लड़कियों का स्कूल जाना अब आरम्भ हो चुका है, और यही एक ख्वाब लिए मलाला ने स्कूल को अंतिम बार देखा था।
वर्ल्ड फेमस VOGUE मैगजीन ने सबसे कम उम्र की नोबल प्राइस विजेता मलाला यूसुफजई को वर्ष 2021 के जुलाई माह के लिए अपनी पत्रिका के फ्रंट कवर पेज पर जगह दी है।
महिलाओं के लिए बनी यह पत्रिका ब्यूटी, फैशन, लाइफस्टाइल के लिए जाना जाता है। साथ ही महिलाओं के मनोरंजन सामग्री के लिए वन-स्टॉप डेस्टिनेशन है। महिलाएं यहां से फ़ैशन और ब्यूटी टिप्स से संबंधित जानकारियां प्राप्त करती हैं।
आपको बता दें कि VOGUE मैगजीन ने मलाला यूसुफजई को वर्ष 2021 के जुलाई माह के लिए अपनी पत्रिका के फ्रंट कवर पेज पर जगह दी है। जिसमें उसने दुनियां को यह दिखाने की कोशिश कि है की औरत कभी कमजोर नहीं होती। जिस दिन उसने ठान लिया वह पूरी दुनियां बदल कर रख सकती है।
“मैं उस शक्ति को जानती हूं जो एक युवा लड़की के दिल में होती है, जब उसके पास एक विजन और एक मिशन होता है और मुझे आशा है कि हर लड़की जो इस कवर को देखेगी वह जान जाएगी कि वह कर सकती है।”
– मलाला
( I know the power that a young girl carries in her heart when she has a vision and a mission – and I hope that every girl who sees this cover will know that she can.
-MALALA )
इस महिला में वह साहस है जिसने आतंक भरे माहौल से निकलकर महिलाओं को जीने का मार्ग बताया। आइये हम भी इन्हें सम्मान देते हुए इनके बारे में कुछ जानते हैं।
मलाला यूसुफजई
12 जुलाई 1997 को इनका जन्म पाकिस्तान में हुआ। पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रान्त के स्वात जिले में स्थित मिंगोरा शहर की एक छात्रा है। 13 साल की उम्र में ही वह तहरीक-ए-तालिबान शासन के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने लगी। जिस कारण अक्टूबर 2012 में, उस समय इनकी आयु मात्र 14 वर्ष थी तालिबानी आतंकवादियों के हमले का शिकार बनी, और बुरी तरह से घायल हो गई।
मिंगोरा पर तालिबान ने वर्ष 2009 में मार्च से मई तक कब्जा कर रखा था, इस दौरान 11 वर्ष की मलाला ने फेक नाम “गुल मकई” रखकर बीबीसी ऊर्दू के लिए डायरी लिखना आरम्भ किया जिससे मलाला पहली बार दुनिया की नज़र में आई। इस डायरी के द्वारा उसने तालिबान के हिंसक कुकृत्यों का वर्णन किया। स्कूल के आखरी दिन के बारे में मलाला ने अपनी डायरी में लिखा था, ‘आज स्कूल का आखिरी दिन था इसलिए हमने मैदान पर कुछ ज्यादा देर खेलने का फ़ैसला किया। मेरा मानना है कि एक दिन स्कूल खुलेगा लेकिन जाते समय मैंने स्कूल की इमारत को इस तरह देखा जैसे मैं यहां फिर कभी नहीं आऊंगी।’
तालिबान के कुकृत्यों के बारे में जब से लिखना शुरू किया तब से उसे कई बार आतंकवादियों से धमकियां भी मिलीं। तालिबान के कट्टर फरमानों से जुड़ी दर्दनाक दास्तानों को कलमबद्ध कर उनकी करतूतों को दुनियां के सामने लाया। तालिबान के फरमानों में लड़कियों को स्कूल जाने, टीवी देखने यहां तक कि घर से बाहर जाने की भी सख्त मनाही थी।
वर्ष 2009 में न्यूयार्क टाइम्स ने मलाला पर एक शार्ट फिल्म बनाई। जिस दौरान कैमरे के सामने ही वह रोने लगी। मलाला हमेशा से डॉक्टर बनने का सपना देखा करती थी। जिसे तालिबानियों ने ख़त्म कर दिया। उस दौरान आतंकवादियों ने वहां दो सौ लड़कियों के स्कूलों को ढहा दिया था।
इस तरह आतंकवादी समाज में लड़कियों – महिलाओं की दुर्दशा को उजागर करते हुए मलाला कब दुनियां की नजरों में एक चमकता सितारा बन गई इन्हें खुद भी पता न चला।
विश्व के कई अवार्ड से इन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है।
वर्ष 2011 में पाकिस्तान से राष्ट्रीय युवा शांति पुरस्कार। किड्स राइट्स फाउंडेशन ने युसुफजई को अंतर्राष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार के लिए प्रत्याशियों में इसी वर्ष शामिल किया। सयुंक्त राष्ट्र में नोबल शांति पुरस्कार के प्रतियोगी के तौर पर भाषण दे चुकी हैं।
वर्ष 2013 में अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार मिला जिसकी घोषणा नीदरलैंड के किड्स राइट्स संगठन ने की। 2013 में ही यूरोसंसद द्वारा वैचारिक स्वतन्त्रता के लिए साख़ारफ़ पुरस्कार मिला।
मैकिसको में भेदभाव निरोधक राष्ट्रीय परिषद की ओर से इक्वेलिटी एंड नान डिस्क्रिमीनेशन का अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया। संयुक्त राष्ट्र ने 2013 का मानवाधिकार सम्मान (ह्यूमन राइट अवॉर्ड) भी इनके नाम कर दिया।
10 दिसंबर 2014 को भारतीय समाजसेवी कैलाश सत्यार्थी के साथ संयुक्त रूप से उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाली मलाला दुनिया की सबसे कम उम्र वाली नोबेल विजेती बन गयी। उस समय इनकी उम्र महज 17 वर्ष ही थी।
आतंकवादी समाज में महिलाओं के उत्पीड़न को दुनियां के सामने लाना और उसका विरोध करना मलाला के लिए यह कोई सरल कार्य नहीं था। खासकर उसी समाज में रहते हुए उनसे यह लड़ाई लड़ना। इस कार्य से मलाला आतंकवादियों की हिट लिस्ट में आ चुकी थी। लेकिन समाज को बदलने का ऐसा बवंडर इनके अंदर उठा कि आतंकवादियों के पसीने छूट गए। उस समाज में महिलाओं को उनकी आजादी दिलाई। लड़कियों का स्कूल जाना अब आरम्भ हो चुका है, और यही एक ख्वाब लिए मलाला ने स्कूल को अंतिम बार देखा था।
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