जमशेदपुर । झारखंड
टाटा मेन हॉस्पिटल हमेशा से विवादित रहा है। कभी महँगी सुविधा को लेकर, कभी वहाँ के डॉक्टरों के उग्र स्वभाव को लेकर तो कभी प्राइवेट एडमिशन और एम्प्लोयी एडमिशन को लेकर मगर सितंबर 2023 के महीने में 25 बच्चों की टाटा मेन हॉस्पिटल में मौत होना सनसनीखेज है और अत्यंत चिंताजनक है और उससे भी ज़्यादा चिंताजनक है टाटा समूह के द्वारा इस आकड़े को छुपाने की कोशिश अगर यह मौत का आँकड़ा रोज जारी होता तो लोग और बच्चों वाले परिवार और सचेत हो जाते और हो सकता है उनके सचेत होने से कुछ जाने बच जाती।
मगर बच्चे मारते गये, टाटा हॉस्पिटल उन आकड़ो को छुपाते गई और आज हम यहाँ खड़े हैं 25 बच्चों और उनके मानसिक रूप से मरे हुए परिवारों के शवों में टाटा हॉस्पिटल और तमाम टाटा कंपनी आरटीआई जो की जनता का ब्रह्मास्त्र है, के अंदर नहीं आते है? मतलब जनता उनसे कुछ भी नहीं पूछ सकती और टाटा समूह कुछ भी बताने को बाध्य नहीं है। सवाल ये उठता है की आखिर टाटा स्टील और तमाम टाटा समूह को चीजें जनता से छुपाने की जरूरत क्यों है इसका जवाब हम सब जानते हैं करप्शन जमशेदपुर का एक अभिन्न भाग है, टाटा समूह को धन्यवाद। मगर अब तो जान की कीमत भी इनके सामने शून्य है।
चुकी जमशेदपुर में टाटा की सरकार है यहाँ तमाम नागरिक सुविधा जिसमें स्वास्थ्य सबसे महत्वपूर्ण है, यह स्वास्थ्य सुविधा टाटा स्टील और टाटा हॉस्पिटल की अधीन है। जमशेदपुर में सिर्फ एक ही सर्व सुविधा संपन्न हॉस्पिटल है वह है TMHI टाटा समूह किसी और हॉस्पिटल और ब्रॉड को जमशेदपुर में घुसने नहीं देती, अरे जमीन ही नहीं देगी तो नये और आधुनिक हॉस्पिटल कहाँ बनेंगे तो स्वास्थ्य पूर्ण रूप से टाटा स्टील की जिम्मेदारी बनती है और स्वास्थ्य पे भी टाटा स्टील और टाटा समूह की मोनोपॉली है। किसी भी चीज़ में मोनोपॉली समाज के लिये लाभदायक नहीं होती। इसी लिये मोनोपॉली कम्पटीशन एक्ट 2000 में भारतीय संविधान के अनुसार दंडनीय और अवैध है मगर जमशेदपुर में टाटा की मनमानी चलती है। जब जमशेदपुर में टाटा वोटिंग राइट और लोकतंत्र को ही खत्म कर देना चाहती है तो competition एक्ट और मोनोपॉली क्या चीज़ है। तो क्या आपके अनुसार टाटा हमलोगों को विश्वस्तरीय नागरिक सुविधाएँ प्रदान करने की जिम्मेदारी को जमशेदपुर में निभाती है? अगर नहीं तो फिर हम लोग चुप क्यों हैं?
सरकार चुप क्यों है? स्वास्थ्य मंत्री चुप क्यों है? मुझे याद है बिहार के किसी स्कूल में खाना बनाने के दरमियान छिपकली गिर गई थी और खाना जहरीला हो गया था। उस खाने को खा के काफी सारे बच्चे मर गये थे। इस खबर की सूचना पाते ही सारे राज्य के प्रमुख पदाधिकारी मौकाए वारदात पे पहुँच गये थे, राज्य के अधिकारी तो क्या स्वयं प्रधान मंत्री भी दौरे पे आये थे, पीडित परिवारों से मिले थे मगर जमशेदपुर में 25 बच्चों की मौत हो गई। क्या कोई सुध लेने आया। क्या किसी ने इन परिवारों से बात की, की उनपे क्या बीत रही है, वोह किस मानसिक अवस्था में हैं? क्या किसी ने उचित मुआवजे की माँग की? क्या मुख्य मंत्री आये? क्या प्रधान मंत्री को यह बात पता भी है? किससे फ़रियाद लगाये, कहाँ इंसाफ़ मिलेगा?
झारखंड हाई कोर्ट को इस मामले में संज्ञान लेना चाहिये? सिर्फ मामले की जाँच के लिए नहीं समस्या की जड़े खोदनी होंगी? संज्ञान टाटा हॉस्पिटल द्वारा जनहित में इन बच्चों की मौत का अकड़ा क्यों प्रतिदिन जारी नहीं किया गया उसपे होना चाहिए। समय पे जनहित में जानकारी मिलना हम सबका संवैधानिक हक है और इसको लड़ के लेना होगा अगर आज इन 25 बच्चों के सारे परिवारों को एक जगह खड़ा कर के उनकी फरियाद सुनी जाये तो जल्लाद का भी मन दिल पसीज जायेगा तो क्या हमारी सरकार और टाटा समूह जल्लाद से भी गये गुज़रे हैं? क्या हम लोग ऐसे ही चुप रहेंगे? क्या हमारी मानवता मर चुकी है?
मैं नहीं मानता। हम लोग जीवित है। हम लोग शिक्षित हैं, हम लोग इंसान हैं और हम लोग सरकार को बनाते हैं और गिरते हैं तो यह कंपनी क्या चीज है। अपनी आवाज उठाइए और इन 25 परिवारों को बता दीजिये की सारा जमशेदपुर नहीं, सारा झारखंड नहीं, बल्कि सारा हिंदुस्तान इस विपत्ति की घड़ी में उनके साथ खड़ा है। मेरे दिल से दुवायें जाती है उन सब बच्चों के लिए जो इस दुनिया से अलविदा कह गये। ओम शांति।।