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झारखंड

🔴 लुगु पहाड़ मुठभेड़ में शामिल महिला नक्सली ने किया आत्मसमर्पण

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  • भाकपा माओवादी की सदस्य सुनीता मुर्मू ने एसपी और सीआरपीएफ कमांडेंट के समक्ष छोड़ा हथियार

📍 बोकारो | 🗓️ आत्मसमर्पण: 28 अप्रैल 2025 | ✍️ रिपोर्टर: जय कुमार

मुख्य बिंदु:

  • महिला नक्सली सुनीता मुर्मू उर्फ लिलमुनि मुर्मू ने किया आत्मसमर्पण
  • लुगु पहाड़ मुठभेड़ में शामिल थी सुनीता, जहां 8 हार्डकोर नक्सली मारे गए थे
  • बोकारो के एसपी मनोज स्वर्गीयारी और CRPF कमांडेंट के समक्ष सरेंडर
  • राज्य सरकार की पुनर्वास नीति और पुलिस दबाव को बताया आत्मसमर्पण का कारण
  • दुमका निवासी सुनीता 2017 में नक्सल संगठन में हुई थी शामिल

📰 घटना का विवरण:

बोकारो जिले में नक्सल विरोधी अभियान ‘ऑपरेशन डाकाबेड़ा’ के तहत 21 अप्रैल को लुगु पहाड़ क्षेत्र में हुई मुठभेड़ के बाद बड़ी सफलता सामने आई है। इस मुठभेड़ में जहां एक करोड़ के इनामी नक्सली विवेक सहित आठ उग्रवादी ढेर हो गए थे, वहीं कुछ नक्सली मौके से फरार हो गए थे।

इन्हीं में शामिल थी सुनीता मुर्मू उर्फ लिलमुनि मुर्मू, जिसने सोमवार को स्वेच्छा से आत्मसमर्पण करते हुए नक्सली संगठन से नाता तोड़ने की घोषणा की। उसने बोकारो एसपी मनोज स्वर्गीयारी और CRPF कमांडेंट के समक्ष औपचारिक रूप से हथियार डाला।

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👤 नक्सली बनने की कहानी:

दुमका जिले के अमरपानी गांव की रहने वाली सुनीता वर्ष 2017 में जंगल के रास्ते एक महिला के साथ नक्सल संगठन में शामिल हुई थी। शुरू में उसे खाना बनाने और रसद पहुँचाने का काम दिया गया, लेकिन बाद में वह संतरी ड्यूटी और अन्य संगठनात्मक गतिविधियों में भी शामिल हो गई।

🎯 सरेंडर का कारण:

माना जा रहा है कि हाल की कड़ी मुठभेड़, पुलिस का दबाव, और राज्य सरकार की आत्मसमर्पण व पुनर्वास नीति ने सुनीता को संगठन छोड़ने के लिए प्रेरित किया। पुलिस सूत्रों के अनुसार, वह स्वेच्छा से चलकर एसपी आवास पहुंची थी और आत्मसमर्पण किया।

विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण:

सुनीता मुर्मू का आत्मसमर्पण नक्सल संगठन के कमजोर होते मनोबल और सरकार की रणनीति की सफलता का संकेत है। हाल के अभियानों में जिस प्रकार हार्डकोर नक्सलियों का खात्मा हुआ है, उससे यह स्पष्ट है कि सुरक्षाबलों ने झारखंड में नक्सल नेटवर्क को जड़ से उखाड़ने की दिशा में बड़ी बढ़त बनाई है।

निष्कर्ष:

सुनीता मुर्मू का आत्मसमर्पण केवल एक नक्सली की हार नहीं, बल्कि एक बेहतर जीवन की ओर लौटने की उम्मीद है। सरकार की आत्मसमर्पण नीति और पुनर्वास योजना ऐसे भटके युवाओं के लिए एक नई राह खोल रही है। यह कदम अन्य नक्सलियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकता है।

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