भक्त वही, जो मंदिर से मुस्कुराते हुए लौटेः पंडित विजय शंकर मेहता,मंदिर ऊर्जा का केंद्र हैं, यहां से ऊर्जा लेकर ही लौटें, उदास होकर नहीं,जैसे परेशान बच्चे को देख कर आप परेशान होते हैं, वैसे ही ईश्वर भी आपको परेशान देख कर परेशान होते हैं।
जमशेदपुर : ‘हम मंदिर क्यों जाते हैं। क्या मिलता है हमें मंदिर में। मंदिर जाने का हमारा अभिप्राय क्या है। हम मंदिर इसलिए जाते हैं, क्योंकि मंदिर ऊर्जा का केंद्र होते हैं। हम लोग उदास मन से मंदिर जरूर जाएं लेकिन जब लौटें तो मुस्कुराते हुए, हंसते हुए। उदास मन से मंदिर गये और उदास ही लौटे तो फिर मंदिर जाने का फायदा क्या हुआ। फिर मंदिर को ऊर्जा का केंद्र कैसे माना जाएगा। मंदिर असल में ऊर्जा का केंद्र है और हमें इसे समझना होगा।’
उक्त बातें जीवन दर्शन के मर्मज्ञ और प्रख्यात आध्यात्मिक गुरु श्री विजय शंकर मेहता जी ने कही। वह श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा महायज्ञ के तीसरे दिन मंदिर परिसर में बने पंडाल में लोगों को संबोधित कर रहे थे।
श्री मेहता ने कहा कि अब हमें मंदिर जाने के पहले एक संकल्प लेना चाहिए कि हम बेशक परेशान हों, दुखी हों, उदास हों लेकिन मंदिर जाएंगे तो ईश्वर के समक्ष अपने दुखड़े रोने की बजाए मुस्कुराते हुए वहां से लौटेंगे। हम लोग संकल्प सकारात्मक सोच की लें। यह सकारात्मक सोच ही भक्ति मार्ग की बाधा को दूर करती है।
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उन्होंने कहा कि जो भक्त है, वह भला उदास कैसे हो सकता है। वह तो प्रभु की मर्जी को ही अपने लिए आदेश मानता है। वह उदास हो ही नहीं सकता। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए समझाया कि आपके घर में कोई छोटा बच्चा हो। वह उदास हो। कारण जो भी रहा हो, आपको पता न हो। तो आप बच्चे की उदासी देख कर खुद परेशान होंगे कि नहीं। ऐसे ही, भगवान भी अपने बच्चों (हम इंसानों) को उदास देख कर परेशान होते हैं। लेकिन, जब हम भगवान के पास मुस्कुराते हुए जाएंगे, हंसते हुए जाएंगे तो भगवान भी हंसेंगे, प्रसन्न रहेंगे।
श्री मेहता ने कहा कि जिस भक्त के ऊपर परमात्मा की कृपा बरस जाए, वह कभी भी उदास हो ही नहीं सकता। भगवान को भी हंसते हुए भक्त ही अच्छे लगते हैं। जीवन में दुख बहुत है लेकिन सिर्फ दुख ही दुख नहीं है। उसी में से हंसने के लिए, मुस्कुराने के लिए कुछ घड़ियां हमें निकालने की जरूरत है।
जीवन प्रबंधन और आध्यात्म से जुड़ी एक प्रसंग का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि समाज में कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो कूदते बहुत हैं और करते कुछ नहीं हैं। जब यह तय हो गया कि सीता जी की खोज के लिए दक्षिण दिशा में बंदरों का एक दल जाएगा तो जिन बंदरों का उसके लिए चयन हुआ था, वो भी खूब लगे कूदने। सब रामजी को प्रणाम करने लगे और उनके सामने ही कूद-कूद कर माहौल बनाने लगे। रामजी तो ठहरे सीधे-सादे। उन्होंने आशीर्वाद सभी को दे दिया लेकिन वह खोज रहे थे उन्हें, जो इस काम को करने वाले थे।
सबसे अंत में, सबसे पीछे खड़े हनुमान जी जब आए, रामजी के चरण स्पर्श किये, तब रामजी ने उनके सिर पर हाथ फेरा। उन्हें पता था कि करने वाला तो हनुमान ही है। बाकी सब कूदने वाले हैं। यह जो हनुमान जी के सिर पर हाथ फेरने वाली बात है, इसका अर्थ यह हुआ कि परमात्मा की कृपा हनुमान जी पर थी। इस चीज को हमें भी समझना होगा कि खामखा उछल-कूद मचाने वाले ऐसे ही रह जाते हैं। जिस पर प्रभु की कृपा होती है, वही काम कर पाता है। मैं मानता हूं कि सरयू राय जी पर प्रभु की कृपा हुई जो यह मंदिर का जीर्णोद्धार करवा रहे हैं। उन्होंने दशावतार की संक्षिप्त कथा सुनाते हुए यही बताने की कोशिश की कि ईश्वर अगर अवतार लेते हैं तो उनका एकमात्र उद्देश्य मनुष्य की रक्षा करना, उसके कष्ट-दुख कम करना ही होता है।
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इसके पूर्व श्री सरयू राय ने मंदिर के जीर्णोद्धार के बारे में सविस्तार अपनी बात रखी और बताया कि कैसे उन्हें जीर्णोद्धार की प्रेरणा मिली, किन बातों ने उन्हें परेशान किया और आखिरकार कैसे वह इस कार्य में लग गये। कार्यक्रम का संचालन अशोक गोयल ने किया।
इसके पूर्व जमशेदपुर पूर्वी के विधायक श्री सरयू राय, अशोक गोयल, रमेश अग्रवाल, अशोक भालोटिया, शंकर लाल गुप्ता, अरूण बांकरेवाल आदि ने श्री मेहता को पूरा मंदिर परिसर दिखाया। श्री मेहता मंदिर की रौशनी-रंगत देख कर बेहद प्रभावित हुए। इसका जिक्र उन्होंने अपने उद्बोधन में भी किया।