क्राइम
Crime Diary: सभी आरोपी साक्ष्य के अभाव में बरी, उम्रकैद की सजा रद्द

- अमित राय हत्याकांड में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: सभी आरोपी साक्ष्य के अभाव में बरी, उम्रकैद की सजा रद्द
- झारखंड हाईकोर्ट ने जताया सबूतों की कमजोरी पर संदेह, मृतक के परिजनों के अगले कदम पर निगाहें
Crime Diary, रांची/जमशेदपुर | झारखंड हाईकोर्ट ने बहुचर्चित अमित राय हत्याकांड में सोमवार को एक बड़ा फैसला सुनाते हुए गैंगस्टर सुधीर दुबे, कन्हैया सिंह समेत सभी आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है। कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा 2018 में सुनाई गई उम्रकैद की सजा को रद्द कर दिया है। इस फैसले से जहां आरोपी पक्ष को बड़ी राहत मिली है, वहीं मृतक के परिजन और समाज में कई सवाल फिर से उठ खड़े हुए हैं।
मामला: दिनदहाड़े गोली मारकर की गई थी हत्या
यह मामला 6 दिसंबर 2016 का है, जब जमशेदपुर के सोनारी थाना क्षेत्र में स्थित शिवगंगा अपार्टमेंट के पास दिनदहाड़े अमित राय की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस सनसनीखेज हत्याकांड ने पूरे शहर को हिला कर रख दिया था।
मृतक के पिता नागेंद्र राय ने सोनारी थाना में एफआईआर दर्ज करवाई थी, जिसमें गैंगस्टर अखिलेश सिंह, हरीश सिंह, कन्हैया सिंह, सुधीर दुबे समेत कई अन्य के नाम शामिल थे।
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जांच में सामने आया था गैंगवार का एंगल
पुलिस जांच में पता चला कि अमित राय पहले अखिलेश सिंह गैंग से जुड़ा हुआ था, लेकिन बाद में विवाद होने के कारण उसने उपेंद्र सिंह के गुट का साथ देना शुरू कर दिया था। साथ ही वह पुलिस की मदद से अखिलेश सिंह को गिरफ्तार कराने की कोशिश कर रहा था।
हत्या की साजिश का आरोप अखिलेश सिंह, हरीश सिंह और जसबीर सिंह पर लगाया गया था। वहीं, वारदात को अंजाम देने वालों में कन्हैया सिंह, सुधीर दुबे, मोहन यादव, संजीव गोराई, अजय मंडल और संजय सोना के नाम सामने आए थे।
निचली अदालत का फैसला
30 जुलाई 2018 को जमशेदपुर की निचली अदालत ने चार आरोपियों —
- सुधीर दुबे,
- कन्हैया सिंह,
- मोहन यादव,
- संजीव गोराई
को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
जबकि अजय मंडल और संजय सोना को सबूतों के अभाव में पहले ही बरी कर दिया गया था। बाद में अखिलेश सिंह, हरीश सिंह और जसबीर सिंह को भी कोर्ट ने सबूतों की कमजोरी के आधार पर दोषमुक्त कर दिया।
हाईकोर्ट का निर्णय: सबूतों पर सवाल
हाईकोर्ट ने अपने ताजा फैसले में कहा कि मूल सुनवाई के दौरान पेश किए गए साक्ष्य आरोपियों को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं थे। इसके आधार पर चारों दोषियों को बरी कर दिया गया।
- सुधीर दुबे और कन्हैया सिंह पहले से ही जमानत पर बाहर थे,
- जबकि मोहन यादव और संजीव गोराई अब तक जेल में बंद थे, जिन्हें अब रिहा किया जाएगा।
न्याय प्रणाली की जटिलता और सबूतों की अहमियत
इस फैसले ने एक बार फिर दिखा दिया है कि भारतीय न्याय प्रणाली में साक्ष्य ही अंतिम निर्णायक होता है। हाईकोर्ट के इस फैसले से उन मामलों पर प्रकाश पड़ा है, जहां पुलिस जांच, अभियोजन और गवाहों की भूमिका निर्णायक साबित होती है।
आगे की राह
अब सबकी नजरें मृतक अमित राय के परिजनों पर हैं — क्या वे इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे या न्याय की इस प्रक्रिया को यहीं समाप्त मानेंगे?
📰 विशेष बिंदु:
- हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा को किया रद्द
- चारों दोषियों को साक्ष्य के अभाव में बरी
- जेल में बंद दो आरोपियों को भी जल्द रिहा किया जाएगा
- न्यायिक प्रक्रिया में सबूतों की भूमिका पर फिर से बहस तेज
यह मामला न्यायिक प्रणाली में अपील और साक्ष्य की केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करता है — जहां दोष सिद्धि केवल भावनाओं पर नहीं, ठोस तथ्यों और सबूतों पर निर्भर होती है।