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Brand Modi से विरोधियों की भी चल रही रोजी-रोटी : प्रो. संजय द्विवेदी

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Brand Modi से विरोधियों की भी चल रही रोजी-रोटी : प्रो. संजय द्विवेदी

वरिष्ठ पत्रकार आनंद सिंह से भारतीय जनसंचार संस्थान के पूर्व महानिदेशक की विशेष बातचीत

मुख्य बातें:

  • मोदी के नाम पर समर्थन हो या विरोध—दोनों से चल रही है दुकानें
  • मीडिया में अंधसमर्थन और अंधविरोध दोनों ही खतरनाक
  • टीवी की बहसें मुद्दों से भटक रही हैं, शोर में दब रही हैं गंभीर आवाजें
  • पत्रकारिता का नया चेहरा: मैदान से ज्यादा अब स्क्रीन पर सक्रियता
  • ‘ब्रांड मोदी’ विरोध करके भी देता है कमाई: प्रो. द्विवेदी का तंज
  • संघ की विचारधारा पर समाज की रुचि बढ़ी, मीडिया में नहीं घुसपैठ

नई दिल्ली।
भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) के पूर्व महानिदेशक और वरिष्ठ पत्रकारिता विचारक प्रो. संजय द्विवेदी का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ऐसा राजनीतिक ‘ब्रांड’ बन चुके हैं, जिसके समर्थन और विरोध—दोनों से लोगों को लाभ मिल रहा है। उन्होंने कहा कि “मोदी का नाम लेकर गालियां देकर भी लोग रोजगार पा रहे हैं। यह ‘ब्रांड मोदी’ की ताकत है।”

वरिष्ठ पत्रकार आनंद सिंह से हुई विशेष बातचीत में प्रो. द्विवेदी ने मीडिया, पत्रकारिता, राजनीति और समाज में उभरते ट्रेंड्स पर खुलकर अपनी बात रखी।

टीवी डिबेट में पाकिस्तान का मुद्दा अब ‘ड्रामा’ बन चुका है

टीवी माध्यम की सीमा और शक्ति दोनों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, “टीवी पर ड्रामा क्रिएट करना पड़ता है। जब मुद्दे नहीं होते, तो गढ़े जाते हैं। चर्चा बहुत होती है पर सार्थक नहीं।” उन्होंने यह भी कहा कि गंभीरता और लोकप्रियता के बीच जब चुनाव होता है तो मीडिया प्रायः शोर मचाने वाले विकल्प को चुनता है।

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‘ब्रांड मोदी’ से बन रहे प्रो-मोदी और एंटी-मोदी खेमे

प्रो. द्विवेदी ने कहा कि नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द पूरा राजनीतिक विमर्श केंद्रित हो गया है। “मोदी के समर्थक और विरोधी—दोनों उनकी वजह से चर्चा में हैं। अंधसमर्थन और अंधविरोध—दोनों ही लोकतंत्र के लिए घातक हैं। विरोध करते-करते कुछ लोग भारत विरोध तक उतर आते हैं।”

यूट्यूब चैनल्स पर भी मोदी का बोलबाला

जब उनसे पूछा गया कि क्या यूट्यूब और डिजिटल मीडिया में भी मोदी हावी हैं, तो उन्होंने दो टूक कहा, “मोदी का व्यक्तित्व ऐसा है कि उनके नाम पर चैनल चल रहे हैं। गालियां देकर भी व्यवसाय हो रहा है। यह स्वस्थ पत्रकारिता नहीं बल्कि ‘सुपारी पत्रकारिता’ है।”

संघ की मीडिया में घुसपैठ नहीं, समाज की रुचि है

संघ विचारधारा के लोगों की टीवी उपस्थिति पर उन्होंने कहा, “संघ के अधिकृत लोग टीवी पर नहीं जाते, बल्कि समर्थक जाते हैं। यह समाज की रुचि है, संघ की नहीं।” उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ प्रचार की बजाय कार्य में विश्वास रखता है।

फील्ड से दूर हो रही पत्रकारिता

प्रो. द्विवेदी ने स्वीकार किया कि अब संवाददाता फील्ड में कम जाते हैं, लेकिन सोशल मीडिया और छोटे शहरों के पत्रकारों के कारण कवरेज का दायरा बढ़ा है। “आज खबरें हर कस्बे से आती हैं। मीडिया अब बहुआयामी और सघन हो चुका है।”

सरकारी विज्ञापन और अखबारों की स्वतंत्रता

सरकार से नाराजगी पर विज्ञापन रोके जाने के ट्रेंड पर उन्होंने सरकारों को चेताया कि “मीडिया की आलोचनात्मक भूमिका जरूरी है।” उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि “कई पत्रिकाएं मोदी और योगी के खिलाफ लिखती हैं फिर भी विज्ञापन मिलते हैं। मीडिया को काम करने दीजिए।”

निजी जीवन में संगीत और साहित्य का प्यार

अपने पसंदीदा संगीत की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वे जगजीत सिंह की गजलें, भजन और सुंदरकांड नियमित सुनते हैं। पढ़ी गई हालिया किताब के रूप में उन्होंने रामबहादुर राय की ‘भारतीय संविधान: एक अनकही कहानी’ का नाम लिया और बताया कि यह अमृतकाल की वैचारिक समझ बढ़ाने वाली पुस्तक है।

निष्कर्ष

प्रो. संजय द्विवेदी की यह बातचीत सिर्फ पत्रकारिता की आलोचना नहीं, बल्कि दिशा-संकेत भी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि मीडिया की स्वतंत्रता, जिम्मेदारी और विवेकशील आलोचना आज के लोकतंत्र की बुनियादी ज़रूरत है। ‘ब्रांड मोदी’ का प्रसंग इस दौर की राजनीति, मीडिया और समाज तीनों का प्रतिबिंब है, जिसमें समर्थन और विरोध दोनों से ‘रोजगार’ बन रहा है।

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