जमशेदपुर | झारखण्ड
“अचीवर्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्निकल एक्सीलेंस”, जवाहर नगर, मानगो, जमशेदपुर ने अपने सभागार में एक शानदार शाम-ए- मुशायरा का आयोजन किया, जिसकी अध्यक्षता शहर के जाने-माने साहित्यकार एवं शायद अहमद बद्र ने की। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ हसन इमाम मलिक (स्पोर्ट्स मैनेजर टाटा स्टील, जमशेदपुर) तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में शायर गौहर अजीज शामिल हुए और शहर के जाने-माने आमंत्रित शायरों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। जिनसे इंस्टिट्यूट के विद्यार्थी तथा समाज से आए हुए साहित्य प्रेमियों ने भरपूर आनंद उठाया। संस्था के संस्थापक इकरामुल गनी ने आमंत्रित अतिथियों का स्वागत किया और अपनी संस्था की तरफ से स्मृति चिन्ह प्रदान कर उनका सम्मान किया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ मलिक ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जो लोग सकारात्मक सोच के साथ समाज की सेवा करते हैं उन्हें समाज और देश अपनी पलकों पर बिठाते हैं। मनुष्य का व्यक्तित्व ऐसा होना चाहिए जिसको देखकर दूसरे प्रसन्न हो जाएँ। लेकिन इस संदर्भ में यह बात काफी महत्व रखती है कि समाज से पहले मां-बाप को प्रसन्न होना चाहिए।
सभा के अध्यक्ष प्रो अहमद बद्र ने अपने संबोधन में भाषा और साहित्य के महत्व को विषय बनते हुए कहा की आदमी के अंदर चाहे जितनी भी क्षमता या योग्यता हो उसे साबित करने या प्रभावशाली ढंग से क्रियान्वित करने में भाषा की आवश्यकता होती है। भाषा के बगैर कोई भी क्षमता प्रतिभा नहीं बन सकती। अतः हमें चाहिए कि अपनी मातृभाषा और अपनी कार्यभाषा पर विशेष ध्यान दें।
विशिष्ट अतिथि गौहर अजीज ने इकरामुल गनी तथा उनकी संस्था को इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए बधाई दी और मुशायरा में शामिल सभी शेयरों की सराहना की।
मुशायरा की शुरुआत तिलावत कुरान से हुई। मुशायरा में जिन शेयरों ने अपने कलाम पेश किए उनमें प्रो अहमद बद्र, गौहर अजीज, असर भागलपुरी, मुस्ताक अहजन, रिजवान औरंगाबादी, हातिम नवाज, अजय महताब, सद्दाम गनी, फरहान खान फरहान सफीउल्लाह सफी, सरफराज शाद, शोएब अख्तर तथा सफदर हारून ने अपनी गजलों और नज़मों से महफिल को साहित्यमय बनाया। मुशायरा का संचालन फरहान खान फरहान ने और धन्यवाद ज्ञापन संस्था के संस्थापक इकरामुल हसन ने किया। इस मुशायरा में पढ़ी जाने वाली गजलों के कुछ शेर इस प्रकार हैं:-
है पतझड़ का मौसम हैं वीराँ शजर
अयादत करो चल के शाखों की अब …… सफदर हारून
हम चाहते हैं ये कि मिटें बदगुमानियां
देखें जरा उतार के सर से खुमार को ……. सद्दाम गनी
है कितना जोश कतरे में ये देखो
जो दरिया की रवानी लिख रहा है …… सफीउल्लाह सफी
हम तो वो हैं कि जिन्हें मौत का खदशा भी नहीं
अपने मकतल में भी बेखौफो खतर जाते हैं ……. शोएब अख्तर
दोस्ती दोस्तों की कहां ढूंढिए
दुश्मनी भाई-भाई में भरपूर है …… सरफराज शाद
मैं सब कुछ भूल जाना चाहता हूं
गले तुझको लगाना चाहता हूं …….फरहान खान फरहान
गुंचा न गुलो बर्ग न बुलबुल तो चमन क्या
होंगे न अगर चांद सितारे तो गगन क्या …… गौहर अजीज
जिंदगी का खेल भी क्या खेल है
आंख झपकी, उम्र का हासिल गया ……अहमद बद्र