दूध देती है। गौ संवर्धन से ज्यादा दुध देने की गायों की क्षमता बढ़ेगी।
कम दुग्ध उत्पादकता और इनके चारे-भूसे पर अधिक खर्च होने के कारण लोग इन्हें निराश्रित छोड़ देते हैं। इन गौवंशों की नस्ल सुधार और गौशाला की आर्थिक आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से आठ महीना पहले गौशाला ने उत्कृष्ट देसी नस्ल गीर, थारपारकर, राठी एवं हरियाणा नस्ल के सांड मंगाए थे। इस प्रयोग पर कुछ समय पूर्व काम शुरू हुआ है जिनका दो वर्ष में परिणाम सामने आने लगेंगे। वर्तमान समय में सभी गायो का गर्भाधान इन्हीं देशी नस्ल के सांडों द्वारा किया जा रहा है।
गाय एक औषधि
गौशाला कमेटी के सचिव देशपाल यादव ने बताया कि देशी गाय एक चलता फिरता औषधालय होता है। देसी गाय का दुध, घी, दही, छांछ अमृत है। गौमूत्र और गोबर से चर्म रोग, पेट दर्द, हदय रोग, क्षय रोग, यकृत रोग, मोटापा, नासुर जैसे रोगो से छुटकारा मिलता है।
रिपोर्टर: मुकेश कुमार शर्मा भिवाड़ी अलवर राजस्थान