1 जून 2021 को देश के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में 12वीं की बोर्ड परीक्षा को रद्द करने का निर्णय लिया गया है। इस निर्णय पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए AIDSO के महासचिव श्री सौरव घोष ने आज दिनांक 7 जून 2021 को बयान जारी करते हुए निम्नलिखित बातों पर कहाः
भाजपा नीत केंद्र सरकार सहित विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा शुरुआत से ही कोविड-19 की रोकथाम के लिए समय पर आवश्यक कदम ना उठाने और इसे फैलने से रोकने में पूरी तरफ विफल होने के कारण यह असाधारण स्थिति उत्पन्न हुई जिसने देश की जनता के जनजीवन के हर पहलू को झकझोर दिया है। इस लापरवाही के चलते महामारी की शुरुआत से ही शैक्षणिक संस्थानों में पूरी तरह से अराजक स्थिति पैदा हो गई है।
ए.आई.डी.एस.ओ. शुरूआत से ही मांग करता रहा है कि इस असाधारण स्थिति में लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन करते हुए, विभिन्न राज्य बोर्डों, छात्र-शिक्षक प्रतिनिधियों, शिक्षाविदों, चिकित्सकों व विषाणुविज्ञानियों के साथ गहन चर्चा करते हुए शिक्षण, परीक्षाओं, मूल्यांकन और अकादमिक कैलेंडर के पुनर्निर्धारण पर निर्णय लेना चाहिए। लेकिन सरकार ने इस मांग की पूरी तरह से अनदेखी की और एकतरफा फैसले लेती रही।
महामारी की इस दूसरी लहर के दौरान, जबकि सरकार के पास परीक्षाओं के संचालन और मूल्यांकन के विषय पर लोकतांत्रिक ढंग से चर्चा करने का और एक वैज्ञानिक मूल्यांकन पद्धति विकसित करने का पर्याप्त समय था, लेकिन सरकार की आपराधिक लापरवाही के कारण स्थिति बदतर होती गई और आज जब जान की सुरक्षा सबसे बड़ी चिंता बन गई है तो स्वाभाविक तौर पर छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों के पास और कोई विकल्प नहीं बचा सिवाय इसके कि वे मांग करें कि इस महामारी के दौरान कोई परीक्षा नहीं हो सकती। क्योंकि कई राज्यों से यह मांग उठी, केंद्र सरकार ने अपना चेहरा बचाने के लिए जल्दबाजी में 12वीं के बोर्ड परीक्षा को रद्द करने के इस फैसले की घोषणा की, लेकिन यह फैसला भी एकतरफा और अलोकतांत्रिक तरीके से लिया गया।
क्योंकि केंद्र सरकार ने यह निर्णय लेने से पहले मूल्यांकन का कोई वैकल्पिक तरीका प्रदान नहीं किया है इसलिए छात्रों में एक और तरह की चिंता पैदा हो गई। वे उच्च पाठ्यक्रमों में दाख़िले के मुद्दे को लेकर परेशान हैं क्योंकि विभिन्न प्रकार की प्रवेश परीक्षाओं और उच्च शिक्षण संस्थानो में दाखिले के लिए अन्य प्रकार की प्रवेश प्रक्रिया पर भी कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं दिए गए हैं।
चूंकि विभिन्न राज्यों की स्थिति एक जैसी नहीं है, यह बहुत जरूरी था कि परीक्षाओं और मूल्यांकन के मुद्दे पर लोकतांत्रिक तरीके से परामर्श करते हुए सभी छात्रें के लिए समान, गैर-भेदभावपूर्ण, वैज्ञानिक और पारदर्शी समाधान सुनिश्चित किया जाता। समाधान में यह सुनिश्चित किया जाता कि कोविड-प्रोटोकॉल का अनुपालन हो और सभी छात्र जिनको दुनियाभर में चिकित्सकों द्वारा टीकाकरण की श्रेणी में रखा गया है के साथ ही शिक्षकों और तमाम स्टाफ का टीकाकरण हो। हम समझते हैं कि, इतने विशाल देश में जहां विभिन्न राज्यों में परिस्थितियां भिन्न-भिन्न हैं केवल इसी तरह से छात्रें और अभिभावकों की चिंता को दूर किया जा सकता था। लेकिन यह नहीं हुआ।
हालांकि, हम इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि इस समय अधिकांश राज्यों में, क्योंकि स्थिति नियंत्रण से बाहर है, महामारी के दौरान कोई परीक्षा आयोजित नहीं की जा सकती है और इसलिए हम मांग करते हैं किः
1) छात्रों और अभिभावकों की चिंता को समाप्त करने के लिए तत्काल विभिन्न राज्य बोर्डों, छात्र और शिक्षक संगठनों, उनके संघों, अभिभावक संघों, चिकित्सकों व विषाणुविज्ञानियों के साथ चर्चा करते हुए वैज्ञानिक और पारदर्शी मूल्यांकन का एक वैकल्पिक तरीका तैयार किया जाए जो सभी छात्रों के लिए समान और भेदभाव रहित हो।
2) विद्यार्थियों का युद्धस्तर पर निःशुल्क टीकाकरण शुरू करें और स्कूल कॉलेजों के पुनः खुलने से पहले सभी छात्र जिनको दुनियाभर में चिकित्सकों द्वारा टीकाकरण की श्रेणी में रखा गया है के साथ ही शिक्षकों और तमाम स्टाफ का टीकाकरण सुनिश्चित करें।
3) महामारी के चलते आम जनता के सामने आ रहे आर्थिक संकट को ध्यान में रखते हुए इस शैक्षणिक वर्ष के लिए सभी छात्रें की फीस माफ की जाए।
हम छात्रों सहित शिक्षकों, शिक्षाविदों व तमाम शिक्षाप्रेमी जनता से अपील करते हैं कि भाजपा नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार द्वारा फैसले लेने के इस एकतरफा तथा अलोकतांत्रिक तरीके का पुरजोर विरोध करने के लिए आगे आएं।
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