माननीय झारखण्ड उच्च न्यायालय द्वारा मुकदमा संख्या- W.P.(Cr.) No. 376/2022 में दिनांक 26.06.2024 को पारित आदेश के आलोक में राँची शहर के सिवरेज-डेªनेज निर्माण का डीपीआर तैयार करने के लिए मेनहर्ट परामर्शी की नियुक्ति में हुई अनियमितता, भ्रष्टाचार एवं षडयंत्र की जाँच के लिए प्राथमिकी दायर करने के संबंध में।
रांची : महाशय,उपर्युक्त विषय के आलोक में माननीय झारखण्ड उच्च न्यायालय द्वारा पारित प्रासंगिक आदेश की प्रति संलग्न है (अनुलग्नक-1)। यह आदेश स्वतः स्पष्ट है और इसमें याचिकाकर्ता को पुलिस थाना में प्राथमिकी दर्ज करने का स्पष्ट निर्देश है। माननीय झारखण्ड उच्च न्यायालय के उपर्युक्त आदेश के अनुपालन हेतु भारतीय न्याय संहिता की प्रासंगिक धाराओं के अंतर्गत प्राथमिकी दायर करने का तथ्यपूर्ण आवेदन आपके समक्ष उपस्थापित है। इस संबंध में निम्नांकित बिन्दुओं के आधार पर भारतीय न्याय संहिता के प्रासंगिक प्रावधानों के आलोक में दोषी व्यक्तियों के विरूद्ध विधिसम्मत कार्रवाई करने का अनुरोध है।
1. राँची शहर में सिवरेज-ड्रेनेज निर्मित करने के लिए परामर्शी चयन हेतु निविदा अनावश्यक रूप से विश्व बैंक की QBS (क्वालिटी बेस्ड सिस्टम) पर आमंत्रित की गई। ऐसा एक षडयंत्र के तहत हुआ। कारण कि सिवरेज-ड्रेनेज का निर्माण अत्यंत विशिष्ट श्रेणी की योजना नहीं है। इस सिस्टम में वित्तीय दर में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होती है। केवल उसी निविदादाता का वित्तीय लिफाफा खोला जाता है जो तकनीकी दृष्टि से सर्वोत्कृष्ट पाया जाता है।
2. निविदा मूल्यांकन के दौरान पाया गया कि कोई भी निविदादाता, निविदा की शर्त के अनुसार योग्य नहीं है। मूल्यांकन समिति और नगर विकास विभाग के सचिव ने दिनांक 12.08.2005 को विभागीय मंत्री के समक्ष प्रस्ताव दिया कि निविदा को रद्द कर नई निविदा QCBS (क्वालिटी एण्ड कॉस्ट बेस्ड सिस्टम) पर निकाली जाय। विभागीय मंत्री ने यह प्रस्ताव खारिज कर दिया और आदेश दिया कि दिनांक 17.08.2005 को पूर्वाह्न 10.00 बजे मेरे कार्यालय कक्ष में बैठक कर इसी निविदा के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाय। मंत्री का यह आदेश अनुचित, नियम विरूद्ध था और षडयंत्र के तहत दिया गया था।
3. विभागीय मंत्री के कार्यालय कक्ष में हुई बैठक में उन्होंने निर्देश दिया कि आज ही 4.30 बजे अपराह्न इसी कक्ष में बैठक बुलाकर निविदा के अग्रेतर मूल्यांकन के लिए आवश्यक कार्रवाई करें। विभागीय मंत्री द्वारा निविदा मूल्यांकन समिति को दिया गया यह आदेश अनावश्यक था और निर्णय को प्रभावित करने के लिए अनुचित हस्तक्षेप था, जो षडयंत्र का हिस्सा था।
4. उसी दिन अपराह्न 4.30 बजे हुई बैठक में निर्णय हुआ कि निविदा शर्त में परिवर्तन किया जाय। निविदा खुलने और मूल्यांकन हो जाने के बाद निविदा शर्त में परिवर्तन केन्द्रीय सतर्कता आयोग के निदेश के विरूद्ध और भ्रष्ट आचरण के द्योतक माना जाता है। विभागीय मंत्री ने अपने पद का अनुचित दुरूपयोग किया। ऐसा उन्होंने एक षडयंत्र के तहत मेनहर्ट को नियुक्त करने के लिए किया।
5. परिवर्तित शर्तों पर निविदा का मूल्यांकन आरंभ हुआ तो निविदा में अंकित योग्यता की शर्त पर मेनहर्ट अयोग्य हो गया। निविदा शर्त के मुताबिक वही निविदादाता योग्य माना जायेगा, जिसके विगत तीन वर्षों के वार्षिक टर्नओवर का औसत 40 करोड़ रूपया से अधिक होगा। मेनहर्ट ने केवल दो वर्ष का ही वार्षिक टर्नओवर निविदा के साथ दिया था। इसके केवल दो वर्षों का ही औसत निकालकर इसे योग्य घोषित कर दिया गया। यह घोर पक्षपात और भ्रष्टाचार था। ऐसा निर्णय लेने के लिए मंत्री के दबाव पर मूल्यांकन समिति को मजबूर किया गया। इसके लिए मूल्यांकन समिति के सदस्य दोषी है।
6. निविदा में शर्त थी कि जो निविदादाता योग्यता के शर्त पर सफल नहीं होगा, वह प्रतिस्पर्धा से बाहर माना जाएगा और उसका तकनीकी लिफाफा नहीं खोला जाएगा। परन्तु अयोग्य होने के बाद भी मेनहर्ट का तकनीकी लिफाफा खोला गया और मूल्यांकन में उसे तकनीकी पैमाना पर सर्वोत्कृष्ट घोषित कर दिया गया। निगरानी विभाग के तकनीकी परीक्षण कोषांग के जाँच प्रतिवेदन में यह सिद्ध हो गया है कि तकनीकी मूल्यांकन में किस भांति मेनहर्ट के पक्ष में पक्षपात किया गया और निविदा की तकनीकी शर्तों के साथ फर्जीवाड़ा किया गया।
7. तकनीकी रूप से सर्वोत्कृष्ट घोषित हो जाने के बाद केवल मेनहर्ट का ही वित्तीय लिफाफा खुला। निगरानी विभाग के तकनीकी परीक्षण कोषांग ने अपनी जाँच में साबित कर दिया है कि किस भांति मेनहर्ट का चयन अधिक दर पर अनुचित तरीका से किया गया।
8. मेनहर्ट की नियुक्ति में अनियमितता का मामला झारखण्ड विधान सभा में उठा। इसे लेकर तीन दिन तक (दिनांक 07.03.2006 से 09.03.2006 तक) विधान सभा बाधित रही। विधान सभा में विभागीय मंत्री ने मिथ्या भाषण किया और सदन को गुमराह किया। उन्होंने सदन के सामने अपने भाषण में कहा कि निविदा दो लिफाफों में आमंत्रित की गई थी। एक लिफाफा तकनीकी क्षमता का और दूसरा लिफाफा वित्तीय दर का था। परन्तु निविदा प्रपत्र के मुताबिक निविदा तीन लिफाफों मंे आमंत्रित की गई थी। तकनीकी और वित्तीय के अलावे एक अन्य लिफाफा निविदादाताओं की योग्यता का भी आमंत्रित किया गया था। विभागीय मंत्री ने एक षडयंत्र के तहत विधान सभा को गुमराह किया। कारण कि उन्हें मालूम था कि योग्यता के पैमाने पर मेनहर्ट अयोग्य था।
9. माननीय विधान सभा अध्यक्ष ने मेनहर्ट नियुक्ति प्रकरण की जाँच के लिए विधान सभा की विशेष समिति गठित कर दिया। इस समिति के समक्ष नगर विकास विभाग ने प्रासंगिक दस्तावेज नहीं रखा। नतीजतन समिति ने एक स्तरहीन प्रतिवेदन देकर कतिपय तकनीकी बिन्दुओं की जाँच के आधार पर आगे की कार्रवाई करने की अनुशंसा देकर अपना पिण्ड छुड़ा लिया।
10. विधान सभा की विशेष जाँच समिति की अनुशंसा में अंकित अस्पष्ट तकनीकी बिन्दुओं की जाँच के लिए नगर विकास विभाग के ही एक अन्य अंग ‘आर.आर.डी.ए.’ के मुख्य अभियंता के संयोजकत्व मंे एक तीन सदस्यीय उच्च स्तरीय तकनीकी समिति नगर विकास विभाग ने गठित कर दिया। एक षडयंत्र के तहत इस समिति ने मेनहर्ट की नियुक्ति को सही ठहरा दिया। तकनीकी परीक्षण कोषंाग की जाँच में इस षडयंत्र का पर्दाफाश हो गया।
11. इसके उपरांत विधान सभा की कार्यान्वयन समिति ने मामले की गहन जाँच किया और पाया कि मेनहर्ट की नियुक्ति अवैध है। समिति ने मेनहर्ट को दिये गये कार्यादेश को रद्द करने की अनुशंसा की। विभागीय मंत्री ने कार्यान्वयन समिति की जाँच को प्रभावित और बाधित करने के लिए विधान सभा के माननीय अध्यक्ष को दो पत्र लिखा। एक षडयंत्र के तहत विभागीय मंत्री ने विधान सभा की समिति के निर्णय को प्रभावित करने का प्रयास किया।
12. कार्यान्वयन समिति की अनुशंसाओं की जाँच के लिए तत्कालीन झारखण्ड सरकार ने पाँच अभियंता प्रमुखों की एक जाँच समिति गठित किया। समिति के चार सदस्यों ने एक साथ और पाँचवें ने अलग जाँच प्रतिवेदन दिया। सभी ने माना कि निविदा की शर्तों के तकनीकी आधार पर मेनहर्ट अयोग्य था। एक ने तो यहाँ तक कहा कि निविदा प्रकाशन से निविदा निष्पादन तक की प्रक्रिया में त्रुटि हुई है।
13.2009 में झारखण्ड में राष्ट्रपति शासन लगा तो निगरानी विभाग में इस संबंध में दाखिल एक परिवाद पत्र की जाँच के लिए माननीय राज्यपाल के सलाहकार ने तत्कालीन निगरानी आयुक्त, श्रीमती राजबाला वर्मा को आदेश दिया। इसी परिवाद पत्र के आधार पर जाँच की कार्रवाई करने के लिए निगरानी ब्यूरो के तत्कालीन आरक्षी निरीक्षक, श्री एम.वी. राव ने क्रमशः पाँच पत्र लिखकर निगरानी आयुक्त, श्रीमती राजबाला वर्मा से अनुरोध किया कि परिवाद पत्र की जाँच करने की अनुमति एवं मार्गदर्शन दिया जाय। परन्तु निगरानी ब्यूरो को जाँच के लिए अनुमति नहीं मिली।
14. निगरानी आयुक्त राजबाला वर्मा ने निगरानी ब्यूरो की जगह निगरानी विभाग के तकनीकी परीक्षण कोषांग को जाँच का आदेश दिया। कोषांग ने गहन जाँच किया। मेनहर्ट की नियुक्ति में हर स्तर पर पक्षपात साबित कर दिया और कहा कि मेनहर्ट अयोग्य था।
15. निगरानी आयुक्त श्रीमती वर्मा ने तकनीकी परीक्षण कोषांग का जाँच प्रतिवेदन महीनों दबाये रखा। बाद में उन्होंने इसे निगरानी ब्यूरों के समक्ष कार्रवाई हेतु भेजने के लिए नगर विकास विभाग को भेज दिया। श्रीमती राजबाला वर्मा ने मेनहर्ट नियुक्त करने के षडयंत्र में सक्रिय भूमिका निभाया और एक लोक सेवक के आचरण के विरूद्ध काम किया।
16. इस बीच मामला झारखण्ड उच्च न्यायालय में गया। माननीय न्यायालय का आदेश निम्नवत है:-
‘The petitioner may approach the Director General (Vigilance) and in case substance is found in his allegation, appropriate steps in accordance with law may be taken.’
With his observation, this petition is disposed of.
परन्तु इस पर कोई कार्रवाई निगरानी आयुक्त से अनुमति नहीं मिलने के कारण नहीं हो पाई।
उपर्युक्त विवरण के आलोक में स्पष्ट है कि विभागीय मंत्री, निगरानी आयुक्त, श्रीमती राजबाला वर्मा और नगर विकास विभाग द्वारा गठित मूल्यांकन समिति के सदस्यों तथा विधान सभा की विशेष जाँच समिति की अनुशंसा के आलोक में गठित उच्च स्तरीय तकनीकी समिति के सदस्यगण मेनहर्ट को अनियमित, अनुचित और अवैध रूप से नियुक्त करने का षडयंत्र किया। श्रीमती राजबाला वर्मा ने निगरानी ब्यूरो को जाँच नहीं करने दिया और तकनीकी परीक्षण कोषंाग की जाँच के आधार पर कार्रवाई नहीं होने दी।
17. कार्यान्वयन समिति ने अपनी अनुशंसा में कहा है कि कतिपय ऐसे बिन्दु है, जिनकी जाँच समिति की परिधि से बाहर है। इसकी जाँच किसी सक्षम प्राधिकार से कराई जाय। उल्लेखनीय है कि मेनहर्ट ने निविदा के साथ जो अनुभव प्रमाण पत्र संलग्न किया था, वह गलत था। अनुभव प्रमाण पत्र ‘बिंटान रिसोर्ट’ के जिस लेटर पैड पर 2005 में दिया गया था, उसके बारे में बिंटान रिसोर्ट मैनेजमेंट का कहना है कि उन्होंने इस लेटर पैड का उपयोग वर्ष 2000 से बंद कर दिया है और जारी करने वाले के रूप में जिस व्यक्ति का नाम और हस्ताक्षर है, वह व्यक्ति कभी भी बिंटान रिसोर्ट मैनेजमेंट का अधिकारी नहीं रहा है। इससे स्पष्ट है कि जिस अनुभव प्रमाण पत्र का उपयोग मेनहर्ट की उपयोगिता निर्धारित करने में हुआ वह पत्र फर्जी है। चूंकि बिंटान रिसोर्ट विदेश में है और मेनहर्ट का मुख्यालय भी सिंगापुर में है, इसलिए इसकी जाँच करने में कार्यान्वयन समिति सक्षम नहीं थी। इसलिए समिति ने इसकी जाँच सक्षम संस्था से कराने के लिए कहा।
18. अवैध रूप से नियुक्त किये जाने के बाद कार्य करने के लिए झारखण्ड सरकार, राँची नगर निगम और मेनहर्ट के बीच जो समझौता हुआ, वह समझौता भी त्रुटिपूर्ण था, जिसके कारण मेनहर्ट पूरा भुगतान लेकर और काम अधूरा छोड़ कर निकल गया। अब वर्तमान राज्य सरकार को राँची के सिवरेज-डेªनेज निर्माण के लिए नये सिरे से परामर्शी बहाल करने हेतु नई निविदा निकालनी पड़ी है। ऐसा करना मेनहर्ट को षडयंत्र के तहत अनियमित रूप से बहाल करने वालों की बदनीयत और भ्रष्ट आचरण का प्रतिफल है। जाँच से यह भी पता चलेगा कि इसके कारण सरकारी खजाना पर कितना बोझ पड़ा है, राजकोष से कितना निष्फल व्यय हुआ है और परियोजना की लागत कितनी बढ़ी है।
19. विधानसभा में मेरे प्रश्न के उत्तर में दिनांक 23.02.2020 को सरकार ने स्वीकार किया कि इस बारे में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा पीई दर्ज की गई है। प्रश्नोत्तर की प्रति संलग्न है (अनुलग्नक-2)। प्राथमिकी दायर करने के उपरांत अनुसंधान के दौरान भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से पीई जाँच प्रतिवेदन मंगाकर दोषियों को चिन्हित किया जा सकता है और इनके विरूद्ध विधिसम्मत कार्रवाई की जा सकती है।
अनुरोध है कि उपर्युक्त विवरण के आलोक में आपके समक्ष दायर की जा रही प्राथमिकी की गहन जाँच करें, ताकि झारखण्ड उच्च न्यायालय के निर्देश का पालन हो सके और दोषी षडयंत्रकारियों को बेनकाब किया जा सके तथा अपने निहित स्वार्थी आचरण से राज्यहित और जनहित पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वालों को दंडित किया जा सके। प्राथमिकी प्रपत्र की उपर्युक्त कंडिकाओं में जिन दस्तावेजों का उल्लेख, उन्हें अनुसंधान के दौरान मैं अनुसंधान पदाधिकारियों को सौंपने के लिए वचनबद्ध हूँ।
सधन्यवाद,
अनु.- 1. माननीय झारखण्ड उच्च न्यायालय का दिनांक 26.07.2024 को पारित न्यायादेश की प्रति।
2. झारखण्ड विधान सभा में मेरे द्वारा पूछे गये अतारांकित प्रश्नोत्तर (23.12.2020) की छायाप्रति।