आज स्वामी विवेकानंद जी की 157 वीं जयंती है, जिसे राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। उनके जन्म दिन पर उन्हें शत-शत अभिनन्दन ।
स्वामी विवेकानंद जी का जन्म आज ही के दिन यानी 12 जनवरी को वर्ष 1863 को कोलकाता में एक कुलीन बंगाली कायस्थ परिवार में नरेंद्रनाथ दत्त के रूप में हुआ था। स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बनने के बाद उन्होंने सांसारिक सुखों को त्याग दिया और मानवता की सेवा के लिए संन्यासी बन गए।
विश्व में भारतीय दर्शन को एक नइ पहचान दिलाई। अपने व्याख्यानों के माध्यम से, विवेकानंद ने लोगों में धार्मिक चेतना जगाने की कोशिश की और व्यावहारिक वेदांत के सिद्धांतों का उपयोग करते हुए दलितों के उत्थान का काम किया। वर्ष 1893 में विश्व धर्म संसद में उनके द्वारा प्रस्तुत प्रतिष्ठित भाषण ने उन्हें मशहूर बना दिया। उन्होंने सार्वभौमिक स्वीकृति, सहिष्णुता और धर्म जैसे विषयों पर बोलकर सबके दिलों को छू लिया था।
उनके जीवन से हमें हमेशा प्रेरणा लेनी चाहिए। उनके विचारों को आत्मसात कर हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते है। आएये, उनके कुछ प्रतिष्ठित विचारों को पढ़ते हैं और उनसे प्रेरणा लेते हैं –
खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप हैं।
तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुमको सब कुछ खुद अंदर से सीखना हैं।
आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नही हैं।
ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमही हैं जो अपनी आँखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।
विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो।
किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आये – आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।
एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।
“जब तक जीना, तब तक सीखना” – अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक हैं।
जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।
हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का धयान रखिये कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं। विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।
जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।
जैसा तुम सोचते हो, वैसे ही बन जाओगे। खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे।
किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये।
सच्ची सफलता और आनंद का सबसे बड़ा रहस्य यह है- वह पुरुष या स्त्री जो बदले में कुछ नहीं मांगता। पूर्ण रूप से निःस्वार्थ व्यक्ति, सबसे सफल हैं।