नई दिल्ली : भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज (2 मार्च, 2024) ओडिशा के संबलपुर स्थित मिनी स्टेडियम में महिमा पंथ की एक बैठक को संबोधित किया।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने संत कवि भीमा भोई के लिए अपना सम्मान व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि उनकी शिक्षाएं और आदर्श हमेशा उनके लिए प्रेरणा का स्रोत रहे हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि संत कवि भीमा भोई इसका अनूठा उदाहरण हैं कि औपचारिक शिक्षा के बिना भी उच्च गुणवत्ता वाले साहित्य की रचना की जा सकती है। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि संत कवि भीमा भोई के पास अद्वितीय अंतर्दृष्टि थी। यही कारण है कि उन्होंने अनेक कालजयी छंदों की रचना की, जो आज भी सभी जगह गाए जाते हैं।
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राष्ट्रपति ने कहा कि भीमा भोई के कार्यों में सबके हित में सामाजिक समानता व आदर्श प्रतिबिंबित होता है और वे हमेशा प्रासंगिक रहेंगे। उन्होंने युवा पीढ़ी से भीमा भोई के आदर्शों को अपनाने का अनुरोध किया।
राष्ट्रपति ने बताया कि महिमा गोसेन ने महिमा पंथ की शुरुआत की थी और यह पंथ जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करता है। इसे देखते हुए समाज के लगभग सभी वर्गों के लोग इस संप्रदाय की ओर आकर्षित हुए। भीमा भोई ने समाज में समानता लाने के लिए खुद को समर्पित कर दिया और अपने भाषणों, गीतों व कविताओं के माध्यम से इस पंथ के दर्शन का प्रचार- प्रसार किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि भीमा भोई का कार्य कालजयी और मानवता के कल्याण के लिए है। उनकी शिक्षाएं और आदर्श केवल ओडिशा तक ही सीमित नहीं रहने चाहिए। उनकी जीवनी व लेखन का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया जाना चाहिए और भारत सहित पूरे विश्व में प्रसार किया जाना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि संतों की गद्दी तीर्थस्थलों की तरह ही पवित्र है। वे सदैव प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। हमें उनके आदर्शों पर चलकर राष्ट्र निर्माण के लिए समर्पित होना चाहिए।
इससे पहले राष्ट्रपति ने संत कवि भीमा भोई को उनके जन्म स्थान- रायराखोल जाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके अलावा उन्होंने कंधारा में दिव्य ज्योति व ज्ञान पीठ के साथ-साथ कंकनापाड़ा में संत कवि भीमा भोई के मंदिर और आश्रम का भी दौरा किया।
सोर्स: पत्र सुचना कार्यालय