आर्टिकल : आज के समाज में बच्चों की परवरिश को लेकर कई गंभीर चुनौतियाँ हैं। माता-पिता की शिकायतें आम हैं कि बच्चे सम्मान और संस्कार नहीं दिखाते। इसके लिए बच्चों को दोष देना उचित नहीं है, क्योंकि बच्चे कोरे कागज की तरह होते हैं जिन पर उनके माता-पिता ही संस्कार लिखते हैं। आज की परवरिश का अर्थ केवल बच्चों को अच्छी शिक्षा और सुविधाएँ देना समझ लिया गया है, लेकिन असल में उन्हें समय और सही मार्गदर्शन देने की आवश्यकता होती है।
माता-पिता का कर्तव्य है कि वे बच्चों को केवल सुविधाओं से नहीं बल्कि अपने समय, प्रेम और संस्कारों से परवरिश दें। हर दिन का एक घंटा बच्चों के साथ बिताने, उन्हें कहानियाँ सुनाने, खेल-खेल में उन्हें सिखाने और उनकी तारीफ करने से उनका व्यक्तित्व संवेदनशील और संस्कारवान बनता है। बच्चों में आदर्श संस्कारों को विकसित करने के लिए माता-पिता को पहले खुद उन आदर्शों को अपनाना होगा, क्योंकि बच्चे उनके प्रतिबिंब होते हैं।
लेख में उदाहरण देते हुए बताया गया है कि बच्चों को प्यार और सराहना देने से उनमें सकारात्मक आदतें और अच्छे संस्कार स्वतः विकसित होते हैं।
आइये “मंजू भारद्वाज कृष्ण प्रिया” द्वारा रचित इस लेख से समझते हैं –
आज देश और समाज का बिगड़ा माहौल स्कूलों में शिक्षाओं का जबरदस्त भार और एकल परिवार, रिश्ते नातो के बीच खींचती दूरियां। दिन प्रति दिन पेरेंट्स की बढ़ती शिकायतें कि मेरा बच्चा तमीज से बात नहीं करता है। मेरा बच्चा किसी की इज्जत नहीं करता है। मेरे बच्चे में कोई संस्कार नहीं है।
आज यदि बच्चे संस्कार विहीन हो रहे हैं तो इसमें बच्चों का क्या दोष है बच्चे तो कोरे कागज की तरह धरती पर उतरे थे। उसे कागज पर उनका भाग्य हमने लिखा। उनके मुंह में शब्द हमने डाले। उनके आचरण में संस्कार विहीनता हमने भरी है।
बच्चों का क्या दोष है यदि नजर पीछे की तरफ करके देखें तो पाएंगे क्या हम उसकी परवरिश कर रहे हैं। “परवरिश ” शब्द का अर्थ भी क्या हम समझ रहे हैं। आज के मां-बाप के लिए परवरिश का अर्थ है कि बच्चों को अच्छे से खाना पीना खिला दीजिए और स्कूल भेजिए , अच्छा, महंगा, नामी स्कूल हो। एक लाख रुपये जिसकी फीस हो वहां भेजिए और घर में तीन-चार नौकरों के बीच उसकी रखिए सारी सुविधाएं दीजिए । क्या यह है परवरिश ?
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परंतु मेरे विचार से यह परवरिश नहीं है यह आप अपनी कर्तव्य हीनता को छुपाने के लिए यह सब चीज करते हैं। आपके पास वक्त नहीं है कि आप अपने बच्चों को थोड़ा वक्त दें। उसके साथ खेलें, उसे अच्छी अच्छी कहानियां सुनाएं। आपके पास वक्त नहीं है कि आप उस बच्चों को संस्कार का “स” भी सिखा सके।
बच्चों के लिए मां-बाप ही उनके असली हीरो होते है इसीलिए बच्चों को सिखाने से पहले जरूरत हमें खुद के सीखने की है। वह जो हममें देखते हैं वही आदतें अपने अंदर ग्रहण करते हैं।
आज काउंसलिंग की जरूरत सबसे पहले पेरेंट्स को है। उन्होंने क्या दिया बच्चों को, ऑफिस से आ कर शाम को बच्चों की जिद पर उसे बहला कर समझ कर अच्छी-अच्छी कहानियां सुनाने की बजाय। वे उन सारी चीजों को लाकर उसके हाथ में थमा देते है ताकि वह चुप हो जाए क्या यह परवरिश है। बच्चा यदि दूसरे बच्चे को कुछ नहीं दे रहा है तो दूसरे बच्चे के लिए दूसरी चीज ला दे देते हैं क्या यह है परवरिश।
केयरिंग और शेयरिंग जैसे शब्द सिर्फ किताबों के पन्नों की शोभा बढ़ा रहे हैं। एक कोटेशन बन कर रह गए है। इसीलिए यह बहुत गहन चिंतन का है परंतु मेरी सोच यह कहती है कि यहां बच्चों का कोई दोष नहीं है दोष पूरी तरह से शिक्षा प्रणाली का भी नहीं है ।दोष जीवन की प्रथम पाठशाला परिवार का है।
हम घर बनाते समय इतने चौकन्ने रहते है बिल्डर कौन है , मैटेरियल कैसा इस्तेमाल हो रहा है ।मकान हवादार होना चाहिए । मकान में धूप अच्छे से आनी चाहिए। हम उस मकान के लिए इतने चिंतित रहते है जहां बदलाव की संभावन है। हम उसे बेच कर दूसरा भी ले सकते है पर अपने बच्चों के लिए हम इतने लापवाह कैसे हो गए। वहां हमने सीमेंट की जगह सिर्फ बालू लगाकर ईट की दीवार खड़ी करने की कोशिश कर रहे है। इससे मजबूत घर कभी नहीं बन सकता।
हम अपना सोना सात लॉकर में रखते है और अपना जीवन अपना बच्चा आया के सुपुर्द कैसे कर देते है।
क्या सच में हम अपने बच्चों के लिए जीते है।
संस्कार पेड़ के फल नहीं जड़ है। इस बात का ध्यान रखिए।
यदि जड़ में पानी नहीं दोगे तो पेड़ सूख जाएगा। आपकी जड़ आपके मां बाप है। आपके अंदर के संस्कार है।
आप के बच्चे आपका दर्पण है आप उसमें अपनी छवि देख कर क्यों घबरा गए। आपके हर कदम की छाप उसके व्यक्तित्व पर उभरती है।
इसलिए ये कहना हम मां बाप है पर्याप्त नहीं है।बच्चे तो कुत्ता बिल्ली के भी पल जाते है। पेड़ तो जंगलों में भी बढ़ जाते है बस पालने पालने में फर्क होता है।
मैं मानती हूं कि आज आर्थिक परेशानियां घर में पति-पत्नी दोनों को काम करने के लिए मजबूर करती है। आप जरूर काम करें पर अपने बच्चों की परवरिश का जिम्मा किसी आया को ना दें। घर में अपने बड़े बुजुर्गों को पूरा सम्मान दें और जितने समय आप घर में रहते हैं उतना वक्त अपने बच्चे को तराशने में व्यतीत करें।
दिन भर का एक घंटा बच्चों के नाम करें वो समय आपका ओर आपके बच्चे का है उसे बहुत प्यार करें उसके साथ खेलें। उसकी आदतों को देखते हुए उसे अच्छी कहानियां सुनाएं। खेल _खेल में ही उसे वो सारी बातें सिखाए जो आप सीखना चाहती है पर याद रहे वो वक्त सिर्फ प्यार का हो मस्ती का हों उसे क्लासरुम न बना दें ।
बच्चा समझ कर उसे नजरअंदाज न करें छोटी छोटी जिम्मेदारी बच्चों को दें। पूरा करने पर उसकी हौसला अफजाई जरूर करें । तारीफ में वो ताकत है जो डांट, या उसकी गलती बताने में नहीं है।
एक उदाहरण देती हूं,,,,,
मेरा बेटा जब छोटा था छः साल का था तो एक दिन मैं खिड़की से देख रही थी कि वह चलकर आ रहा है और सामने से ही हमारे पड़ोस की आंटी जी निकली परंतु उसने उसे नमस्कार नहीं किया ।यह देख मुझे बहुत दुख हुआ और उसे आंटी ने आवाज दी तो उसने आंख उठा कर देखा और फिर सर झुका कर चला गया।
अब मुझे उसके अंदर की आदत दूर करनी थी मैं क्या करती तो मैं एक घंटे के संजीवनी समय को इसके लिए बहुत अच्छी तरह से इस्तेमाल किया।
मैंने खेल-खेल में उसे बताया कि तू कितना प्यारा है जब तू बात करता है ना तो मन करता है बस सुनते रहे,, सुनते रहे ,,,सुनते रहे,,,तू कितनी प्यारी प्यारी बातें करता है ।बिट्टू तुम्हें पता है तुम्हारी आंखें कितनी सुंदर है। तुम्हारे बाल कितने सुंदर है। तू दुनिया का सबसे प्यारा बेटा है और जो पड़ोस की आंटी है ना वह भी बोलती हैं। आपके सिद्धार्थ जैसा तो कोई बच्चा हो ही नहीं सकता। इतना मासूम इतना प्यार है कभी बदमाशी नहीं करता है किसी से लड़ाई नहीं करता है। जब भी रास्ते पर मिलता है तो नमस्कार करता है। मैं तो उसको बहुत सारी ब्लेसिंग देती हूं। सारी बातों में वह भावविभोर था और बड़ी आश्चर्य से मेरी तरफ बहुत प्यार से देख ता रहा। तारीफ किसे अच्छी नहीं लगती चाहे वह छोटा बच्चा हो चाहे 80 साल के बुजुर्ग।
अब यह बात उसके दिल में कहीं घर कर गई थी।
कुछ दिनों बाद उसका सामना फिर उस आंटी से हुआ उसने तुरंत उन्हें मुस्कुराते हुए नमस्ते किया।
आंटी उसके सर पर हाथ फेर कर बोली खुश रहो बेटा। अब क्या था साहब जादे जमीन पर थे ही नहीं।भाग कर घर आए और बोले मां आज आंटी मिली थी मैने उन्हें नमस्ते किया।
आपको बताऊं इससे मुझे दो फायदे हुए। एक तो मेरा बच्चा नमस्ते करना सिख गया , दूसरा उसे बड़ों का आशीर्वाद मिला जो सदा कवच बन कर उसके साथ रहेगा।
आपके बुद्धिमता का पैमाना आपकी पुस्तकें तय नहीं करती आपका आत्म ज्ञान आपका व्यवहार तय करता है।
जिस दिन आपका बच्चा एक जागरूक और संवेदनशील इंसान बनकर समाज के सामने आएगा उसी दिन आप समझना आप ने जिंदगी की परीक्षा जीत ली।
मंजू भारद्वाज “कृष्ण प्रिया ”
बैंगलोर
9830453289