इस दिन झामुमो समेत विभिन्न दलों के नेताओं ने श्रद्धांजलि देते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।
आपको याद दिला दें कि वर्ष 2007 को आज ही के दिन जहां सारी दुनियां होली के रंगों में डुबकर खुशियां मना रहीं थी वहीं इस अमर बलिदानी ने खून की होली खेली थी। निडर, साहसी और न्यायप्रिय व्यक्तित्व वाले सुनील महतो सदा के लिए अमर बलिदानी होकर अपने प्रियजनों को रुला गए।
15 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन आज भी ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात हो। ऐसे जीवंत चरित्र वाले इंसान विरले ही होते हैं। खुद के लिए कभी इन्होंने जीना सीखा ही नहीं, जब भी घर से निकलें दूसरों की सहायता करते हुए दुआएं लेकर घर वापस लौट आएं। लेकिन 4 मार्च 2007 से लेकर आज तक उनके जीवंत होने की परिकल्पना में जीते हुए उनकी जीवन संगिनी पूर्व सांसद सुमन महतो जी के मुख से आज बस यही शब्द निकल पड़ें की अब न्याय की उम्मीद मैंने छोड़ दी है।
सबके दिलों पर राज करने वाले इस अमर बलिदानी का न्याय आखिर अन्याय के पद चिन्हों तले क्यों दब कर रह गया?
समय का चक्र बढ़ता रहेगा। ये घड़ियां आती और जाती रहेंगी लेकिन सबके मन में एक सवाल जरूर उठेगा, जब एक सांसद को न्यायपालिका न्याय न दिला सके तब साधारण लोगों को क्या उम्मीद का दिया जलाए रखना चाहिए?