झारखंड
तीन साल से पेंशन से वंचित सुनीता मंडल, पूर्व जिला पार्षद ने दिलाया भरोसा

जमशेदपुर : जमशेदपुर प्रखंड के लुआबासा पंचायत, गांव केशीकुदर की सुनीता मंडल को पिछले तीन साल से सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि नहीं मिल रही है। सुनीता, जिनके पिता स्व. अधर मंडल थे, को 1 फरवरी 2019 को पेंशन स्वीकृत हुई थी। मार्च 2022 तक उन्हें नियमित रूप से पेंशन मिल रही थी, लेकिन उसके बाद अचानक पेंशन बंद हो गई।
हर दरवाजा खटखटा कर जब ना मिली आवाज तो पंहुची पोटका के पूर्व जिला पार्षद करुणा मय मंडल के पास।
समस्या की होगी समाधान – बोले करुणा मय मंडल।
सुनीता ने पंचायत और प्रखंड कार्यालयों के चक्कर काटे, लेकिन तीन साल बीत जाने के बावजूद उनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ। हताश होकर उन्होंने पोटका के पूर्व जिला पार्षद करुणा मय मंडल के आवासीय कार्यालय में अपने भतीजे अशोक मंडल के साथ अपनी व्यथा सुनाई।
सुनीता की स्वास्थ्य स्थिति
सुनीता एनिमिया से पीड़ित हैं और उनकी रक्त निर्माण प्रक्रिया प्रभावित है। उन्हें समय-समय पर रक्त चढ़वाना पड़ता है। अविवाहित सुनीता अपने माता-पिता के निधन के बाद अकेली हैं और उनके भतीजे अशोक मंडल उनकी देखभाल करते हैं। अशोक, जो टिस्को में ठेका मजदूर हैं, अपनी बुआ के लिए रक्त की व्यवस्था अपने परिचितों के माध्यम से करते हैं। जब सुनीता का रक्त स्तर कम हो जाता है, तो उन्हें एक बार में चार से पांच यूनिट रक्त की आवश्यकता पड़ती है।
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अशोक: एक प्रेरणादायक उदाहरण
आज के समय में, जहां कई लोग अपने माता-पिता की जिम्मेदारी से कतराते हैं, अशोक मंडल जैसे भतीजे एक मिसाल हैं। वे अपनी बीमार बुआ की देखभाल न केवल पूरे समर्पण से करते हैं, बल्कि उनके लिए रक्त की व्यवस्था भी सुनिश्चित करते हैं।
व्यवस्था की कमी
तीन साल से पेंशन न मिलना न केवल सुनीता की आर्थिक तंगी को दर्शाता है, बल्कि यह हमारी प्रशासनिक व्यवस्था की खामियों को भी उजागर करता है। ऐसी असहाय और बीमार महिला को समय पर सहायता न मिलना गंभीर चिंता का विषय है।
पूर्व जिला पार्षद का आश्वासन
पूर्व जिला पार्षद करुणा मय मंडल ने सुनीता को साहस बंधाते हुए उनकी पेंशन की समस्या के समाधान का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा, “हर हाल में सुनीता को उनका हक दिलवाया जाएगा।” सुनीता और उनके भतीजे अशोक ने श्री मंडल के कार्यालय में अपनी बात रखी, और अब उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही उनकी समस्या का समाधान होगा।
सुनीता मंडल की कहानी न केवल एक व्यक्तिगत संघर्ष को दर्शाती है, बल्कि यह समाज और प्रशासन से यह सवाल भी उठाती है कि क्या हम वास्तव में अपने कमजोर और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए तैयार हैं? करुणा मय मंडल के हस्तक्षेप से सुनीता को न्याय मिलने की उम्मीद जगी है।