Connect with us

TNF News

“सनातन गौरव का पुनर्निर्माण हो रहा है, जो खो गया था उसे फिर से मजबूत बनाया जा रहा है” – उपराष्ट्रपति धनखड़

Published

on

THE NEWS FRAME

“भारत की आत्मा अविनाशी है, सनातन गौरव का पुनर्निर्माण हो रहा है” — उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़
पांडिचेरी विश्वविद्यालय में छात्रों को किया संबोधित, शिक्षा-राजनीति-भाषा और संस्कृति पर रखे स्पष्ट विचार

पुडुचेरी : भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को पांडिचेरी विश्वविद्यालय में छात्रों, शिक्षकों और गणमान्यजनों को संबोधित करते हुए देश की सनातन परंपरा, शिक्षा प्रणाली, राजनीतिक शिष्टाचार और भाषाई समावेशिता पर अपने विचार स्पष्ट शब्दों में रखे। उन्होंने कहा कि—

“सनातन गौरव का पुनर्निर्माण हो रहा है। जो खो गया था, उसे और अधिक दृढ़ संकल्प के साथ फिर से बनाया जा रहा है।”

श्री धनखड़ ने भारत के प्राचीन शिक्षा केंद्रों जैसे तक्षशिला, नालंदा, मिथिला, वल्लभी की महान परंपरा को स्मरण करते हुए कहा कि—

“इन संस्थानों ने इतिहास के उस काल में पूरे विश्व के लिए हमारे भारत को परिभाषित किया। विश्वभर के विद्वान यहां ज्ञान प्राप्ति और विचार-विमर्श के लिए आते थे।”

उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि विदेशी आक्रमणों से भारत की ज्ञान परंपरा को गहरा आघात पहुंचा।

“1300 साल पहले नालंदा की नौ मंजिला पुस्तकालय ‘धरमगंज’ में पांडुलिपियों का कोष था। 1190 के आसपास बख्तियार खिलजी ने इस पर हमला कर बौद्ध भिक्षुओं की हत्या की, स्तूपों को तोड़ा और 90 लाख से अधिक ग्रंथों को जला डाला। यह आग तीन महीने तक जलती रही, लेकिन भारत की आत्मा को नष्ट नहीं किया जा सका क्योंकि भारत की आत्मा अविनाशी है।”

Read More : 200 फीट ऊंचे मंदिर के शिखर पर चढ़ सरयू राय ने की शिखर पूजा

✒️ राजनीति में धैर्य और संवाद की ज़रूरत

देश में लगातार बढ़ते राजनीतिक तनाव को लेकर उन्होंने कहा—

“हमें अपने धैर्य को क्यों खोना चाहिए? हम अपने सभ्यतागत, आध्यात्मिक सार से दूर होकर अधीरता से क्यों कार्य करें? मैं राजनीतिक नभमंडल के अग्रणी व्यक्तियों से अपील करता हूं — कृपया राजनीति के तापमान को कम करें। टकराव के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए, संवाद होना चाहिए।”

उन्होंने कहा कि आज का माहौल ऐसा बन गया है जहां कोई अच्छा विचार भी यदि दूसरे से आता है, तो उसे नकार दिया जाता है।

“हमने एक-दूसरे से मतभेद करने की आदत बना ली है… इस प्रक्रिया में हम अपने वैदिक दर्शन अनंतवाद की बलि चढ़ा रहे हैं। अभिव्यक्ति और संवाद दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं — हमें उसी दिशा में आगे बढ़ना होगा।”

📘 व्यवसाय नहीं, सेवा हो शिक्षा का उद्देश्य

भारत में शिक्षा के बढ़ते व्यवसायीकरण को लेकर उन्होंने गहरी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा—

“एक समय था जब शिक्षा और स्वास्थ्य को सेवा का माध्यम माना जाता था… वे लाभ कमाने वाले उद्यम नहीं थे। हमें आज फिर वही मानसिकता अपनाने की जरूरत है।”

सेवा के रूप में शिक्षा, वर्तमान व्यावसायिक मॉडल के साथ असंगत है जो तेजी से उभर रहा है। मैं उद्योगपतियों से अपील करता हूं — CSR संसाधनों को समर्पित कर, वैश्विक स्तर के संस्थानों की स्थापना में योगदान दें।”

उन्होंने भारत की पारंपरिक गुरुकुल प्रणाली की प्रशंसा करते हुए कहा कि यही हमारे संविधान में भी स्थान प्राप्त है और यह आज की शिक्षा के लिए एक प्रेरणास्रोत होनी चाहिए।

🎓 पूर्व छात्रों की भूमिका अहम

विश्वविद्यालयों में पूर्व छात्रों की भागीदारी को महत्वपूर्ण बताते हुए उन्होंने कहा—

“विश्व के अनेक विकसित लोकतंत्रों में विश्वविद्यालयों की कोष निधि अरबों डॉलर में है। एक विश्वविद्यालय का कोष 50 अरब डॉलर से भी अधिक है। यह भावना मायने रखती है, राशि नहीं।”

उन्होंने पांडिचेरी विश्वविद्यालय से अपील की कि इस दिशा में पहल की जाए और प्रत्येक पूर्व छात्र को अपनी मातृ संस्था के लिए योगदान देने का अवसर मिले।

“याद रखें, उठाया गया एक छोटा कदम भी मानवता के लिए एक बड़ी छलांग हो सकता है – जैसे नील आर्मस्ट्रांग ने चंद्रमा पर कदम रखते हुए कहा था।”

🗣️ भारत की भाषाएं, भारत की ताकत

भाषाई विविधता पर उपराष्ट्रपति ने कहा—

“हम भाषाओं को लेकर कैसे विभाजित हो सकते हैं? हमारी भाषाएं समावेशिता का प्रतीक हैं। संसार का कोई देश भारत जितना भाषाई समृद्ध नहीं है।”

उन्होंने संस्कृत, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, ओड़िया, मराठी, पाली, प्राकृत, बंगाली, असमिया जैसी भाषाओं को हमारी शास्त्रीय धरोहर बताया और संसद में 22 भाषाओं में चर्चा की अनुमति को भारत की लोकतांत्रिक समावेशिता का प्रमाण बताया।

सनातन परंपरा हमें एक ही उदात्त उद्देश्य के लिए एकजुट होना सिखाती है। हमें आत्मचिंतन करना चाहिए, बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए इस तूफान से बाहर निकलना चाहिए।”

👥 कार्यक्रम में उपस्थित गणमान्य

इस अवसर पर पुडुचेरी के उपराज्यपाल श्री के. कैलाशनाथन, मुख्यमंत्री श्री एन. रंगासामी, विधानसभा अध्यक्ष श्री एम्बलम सेल्वम, राज्यसभा सांसद श्री एस. सेल्वागणपति, लोकसभा सांसद श्री वी. वैथिलिंगम समेत विश्वविद्यालय के कई संकाय सदस्य, छात्र-छात्राएं और गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे।

उपराष्ट्रपति धनखड़ का यह संबोधन भारत की गौरवशाली विरासत, राजनीतिक परिपक्वता, शिक्षा में सेवा भाव और भाषाई समावेशिता पर आधारित था। यह न केवल छात्रों के लिए प्रेरणास्पद रहा, बल्कि पूरे देश को आत्मविश्लेषण का अवसर भी प्रदान करता है — कि भारत अपनी मूल आत्मा से जुड़कर ही विश्वगुरु बनेगा।

News source: PIB Delhi

Continue Reading
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *