एक बार नारद जी बैकुंठ भ्रमण को आये। तब उन्होने देखा भगवान विष्णु चित्र बनाने में मग्न थे।भगवान विष्णु ने नारद जी को भी नहीं देखा। विष्णु जी का यह व्यवहार देख नारद जी को बड़ा अपमानजनक लगा। वे सीधे लक्ष्मी जी के पास गए और पूछा- “भगवन इतना मग्न होकर किसका चित्र बना रहे हैं? इसपर लक्ष्मी जी ने कहा- ” अपने परम भक्त का।”
यह सुन नारद जी बहुत खुश हुए उन्हें लगा उनसे बड़ा भक्त इस संसार में भला और कौन हो सकता है। पास जाकर उन्होंने जब देखा वह चित्र किसी अपरिचित धरती वासी का बना रहे थे। और वह भी देखने में बहुत ही गंदा महसूस हो रहा था, उसके कपड़े पुराने, फटे हुए दिख रहे थे, शरीर पर गंदगी साफ झलक रही थी। यह देख वे तिलमिलाते हुए पुनः लक्ष्मी जी के पास गए और बोले – “ये किस भक्त की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं प्रभु?”
इसबात पर लक्ष्मी जी ने कहा- “ये प्रभु के सबसे बड़े भक्त है, आप से भी बड़े भक्त हैं।”
इतना सुनकर तो नारद जी से रहा न गया तिलमिलाते हुए वहां से चले गए। अब सोचने लगे भला विष्णुजी एक अर्धनग्न भिखारी मनुष्य का चित्र बना रहे थे और वह भी सबसे बड़ा भक्त। देखना पड़ेगा आखिर ये गंदा मनुष्य मुझसे भी बड़ा भक्त कैसे हो सकता है। दिन भर में सैकड़ों बार मैं प्रभु का नाम लिया करता हूँ। फिर भी मुझसे बड़ा भक्त कोई और है?
यह सोचते हुए नारद जी धरती लोक आ गए। उन्होंने उस चेहरे को तलाशना आरम्भ कर दिया जिसे प्रभु विष्णु बना रहे थे। संध्या हो चली थी सारा संसार ढूंढ लिया मगर उन्हें वैसा मनुष्य दिखाई न दिया जैसा उस चित्र में था।
अब तक नारद जी का क्रोध भी शांत हो चला था। थक हार कर एक पेड़ की छाया के पास बैठे ही थे कि उन्हें वह चेहरा सामने दिखाई दिया जैसा चित्र में उन्होंने देखा था। अब तो नारद जी की जिज्ञासा और बढ़ गई कि यह तुच्छ मनुष्य सबसे बड़ा भक्त, कैसे है?
वे अदृश्य होकर उसके पास चले गए। जैसे ही वे पास गए उन्हें रहा न गया। नाक दबाते हुए सोचने लगे – पशु चमड़ों से घिरा यह चमार, जो गंदगी और पसीने से लथपथ हैं। चमड़ों के ढेर को साफ कर रहा है। दुर्गंध के कारण इसके पास में भी जाना संभव नहीं लगता। भला यह कैसे प्रभु का सबसे बड़ा भक्त हो सकता है। लगता है कुछ दिन यह देखना ही पड़ेगा कि इसकी भक्ति में ऐसा क्या है?
नारद जी अब वहां से चले गए और प्रातः होने से पहले ही उस चमार के द्वार के निकट अदृश्य मुद्रा में उपस्थित हो गए।
प्रतिदिन की भांति वह चमार उठा और अपने चमड़े के कार्य की दिनचर्या में लग गया। नारद जी ने देखा, संध्या हो चली है किंतु वह चमार न तो मंदिर में ही गया और न ही आंख बंद करके क्षण भर के लिए हरि स्मरण ही किया।
अब नारद जी के क्रोध की सीमा न रही, एक अधमाधम चमार को श्रेष्ठ बताकर विष्णु ने उनका कितना घोर अपमान किया है?
नारद जी क्रोधित होकर विष्णु जी को श्राप देने ही जा रहे थे कि तभी वहां भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी जी के साथ अवतरित हुए। जिसे केवल नारद जी ही देख पा रहे थे। देवी लक्ष्मी जी ने नारदजी से कहा- “नारद शांत हो जाइए। पहले भक्त की उपासना तो देख लीजिए। फिर आप स्वयं निर्णय करें श्रेष्ठ कौन है?”
वे सब उस चमार की ओर देखने लगे। उस समय वह चमार चमड़ों के ढेर को समेट रहा था। समेटने के बाद सबको एक चमड़े की गठरी में बांध दिया। फिर एक वहीं पड़े एक गंदे कपड़े से सिर से पैर तक शरीर को पोछा। सामने पड़ी गठरी के सामने झुककर हृदय मन से कहने लगा- ” प्रभु मुझ पर अपनी दया बनाये रखिये। जैसा आप ने मुझे आज चाकरी दी है, वैसा ही कल भी मुझे देना।” इतना कह धन्यवाद देता हुआ वह चमार अपने घर में चला गया।
इस दृश्य को देख कर नारद जी समझ गए कि भगवान विष्णु को यह सबसे प्रिय क्यों हैं? इसपर भगवान विष्णु ने कहा – “देव नारद जी परिवार के हित और जीविकोपार्जन के लिए किया गया कोई भी कार्य श्रेष्ठ होता है। हृदय से एक पल के लिए भी मुझे याद करने वाला ही मुझे प्रिय है।” नारद जी ने भगवान विष्णु जी क्षमा मांगी।
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