जमशेदपुर | झारखण्ड
करीम सिटी कॉलेज के मास कम्युनिकेशन विभाग के तत्वाधान में आयोजित तीन दिवसीय संगोष्ठी का आज पहला दिन था। रेडियो प्रसारण के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में यह संगोष्ठी आयोजित की जा रही है जिस का विषय है: “रेडियो की दुनिया पर पुर्नदृष्टि”।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में श्री स्नेहाशीष सूर (सीनियर ब्रॉडकास्ट जनरलिस्ट एवं प्रेसिडेंट, प्रेस क्लब, वेस्ट बंगाल) उपस्थित हुए तथा श्री चिन्मय महतो (अध्यक्ष गाइड इंटरनेशनल रेडियो लिस्नर्स क्लब) अतिथि वक्ता के रूप में सम्मिलित हुए। श्री स्नेहाशीष सुर का विषय था-“भारत में रेडियो प्रसारण के प्रारंभिक दिन”। उन्होंने अपने विषय पर बात करते हुए भारत में रेडियो की प्रारंभिक स्थिति और सामाजिक स्तर पर उसके प्रति बनते हुए लोगों के रुजहान को प्रस्तुत किया। श्री चिनमय महतो के वक्तव्य का विषय था- “ये मेरा दीवानापन है”। उन्होंने मनुष्य के जीवन में रेडियो के महत्व और उसके लिए दीवानगी की हद तक बढती हुई लोकप्रियता को बड़े रोचक अंदाज में पेश किया।
इस अवसर पर श्री शाहिद अनवर (इंटरनेशनल स्पोर्ट्स कमेंटेटर एवं वेटरन रेडियो ब्रॉडकास्ट, भारत) ने पावर प्रेजेंटेशन के द्वारा अपनी प्रस्तुति दी जिसका विषय था- “रेडियो: आवाज का सफर”। सभा में उपस्थित लोगों ने उनकी प्रस्तुति को सबसे ज्यादा पसंद किया। उन्होंने रेडियो के द्वारा आवाज के सफर को पेश करते हुए बताया कि आज से ठीक 100 साल पहले 1923 ई के जून में पहली बार मुंबई में रेडियो क्लब ने इसकी शुरुआत की। उसके 5 महीने बाद कोलकाता से रेडियो का प्रसारण शुरू हुआ। उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी ने पहली बार स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 11 नवंबर 1947 को रेडियो के माध्यम से अपनी बात रखी थी। उन्होंने यह भी बताया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने रेडियो के माध्यम से ही जर्मनी से “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा” का नारा दिया।
आज का कार्यक्रम सभी अतिथियों के द्वारा दीप प्रज्वलित करके प्रारंभ किया गया। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ मोहम्मद रेयाज ने स्वागत भाषण किया। डॉ नेहा तिवारी (प्रोफेसर इंचार्ज मास कम्युनिकेशन विभाग करीम सिटी कॉलेज) ने कन्वेनर के रूप में अपनी बात रखी तथा संगोष्ठी के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। संतुष्टि के प्रथम पाली के अंत में डॉ रश्मि कुमारी (मास कम्युनिकेशन विभाग करीम सिटी कॉलेज) ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
इसके पश्चात विशेष सत्र की शुरुआत हुई जिसमें सर्वप्रथम विविध भारती राष्ट्रीय प्रसारण की सहायक निर्देशिका कार्यक्रम श्री रेणु चतुर्वेदी ने मुंबई से जुड़कर संकटकाल में विविध भारती के कार्यक्रमों की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैसे कोविड-19 विविध भारती लोगों के लिए मनोरंजन और ज्ञान दोनों का माध्यम बना इसके उपरांत अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ब्रॉडकास्टर श्री अनुपम पाठक लखनऊ से जुड़े। उन्होंने आकाशवाणी के माध्यम से भाषा के संस्कार और शुद्ध उपयोग पर जोर डाला रेडियो की भाषा परिष्कृत होने की वजह से भाषा सीखने का एक अच्छा माध्यम बन सकती है। इस विषय को अनुपम पाठक ने उदाहरण देकर समझाया।
इसके बाद अर्जेंटीना से जुड़े प्रोफेसर व कम्युनिकेटर डॉ सरजिओ रिकार्डो ने अर्जेंटीना में अभी भी रेडियो प्रसारण में एएम की भूमिका और उपयोगिता पर प्रकाश डाला। मोरक्को मोरक्को के एक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत डॉ मार्टिन गैंगसिंगर फ्रॉम से इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में जुड़े क्योंकि वहां एक वर्कशॉप में गए हैं । डॉ मार्टिन ने रेडियो में लोकप्रिय संगीत के अलावा क्लासिकल संगीत को शामिल करने की जरूरत पर बल दिया। चारों विषय विशेषज्ञों की सभी ने सराहना की।
भोजनावकाश के बाद कम से कम 13 शोध पत्र पढ़े गए जिनमें आर्का जैन विश्वविद्यालय, नेताजी सुभाष चंद्र विश्वविद्यालय,महिला विश्वविद्यालय, सेंट जेवियर कॉलेज, कोल्हान व रांची तथा अन्य स्थानों से आए हुए विद्वानों ने अपने शोध पत्र पढ़े। इनके अलावा कई शोधार्थियों ने विदेशों से जुड़कर अपने शोध ऑनलाइन पेश किए। यस संगोष्ठी बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक रही।
इस अवसर पर डॉ शालिनी प्रसाद, डॉ श्याम कुमार, सुमित कुमार, डॉ नील कुलसुम कुल्लू, डॉ डॉ सुशीला हांसदा, डॉ मुकुल भृंगराज, डॉ शाहबाज अंसारी, साकेत कुमार संजय प्रसाद डॉ इंद्रसेन सिंह, डॉ बी एन त्रिपाठी, डॉ अनवर शहाब, डॉ कौसर तस्लीम डॉ वसुंधरा राय डॉ फखरुद्दीन डॉ नज़री के अलावा महाविद्यालय के कई शिक्षक और बाहर से आए हुए लोग भारी संख्या में उपस्थित रहे। कार्यक्रम को आयोजित करने में सैयद साजिद परवेज, सैयद शाहजेब परवेज तासीर शाही, बापी मुर्मू, तन्मय सोलंकी तथा जावेद का विशेष योगदान रहा।