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मृदा स्वास्थ्य कार्ड पोर्टल और मोबाइल एप्लिकेशन, स्कूल मृदा स्वास्थ्य कार्यक्रम, कृषि सखी अभिसरण कार्यक्रम और उर्वरक नमूना परीक्षण के लिए सीएफक्यूसीटीआई पोर्टल का शुभारंभ

देश में निरंतर सुविधाओं से किसानों को बनाया जा रहा हैं सशक्त– श्री अर्जुन मुंडा
कृषि सखी से खेती को फायदा, उनकी समाज में विश्वनीयता भी बढ़ेगी–श्री गिरिराज सिंह
नई दिल्ली, 7 मार्च 2024, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की चार महत्वपूर्ण पहलों- मृदा स्वास्थ्य कार्ड पोर्टल एवं मोबाइल एप्लिकेशन, स्कूल मृदा स्वास्थ्य कार्यक्रम, कृषि सखी अभिसरण कार्यक्रम एवं उर्वरक नमूना परीक्षण के लिए सीएफक्यूसीटीआई (केंद्रीय उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण और प्रशिक्षण संस्थान) के पोर्टल का शुभारंभ आज केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा जनजातीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा और केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री गिरिराज सिंह ने कृषि भवन, दिल्ली में किया।
केंद्रीय मंत्री श्री मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के विजन के अनुसार, किसान हित में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा अन्य मंत्रालयों के साथ मिलकर निरंतर इस तरह की पहल की जा रही है व इनके जरिये सफलता के सोपान पर आगे बढ़ रहे हैं। इन पहलों के माध्यम से सुदूरवर्ती क्षेत्रों में भी किसानों को लाभ हो, वे सहजता से खेती करें, इन सुविधाओं का यह उद्देश्य है। हमारे किसान ऐसी सभी सुविधाओं द्वारा सशक्त होंगे तो उनका न केवल अपने लिए, बल्कि देश व दुनिया के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान रहेगा। सरकार उद्देश्यपूर्ण, लक्ष्यपूर्ण व सहकार से समृद्धि के मूल मंत्र के साथ सहकारिता आधारित भारत बनाने के लिए ये काम कर रही है। श्री मुंडा ने कहा कि हम हमारी मृदा के स्वास्थ्य व उपज के माध्यम से लोगों के भी स्वास्थ्य को बेहतर रखने के साथ ही अपने देश तथा दुनिया की भी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए एक नए क्षितिज का निर्माण कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि मृदा स्वास्थ्य को बेहतर रखने में कृषि सखी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में यह एक बहुत बड़ी ताकत उभरी है, जो मृदा स्वास्थ्य के बारे में किसानों को शिक्षित कर सकती हैं। महिला सशक्तिकरण के साथ हम लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाते हुए सार्थक परिणाम की ओर बढ़ रहे हैं।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड पोर्टल और मोबाइल एप्लिकेशन, स्कूल मृदा स्वास्थ्य कार्यक्रम, कृषि सखी अभिसरण कार्यक्रम और उर्वरक नमूना परीक्षण के लिए सीएफक्यूसीटीआई पोर्टल का शुभारंभ
श्री मुंडा ने कहा कि कृषि मंत्रालय ने स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के सहयोग से स्कूल मृदा स्वास्थ्य कार्यक्रम पर पायलट परियोजना भी शुरू की है। इसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों के कुछ केंद्रीय और नवोदय विद्यालयों में मृदा प्रयोगशालाएं स्थापित की गईं। छात्रों व शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया गया, जो अपने गांवों व कृषि क्षेत्र के विकास में सहभागी होंगे। केंद्र सरकार के इस अनूठे कार्यक्रम के तहत केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों और एकलव्य मॉडल स्कूलों को शामिल किया गया है। ये प्रतिभागी कृषि अनुकूल माहौल बनाने में सफल होंगे और इस कार्यक्रम के माध्यम से उन्हें भी व्यवहारिक ज्ञान मिलेगा। उन्होंने कहा कि ये पहलें देश के किसानों के लिए विराट व प्रमुख हैं। उन्होंने रियल-टाइम मृदा स्वास्थ्य व उर्वरता क्षमता बढ़ाने पर भी जोर दिया, ताकि किसान इन पहलों को अपनाकर खेत में मृदा परीक्षण कर अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकें, साथ ही प्राकृतिकता बनी रहें। श्री मुंडा ने कहा कि देश में जैविक व प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देते हुए, जहां मृदा क्षरण बहुत बड़ी मात्रा में हुआ है, वहां सुधार की गुंजाइश पैदा की जाएं और जो क्षेत्र आज भी जैविक है, वहां मृदा को अच्छा बनाए रखने के लिए डेटा तैयार करें। दुनिया में मिट्टी को कई अलग-अलग नाम से बोला जाता है लेकिन हम तो अपनी मिट्टी को धरती मां कहते हैं, यह भाव जुड़ा हुआ है और हमारी इस मां की सेहत अच्छी होना चाहिए। केंद्रीय मंत्री श्री मुंडा ने कहा कि देश में अनेक क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता आईं है, वहीं अन्यान्य में भी हमें आत्मनिर्भर बनना है।
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कार्यक्रम में, केंद्रीय मंत्री श्री गिरिराज सिंह ने कहा कि कृषि सखियों को “पैरा-एक्सटेंशन वर्कर” के रूप में प्रमाणित करने के लिए संयुक्त पहल के रूप में कृषि सखी प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री श्री मोदी को धन्यवाद दिया कि उनके केंद्र में सत्ता में आने के बाद से मृदा स्वास्थ्य को प्रमुखता से लिया गया है। श्री सिंह ने कहा कि कृषि सखी व ड्रोन दीदी जैसे कार्यक्रम के रूप में एक बड़ी ताकत देश में अच्छा काम करने में जुटी है। उन्होंने कहा कि जब मृदा व पशुओं का स्वास्थ्य सुधरता है तो मनुष्यों का स्वास्थ्य भी स्वतः सुधऱ जाता है। आज प्रारंभ की गई सुविधाओं के माध्यम से रियल टाइम डेटा भी उपलब्ध हो सकेगा, वहीं कृषि सखी से खेती को फायदा होने के साथ ही समाज में उनकी विश्वनीयता भी बढ़ेगी, साथ ही किसानों में विश्वास बढ़ेगा। श्री सिंह ने उम्मीद जताई कि आने वाले दिनों में जैविक उत्पादों का बाजार काफी बढ़ेगा। उन्होंने जैविक खेती को बढ़ावा देने में सभी कृषि विज्ञान केंद्रों का योगदान सुनिश्चित करने का आग्रह किया। श्री सिंह ने कहा कि कृषि से जुड़े संबंधित संस्थान कार्बन का भी रियल टाइम डेटा रखें। केंद्रीय मंत्री श्री सिंह ने कहा कि इस तरह की सुविधाओं के माध्यम से देश में प्रधानमंत्री श्री मोदी के सपनों को शत-प्रतिशत जमीन पर उतारने का काम हो रहा है।
कृषि सचिव श्री मनोज अहूजा, ग्रामीण विकास सचिव श्री शैलेष कुमार सिंह, डेयर के सचिव व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक ने भी विचार रखें। इस मौके पर कृषि सखी श्रीमती नंदबाला व अर्चना माणिक ने अनुभव साझा किए, जिन्हें मंत्रीद्वय ने प्रमाण-पत्र प्रदान किए, साथ ही कृषि सखी आईएनएम ट्रेनिंग माड्यूल का विमोचन भी किया। संयुक्त सचिव योगिता राणा ने नई पहलों के बारे में प्रस्तुति दी। कार्यक्रम से कृषि सखी, स्कूली विद्यार्थी, अध्यापक वर्चुअल जुड़े थे।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड पोर्टल और मोबाइल एप– पोर्टल को नया रूप दिया गया है, जिसके तहत राष्ट्रीय, राज्य, जिला व ग्राम स्तर पर केंद्रीकृत डैशबोर्ड उपलब्ध कराया गया है। जीआईएस विश्लेषण वास्तविक तात्कालिक रूप से उपलब्ध हैं। किसान एसएमएस व पोर्टल पर मोबाइल नंबर दर्ज करके एसएचसी डाउनलोड कर सकते हैं। पोर्टल में मृदा रजिस्ट्री, उर्वरक प्रबंधन, इमोजी आधारित मृदा स्वास्थ्य कार्ड, पोषक तत्व डैशबोर्ड, पोषक तत्वों के हीट मैप दिए गए हैं। अब तत्काल प्रगति की निगरानी की जा सकती है। मोबाइल ऐप आधारित मृदा नमूना संग्रहण व परीक्षण शुरू किया गया है। अब, जहां से नमूने एकत्र किए जाते हैं, एप से किसानों के जियो-कोर्डिनेट्स स्वचालित रूप से कैप्चर किए जा रहे हैं। क्यूआर कोड स्कैन सक्षम नमूना संग्रहण शुरू किया गया है, जो मृदा के उचित नमूना संग्रहण को सुनिश्चित करता है। ऐप, प्लॉट विवरण को भी पंजीकृत करता है व ऑनलाइन और ऑफलाइन मोड दोनों में काम करता है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनने तक किसान मृदा के नमूने का ट्रैक रख सकते हैं।
स्कूल मृदा स्वास्थ्य कार्यक्रम– पायलट परियोजना शुरू, जिसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों के 20 केंद्रीय व नवोदय विद्यालयों में मृदा प्रयोगशालाएं स्थापित, अध्ययन मॉड्यूल विकसित किए और छात्रों-शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया। मोबाइल एप को स्कूल कार्यक्रम के लिए अनुकूलित किया गया और पोर्टल में कार्यक्रम के लिए अलग खंड है, जहां छात्रों की गतिविधियों को रखा गया है। अब, इस कार्यक्रम को 1000 स्कूलों में बढ़ाया गया है। केंद्रीय-नवोदय विद्यालय व एकलव्य मॉडल स्कूल कार्यक्रम में शामिल। स्कूलों को पोर्टल पर जोड़ा जा रहा, ऑनलाइन बैच बनाए जा रहे हैं। नाबार्ड के जरिये कृषि मंत्रालय स्कूलों में मृदा लैब्स स्थापित करेगा। छात्र मृदा नमूने एकत्र करेंगे, स्कूलों में स्थापित प्रयोगशालाओं में परीक्षण करेंगे और मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाएंगे। इसके बाद वे किसानों के पास जाएंगे व उन्हें मृदा स्वास्थ्य की अनुशंसा के बारे में शिक्षित करेंगे। यह कार्यक्रम विद्यार्थियों द्वारा प्रयोग करने, मृदा नमूनों का विश्लेषण करने और मृदा में उपस्थित आकर्षक जैव विविधता के विषय में जानकारी जुटाने का अवसर प्रदान करेगा। व्यावहारिक गतिविधियों में संलग्न होने पर, विद्यार्थियों में समीक्षात्मक रूप से विचार करने का कौशल, समस्या निवारण करने की क्षमता और पारिस्थितिक तंत्र के अंतर्संबंधता की व्यापक समझ विकसित होगी। मृदा प्रयोगशाला कार्यक्रम केवल वैज्ञानिक अन्वेषण के विषय में नहीं है, अपितु यह पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी और सम्मान की भावना पैदा करने में जागरूक करेगा।
कृषि सखी अभिसरण कार्यक्रम– ग्रामीण परिदृश्य बदलने में कृषि सखियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। कृषि मंत्रालय व ग्रामीण विकास मंत्रालय के बीच अभिसरण पहल के रूप में कार्यक्रमों को अभिसारित करने के लिए 30 अगस्त 2023 को एमओयू किया गया था। इसके एक हिस्से के रूप में 70 हजार कृषि सखियों को “पैरा-एक्सटेंशन वर्कर” के रूप में प्रमाणित करने के लिए संयुक्त पहल के रूप में कृषि सखी प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया। ये सखियां, महत्वपूर्ण योजनाओं जैसे-प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, नेशनल मिशन आन नेचुरल फार्मिंग, जैव संसाधन केंद्रों व कई अन्य योजनाओं के क्रियान्वयन में भूमिका अदा करेगी। कृषि सखी, अर्थात स्टेट रूरल लाइवहुड मिशन द्वारा चिह्नित गांवों की महिलाओं को सहज क्षमता तथा खेती-गांवों से मजबूत जुड़ाव से ग्रामीण कृषि सेवाओं में व्याप्त अंतर को पाटने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। कृषि सखी,जनभागीदारी रूप में प्राकृतिक खेती, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, परीक्षण पर जागरूकता सृजन बैठकों का आयोजन करेगी। इन पहलों का कृषि सखियों की आजीविका बढ़ाने पर सीधा प्रभाव पड़ेगा तथा कृषि कार्यक्रम व योजनाओं तक व्यापक पहुंच भी सुनिश्चित होगी। 3500 कृषि सखियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। इस कार्यक्रम को एक साथ 13 राज्यों में क्रियान्वित किया जा रहा है।
उर्वरक नमूना परीक्षण के लिए सीएफक्यूसीटीआई पोर्टल– किसानों को गुणवत्तापूर्ण उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने एवं उत्पादन, आपूर्ति और वितरण पर नियंत्रण करने की दृष्टि से कृषि मंत्रालय द्वारा केंद्रीय उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण और प्रशिक्षण संस्थान (सीएफक्यूसीटीआई) प्रयोगशाला स्थापित की गई। इसका लक्ष्य आयातित उर्वरकों की गुणवत्ता को नियंत्रित करना है। सीएफक्यूसीटीआई पोर्टल को वर्ष 2014-15 में बंदरगाहों पर आयातित उर्वरकों के नमूने लेने, नमूनों की सिस्टम कोडिंग/डिकोडिंग व आयातकों को सीधे ऑनलाइन विश्लेषण रिपोर्ट भेजने के उद्देश्य से तैयार किया गया, ताकि किसानों को आपूर्ति से पहले उनके उत्पाद की गुणवत्ता जानने में होने वाले विलंब से बचाया जा सकें। इस पोर्टल को नया रूप दिया गया है। बंदरगाहों पर नमूना संग्रहण व परीक्षण हेतु वन टाइम पासवर्ड/एसएमएस एप शुरू किया गया है। सिस्टम इसे आयातक के अधिकृत व्यक्ति के मोबाइल पर भेजेगा, जिसमें व्यक्ति निर्धारित फॉर्म में निरीक्षक द्वारा भरे विवरणों को सत्यापित कर सकता है। सिस्टम द्वारा स्वचालित रूप से रेन्डम बेसिस पर प्रयोगशालाओं को नमूना आवंटित किया जाएगा और विश्लेषण रिपोर्ट सिस्टम के माध्यम से आयातक के अधिकृत व्यक्ति की ई-मेल आईडी पर या सीधे आयातक को, जैसा भी मामला हो, जारी की जाएगी। दूसरे चरण में, पोर्टल को बंदरगाहों/डीलर बिक्री स्थान आदि पर लाइव सैंपलिंग सहित स्वदेशी रूप से निर्मित उर्वरकों के नमूने के लिए अपडेट किया जा सकता है।
धार्मिक
रामनवमी पर चांडिल में भव्य शोभा यात्रा, उमड़ा रामभक्तों का जनसैलाब

चांडिल: रामनवमी के पावन अवसर पर श्री राम समिति, चांडिल के अध्यक्ष आकाश महतो के नेतृत्व में एक भव्य शोभा यात्रा का आयोजन किया गया। इस शोभा यात्रा में सैकड़ों की संख्या में रामभक्तों ने उत्साह और श्रद्धा के साथ भाग लिया। रामभक्ति से सराबोर यह शोभा यात्रा पूरे चांडिल क्षेत्र में आकर्षण का केंद्र बनी रही।
यात्रा की शुरुआत मंगलाचरण के साथ हुई और पूरे मार्ग में श्रीराम के जयकारे गूंजते रहे। युवाओं का उत्साह देखते ही बन रहा था, जिन्होंने पारंपरिक परिधानों में ढोल-नगाड़ों की ताल पर नृत्य करते हुए शोभा यात्रा को जीवंत बना दिया। वहीं, महिलाओं की भागीदारी भी इस आयोजन में विशेष रूप से देखने को मिली। उन्होंने भक्ति गीतों और धार्मिक झांकियों के माध्यम से वातावरण को भक्तिमय बना दिया।
डीजे की धुन पर रामभक्त झूमते नजर आए, जिससे शोभा यात्रा और भी रंगीन और आकर्षक बन गई। सभी ने भगवा अंग वस्त्र धारण किया हुआ था, जिससे पूरे वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा और एकता की भावना झलक रही थी। रामनवमी के इस पर्व को जन्मोत्सव की तरह पूरे उल्लास और धूमधाम से मनाया गया।
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स्थानीय लोगों ने शोभा यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं के लिए जगह-जगह शरबत और जलपान की व्यवस्था कर अतिथि सत्कार की मिसाल पेश की। इस आयोजन के सफल संचालन के लिए श्री राम समिति और स्थानीय प्रशासन ने विशेष सहयोग किया। अध्यक्ष आकाश महतो ने सभी श्रद्धालुओं और सहयोगियों का धन्यवाद करते हुए कहा कि “रामनवमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि हमारे संस्कारों और एकता का प्रतीक है।”
यह शोभा यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक बनी, बल्कि सामाजिक सौहार्द और सामूहिक सहभागिता का संदेश भी लेकर आई।
वीडियो देखें :
क्राइम
रेलवे ट्रैक पर मिला महिला का शव, 24 घंटे में पुलिस ने सुलझाई हत्या की गुत्थी

सरायकेला : यशपुर रेलवे फाटक से महज 100 मीटर की दूरी पर पड़ा महिला का शव अब एक सनसनीखेज हत्या की गवाही दे रहा है। यह मामला सरायकेला जिले के गम्हरिया थाना क्षेत्र का है, जहाँ एक अज्ञात महिला की लाश रेलवे ट्रैक पर मिलने से पूरे इलाके में हड़कंप मच गया।
स्थानीय लोगों की सूचना पर मौके पर पहुँची पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर जांच शुरू की। शुरुआत में मामला आत्महत्या का प्रतीत हो रहा था, लेकिन पुलिस की सतर्कता और एसडीपीओ के नेतृत्व में गठित एसआईटी (विशेष जांच टीम) ने महज 24 घंटे में इस रहस्य से पर्दा हटा दिया।
पुलिस ने मृतका की पहचान भवानी कैवर्त के रूप में की, जो कि नारायणपुर गांव, सरायकेला की रहने वाली थीं। लेकिन इससे भी चौंकाने वाला तथ्य तब सामने आया जब जांच में पता चला कि इस हत्या को अंजाम किसी और ने नहीं, बल्कि महिला के अपने पोते लक्ष्मण कैवर्त और उसके साथी चंदन कैवर्त ने ही दिया।
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एसडीपीओ के अनुसार, प्रारंभिक पूछताछ में यह स्पष्ट हुआ है कि हत्या आपसी पारिवारिक विवाद के चलते की गई। हत्या को रेलवे दुर्घटना की शक्ल देने के लिए महिला के शव को ट्रैक पर फेंक दिया गया था। लेकिन पुलिस की टीम ने तकनीकी साक्ष्य, कॉल रिकॉर्ड और मौके की बारीकी से जांच कर साजिश की परतें खोल दीं।
फिलहाल दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है, और मामले की आगे की जांच जारी है। पुलिस यह भी जांच कर रही है कि इस घटना में और कौन-कौन लोग शामिल हो सकते हैं।
इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि अपराध चाहे जितना भी शातिर तरीके से क्यों न किया गया हो, कानून की नजर से छुप नहीं सकता।
TNF News
ट्रेन लेट होना अब सिर्फ असुविधा नहीं, एक सामाजिक अन्याय बन चुका है।

ट्रेन लेट होना अब सिर्फ असुविधा नहीं, एक सामाजिक अन्याय बन चुका है। सरकार और रेलवे को इस पर ध्यान देना होगा। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब लोग यह कहने लगेंगे : “रेल यात्रा का मतलब है—अनिश्चितता, असुरक्षा और असंवेदनशीलता।”
- क्या समय पर पहुँचना अब सपना बन गया है? – ट्रेन लेट होने की त्रासदी
SOCIAL DIARY : 31 मार्च 2025 का दिन, नई दिल्ली से पूरी जाने वाली ट्रेन संख्या 18102 चांडिल स्टेशन पर सुबह 11:00 बजे पहुँची, और टाटानगर जंक्शन तक पहुँचते-पहुँचते तीन घंटे 40 मिनट की देरी हो चुकी थी।
अब यह केवल एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि इससे जुड़ी हैं कई अनकही कहानियाँ — कोई परीक्षार्थी जो साल भर की मेहनत के बाद परीक्षा केंद्र पहुंचने की दौड़ में था, कोई बेटा जो अपनी बीमार माँ से आखिरी बार मिलना चाहता था, कोई महिला जो अपने बीमार बच्चे को अस्पताल ले जा रही थी।
लेकिन क्या रेलवे को इन कहानियों से कोई फर्क पड़ता है?
- ट्रेन लेट होना: आम जनजीवन पर एक गंभीर प्रभाव
भारतीय रेल देश की जीवनरेखा मानी जाती है। करोड़ों लोग प्रतिदिन रेल सेवाओं का उपयोग करते हैं—कोई काम पर जाता है, कोई इलाज के लिए सफर करता है, कोई परीक्षा देने निकलता है, तो कोई अपनों से मिलने। लेकिन जब यही ट्रेनें समय से नहीं चलतीं, तो आम जनता के जीवन पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ता है। ट्रेन लेट होना भारत में वर्षों से एक सामान्य समस्या रही है, लेकिन इसके पीछे छिपे दर्द और संकटों की आवाज़ अब बुलंद होनी चाहिए।
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जब ट्रेन लेट होती है, तो सिर्फ समय नहीं जाता — उम्मीदें, मौके और कभी-कभी जान भी चली जाती है।
रेलवे देरी के पीछे “तकनीकी खराबी”, “भीड़”, या “मौसम” जैसे कारण गिनाता है। मगर उन लोगों का क्या जो इस देरी के कारण परीक्षा नहीं दे पाते, अस्पताल नहीं पहुँच पाते, या जिन्हें अपनों की आखिरी सांसें पकड़ने का मौका तक नहीं मिलता?
- क्या कोई जवाबदेही है?
- क्या कोई अधिकारी यह मानता है कि उसकी व्यवस्था के कारण किसी की ज़िंदगी तबाह हुई?
आज की घटना एक उदाहरण है, समस्या नहीं
यह तो हर रोज़ की कहानी बन चुकी है। देशभर में हर दिन दर्जनों ट्रेनें घंटों लेट होती हैं। लेकिन हमारी समस्या सिर्फ ट्रेन लेट होना नहीं है, समस्या है — इस देरी को सामान्य मान लेना।
हमने समय पर चलने की उम्मीद छोड़ दी है। यह खतरनाक है।
ट्रेन लेट होना केवल असुविधा नहीं, यह एक अधिकार हनन है
क्या एक नागरिक को यह अधिकार नहीं है कि वह समय पर पहुंचे? क्या सरकार की यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह ऐसी व्यवस्था दे जो भरोसेमंद हो?
जैसा कि श्री अमरिख सिंह, जिला उपाध्यक्ष, आम आदमी पार्टी (पूर्वी सिंहभूम) ने कहा:
“अगर किसी की मृत्यु हो जाती है, किसी का एग्जाम छूट जाता है, तो इसका जिम्मेदार कौन है? यह अमानवीय कार्य बंद होना चाहिए।”
यह प्रश्न केवल एक व्यक्ति का नहीं है, यह हर उस नागरिक का है जो रेल व्यवस्था पर निर्भर है।
अब वक्त है बदलाव का
रेलवे को चाहिए कि वह—
- हर स्टेशन पर रीयल टाइम सूचना प्रणाली को मजबूत करे
- देरी की स्थिति में यात्रियों को मुआवजा दे
- गंभीर मामलों में जवाबदेही तय करे
- आपातकालीन यात्राओं के लिए प्राथमिकता को सिस्टम में शामिल करे
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घटना का संदर्भ:
31 मार्च 2025 को नई दिल्ली से पूरी जाने वाली ट्रेन संख्या 18102, जो टाटानगर होते हुए गुजरती है, चांडिल स्टेशन पर 11:00 बजे पहुँची। यह ट्रेन टाटा जंक्शन में तीन घंटे 40 मिनट की देरी से पहुँची। इस ट्रेन में कई परीक्षार्थी अपने एग्जाम देने जा रहे थे, कुछ लोग अपने बीमार माता-पिता से मिलने, तो कुछ मरीजों को अस्पताल ले जाने के लिए सफर कर रहे थे।
इस देरी के कारण कई संभावनाएं संकट में पड़ीं—अगर कोई मरीज समय पर अस्पताल नहीं पहुँचता और उसकी जान चली जाती है, या किसी छात्र की परीक्षा छूट जाती है, तो इसका जिम्मेदार कौन है? क्या रेलवे प्रशासन अपनी जवाबदेही स्वीकार करता है?
ट्रेन लेट होने के कारण:
- तकनीकी खराबियाँ: लोकोमोटिव में तकनीकी खराबियाँ अक्सर ट्रेनों की लेटलतीफी का कारण बनती हैं।
- पुरानी इंफ्रास्ट्रक्चर: रेलवे ट्रैक और सिग्नलिंग प्रणाली का आधुनिकीकरण न हो पाना।
- मौसम की मार: कोहरा, बारिश, और बाढ़ जैसे प्राकृतिक कारण भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
- ऑपरेशनल मिसमैनेजमेंट: ट्रेनों का समय पर प्लेटफॉर्म न मिल पाना या गलत टाइम टेबल मैनेजमेंट।
- राजनीतिक और वीआईपी मूवमेंट: कई बार विशेष ट्रेनों को प्राथमिकता देने से आम यात्री गाड़ियों की अनदेखी की जाती है।
आम जनजीवन पर प्रभाव:
- छात्रों पर असर: परीक्षा से चूकना न केवल एक मौके का नुकसान है, बल्कि मानसिक और भविष्यगत तनाव भी है।
- बीमार यात्रियों के लिए संकट: मेडिकल एमरजेंसी में देरी जानलेवा साबित हो सकती है।
- कामकाजी लोगों का नुकसान: समय पर नौकरी पर न पहुँचने से वेतन कटौती या नौकरी पर खतरा हो सकता है।
- मानसिक तनाव और असुविधा: घंटों प्रतीक्षा करना, खानपान की समस्याएँ, और थकावट यात्रियों के अनुभव को नकारात्मक बना देती है।
- परिवारिक समस्याएं: शादी, अंतिम संस्कार या किसी जरूरी पारिवारिक कार्यक्रम में देर होने से सामाजिक पीड़ा उत्पन्न होती है।
जवाबदेही का सवाल:
जब ऐसी घटनाएं होती हैं, तो रेलवे प्रशासन अक्सर “अनुकूल परिस्थितियों” का हवाला देकर पल्ला झाड़ लेता है। लेकिन एक लोकतांत्रिक देश में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है। समय पर सेवा देना, खासकर जीवन-मृत्यु या भविष्य से जुड़ी यात्राओं में, कोई सुविधा नहीं, बल्कि एक अधिकार है।
जैसा कि श्री अमरिख सिंह (जिला उपाध्यक्ष, आम आदमी पार्टी, पूर्वी सिंहभूम) ने भी कहा है, अगर ऐसी घटनाओं में किसी की मृत्यु होती है या किसी का भविष्य संकट में पड़ता है, तो इसकी पूरी जिम्मेदारी रेलवे प्रशासन की होनी चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह इस अमानवीय व्यवस्था पर रोक लगाए और आम लोगों के अधिकारों का हनन बंद करे।
समाधान के सुझाव:
- रेलवे सिस्टम का आधुनिकीकरण और तकनीकी सुधार।
- टाइम टेबल में पारदर्शिता और वास्तविक समय पर अपडेट।
- यात्रियों को देरी की स्थिति में मुआवजा और वैकल्पिक सुविधा देना।
- ट्रेन संचालन में ज़िम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय करना।
- रेल यात्रियों की आपातकालीन आवश्यकताओं के लिए विशेष व्यवस्था करना।
निष्कर्ष:
ट्रेन लेट होना एक सामान्य समस्या नहीं रह गई है। यह आम जनता के जीवन, भविष्य और स्वास्थ्य से जुड़ा संवेदनशील मुद्दा है। सरकार और रेलवे प्रशासन को चाहिए कि वे इसे गंभीरता से लें, ताकि आम आदमी को राहत मिल सके और रेल यात्रा फिर से समयबद्ध, भरोसेमंद और मानवीय बन सके। ट्रेन लेट होना अब सिर्फ असुविधा नहीं, एक सामाजिक अन्याय बन चुका है। सरकार और रेलवे को इस पर ध्यान देना होगा। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब लोग यह कहने लगेंगे—
“रेल यात्रा का मतलब है—अनिश्चितता, असुरक्षा और असंवेदनशीलता।”
समय पर ट्रेन चलाना सिर्फ तकनीक का सवाल नहीं, यह नैतिक ज़िम्मेदारी है। और यह जिम्मेदारी अब टाली नहीं जा सकती।
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