बहुत पहले की बात है। बादशाह नौशेरवाँ किसी काम से कहीं जा रहे थे। रात होने वाली थी इसलिए उन्होंने एक गाँव के समीप ही अपना डेरा डाल दिया । भोजन का प्रबंध करने का आदेश उन्होंने सिपाहियों को दे दिया। उन्हें कवाब बहुत पसंद था तो खाने में आज कवाब ही बन रहा था। लेकिन यह क्या? नमक तो किसी ने साथ में लाया ही न था। फौरन यह खबर बादशाह नौशेरवाँ को दी गई।
बादशाह ने एक सिपाही को आवाज लगाई और बाजार से नमक लाने के लिए आदेश दिया और कहा – सुनो सिपाही नमक यूँ ही न लाना बल्कि नमक का दाम देकर आना। बिना दाम दिए कहीं हमारा मुल्क बरबाद न हो जाये।
सिपाही इन बातों को सुनकर आश्चर्य में पड़ गया और बोला- बादशाह सलामत, जिंदगी बख्श दे तो एक सवाल पूछना चाहता हूं।
बादशाह बोले- हां सिपाही पूछो क्या पूछना चाहते हो?
सिपाही – केवल एक पैसे के नमक का दाम न देने पर हमारा मुल्क कैसे बरबाद हो सकता है?
बदशाह उसकी बातें ध्यान से सुन रहे थे। सुनने के बाद उन्होंने कहा-
“राजा अंडे के लिए, करे जो अत्याचार। तो फिर वाके लश्करी, मारैं मुर्ग हजार।।
सिपाही – मैं कुछ समझा नहीं बादशाह सलामत।
बादशाह- सुनो सिपाही, यदि कोई राजा एक अंडे के लिए अपनी प्रजा पर अत्याचार करता है तो राजा का लश्कर प्रजा की मुर्गियों को मारने में जरा भी हिचकिचाएगा नही।
उसी प्रकार यदि आज मैं एक पैसे के नमक का दाम न चुकाऊँ तो मेरे लश्कर के लोग भी मेरे नाम पर मनमाना सामान बिना दाम दिए लेते जायेंगे। जिससे अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी। कोई भी देश अमीर तब बनता है जब उसका राजा ईमानदार हो। बेईमान राजा एक दिन अपनी प्रजा के साथ-साथ स्वयं भी रोता है। इसलिए राज्य की भलाई के लिए हमें ईमानदारी से हर वस्तु का मूल्य चुकाना चाहिए।