प्रेम गीत
मुद्दत की प्यास है होठों पे जिस तरह….
मेरी आंखें ढूंढे तुझे बेवजह हर जगह।
एक पल भी दूर रहना है
मुस्किल तुमसे,
सपनों की ख्वाहिशें होती हैं जिस तरह….
मेरी आखे ढूंढें तुझे बेवजह हर जगह।
ख़ुश किस्मती है मेरी जो है तू पास मेरे,
दरिया को किनारे की तलाश हो जैसे,
ना मुक्कम्मल जहां होगा ना सबेरा,
तू रूठी तो हर तरफ पसरा अंधेरा होगा,
चांद भी दुहाई देंगे मेरी मुहब्बत की
जो तू है तो जिंदगी में सबेरा मेरा….
मेरी आंखें ढूंढे तुझे बेवजह हर जगह।
सिलसिले चाहत के अब है तेरे साथ,
दोनों के हाथों में है – अमन का हाथ,
वो चलना उठा के नाज़ुक से पैरों को,
मैली ना कर दें मिट्टी उस अंबर को,
जो देखता हूं मैं, समझती हूं तुम,
बस, शिकायतों का सिलसिला यहीं, थम जाने दो,
यूँ बेरुखी ना हो अब कहीं, कोई जगह, इस कदर,
मेरी आंखें ढूंढे तुझे बेवजह हर जगह।
– दीपक मिश्रा