डॉ. एनके अरोड़ा ने कोविड-19 टीकाकरण पर कई सामान्य प्रश्नों के जवाब दे, कोविड वैक्सीन के बारे में गलतफहमियों को किया दूर।
इस सफर के दौरान उन्होंने जाना कि ग्रामीण इलाकों के कई लोग कोरोना महामारी को गंभीरता से नहीं लेते और इसे साधारण बुखार की श्रेणी का ही समझते हैं। जबकि सभी को यह समझने की आवश्यकता है कि कोरोना में कई बार हल्का बुखार होकर व्यक्ति ठीक हो जाता है, लेकिन जब यह बीमारी भयानक रूप लेता है तो व्यक्ति की जान भी ले सकती है।
लेकिन एक अच्छी बात यह है कि अभी टीका उपलब्ध है और टीकाकरण द्वारा लोग इस बीमारी को भयावह होने से रोक सकते हैं।
उन्होंने आगे बताया कि – “भारत में उपलब्ध कोविड-19 की वैक्सीनें पूरी तरह से सुरक्षित हैं। मैं सबको आश्वस्त करता हूं कि सभी वैक्सीनों का कड़ा परीक्षण किया गया है, जिसमें क्लीनिकल ट्रायल भी शामिल हैं। इन परीक्षणों को पूरी दुनिया में मान्यता प्राप्त है। जहां तक टीके के बुरे असर (साइड-इफेक्ट) का सवाल है, तो सभी वैक्सीनों में हल्का-फुल्का खराब असर पड़ता है। इसमें हल्का बुखार, थकान, सूई लगाने वाली जगह पर दर्ज आदि, जो एक-दो दिन में ठीक हो जाता है। टीकों का कोई गंभीर बुरा असर नहीं होता। जब बच्चों को नियमित टीके दिये जाते हैं, तो उन्हें भी बुखार, सूजन आदि जैसे हल्के-फुल्के साइड इफेक्ट्स होते हैं। परिवार के बड़ों को पता होता है कि वैक्सीन बच्चों के लिये अच्छे हैं, भले उनका कुछ बुरा असर शुरू में होता हो। इसी तरह बड़ों को इस वक्त भी यह समझना चाहिये कि कोविड वैक्सीन हमारे परिवार और हमारे समाज के लिये जरूरी है। इसलिए हल्का-फुल्का बुरा असर हमें रोकने न पाये।”
डॉ. नरेन्द्र कुमार अरोड़ा ने कई सवालों के जवाब दिए। जिनमें प्रमुख सवाल और जवाब हैं –
लोगों में ऐसी अफवाहें हैं कि – टीका लगवाने के बाद व्यक्ति को बुखार नहीं आया, तो इसका मतलब यह है कि वैक्सीन काम नहीं कर रही है।
कोविड-19 या कोरोना का टीका लगवाने के बाद ज्यादातर लोगों में कोई बुरा असर देखने को नहीं मिलता। जिसका यह मतलब नहीं समझना चाहिए कि वैक्सीन असरदार नहीं है। जबकि सत्यता यह है कि केवल 20 से 30% लोगों में ही टीकाकरण के बाद बुखार आ सकता है।
इस सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि कोविड -19 की वैक्सीन की दोनों खुराकें लेने के बाद भी संक्रमण हो सकता है। लेकिन यह निश्चित रूप से हल्का होगा और गंभीर बीमारी की संभावना लगभग नहीं के बराबर होगी।
इसलिए कहा जाता है कि टीका लगवाने के बाद भी कोविड के नियमों का पालन करें। जो टीका लगवा चुके हैं वे तो सुरक्षित हो गए लेकिन दूसरों को कोरोना वायरस दे सकते है।
टीका लेने के कब तक शरीर में एंटी-बॉडीज मौजूद रहती हैं? क्या कुछ समय बाद बूस्टर डोज भी लेनी होगी?
टीका लेने के बाद रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। वायरस जब भी शरीर में घुसने की कोशिश करता है, तो पूरा शरीर एक्टिव हो कर उसके खिलाफ हो जाता है और उसे शरीर में घुसने नहीं देता।
कोविड-19 एक नई बीमारी है, जो केवल डेढ़ साल पहले सामने आया है। और वैक्सीन को आये हुए छह महीने ही हुए हैं। जिसे देखते हुए ऐसा लगता है कि अन्य वैक्सीनों की तरह ही, इसका रोग- प्रतिरोधक क्षमता छह महीने से एक साल तक रहेगा। आने वाले समय में अधिक रिसर्च और अध्ययन के द्वारा कोविड-19 के बारे में हमारी समझ बढ़ेगी।
इस बारे में उन्होंने यह भी कहा कि – “अभी यह देखा जाना है कि टीका लगवाने के बाद लोग कितने समय तक गंभीर रूप से बीमार होने और मृत्यु से बचे रहते हैं। लेकिन अभी तो टीके लगवाने वाले सभी लोग छह महीने से एक साल तक तो सुरक्षित हैं।”
एक बार किसी खास कंपनी की वैक्सीन लगवा लें जाए, तो क्या उसके बाद दूसरी बार वही वैक्सीन लगवानी होगी? यदि भविष्य में हमें बूस्टर डोज लेनी पड़े, क्या तब भी उसी कंपनी की वैक्सीन लेनी होगी?
हम ऐसे देशों में शामिल हैं, जहां अलग-अलग तरह की कोविड-19 वैक्सीनें दी जा रही हैं। इस तरह की पारस्परिक अदला-बदली को तीन कारणों से स्वीकार किया जा सकता है या उसे मान्यता दी जा सकती हैः
इसके जवाब में उन्होंने बताया कि 2 वर्ष से 18 वर्ष के बच्चों पर कोवैक्सीन टीका का परीक्षण देश के कई केंद्रों में चल रहा है। जिसके नतीजे इस साल सितंबर – अक्टूबर तक हमारे पास आ जायेंगे। कोविड के कारण बच्चे भी संक्रमित हो सकते हैं। लेकिन वे गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़ते। किन्तु बच्चों से वायरस दूसरों तक पहुंच सकता है। इसलिए बच्चों को भी टीका लगाया जाना चाहिये।
क्या वैक्सीन से प्रजनन क्षमता पर कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ता है? व्यक्ति नपुंसक हो सकता है?
इसपर उन्होंने बताया कि जब भारत में पोलियो की वैक्सीन आई थी और दुनिया के लगभग सबहि देशों में दी जा रही थी, तब भी ऐसी अफवाह फैली थी। उस समय भी लोगों के बीच यह गलतफहमी पैदा की गई थी कि जिन बच्चों को पोलियो वैक्सीन दी जा रही है, आगे चलकर उन बच्चों की प्रजनन क्षमता पर नष्ट हो जाएगी। इस तरह की गलत सूचना एंटी-वैक्सीन लॉबी फैलाती है।
हमें यह जानना ही चाहिये कि सभी वैक्सीनों को कड़े वैज्ञानिक अनुसंधान से गुजरना पड़ता है। किसी भी वैक्सीन में इस तरह का कोई बुरा असर नहीं होता।
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