सिख धर्म के संस्थापक नानक देव जी बचपन से ही अपने वाणी और सद्ज्ञान से लोगों को प्रभावित कर देते थे। उनके बाल अवस्था की एक अनोखी बात बताते हैं।
सनातन धर्म के अनुसार बाल्यकाल में नानक जी का यज्ञोपवीत (जनेऊ धारण) संस्कार कराया जाना था। जिसे लेकर पिता कल्याण राय ने अपने संबंधियों एवं परिचितों को निमंत्रित किया।
यज्ञोपवीत संस्कार के दिन बालक नानक को आसन पर बिठाया गया। यज्ञोपवीत संस्कार का कार्यक्रम आरम्भ करते हुए पुरोहितों ने उन्हें कुछ मंत्र दुहराने के लिए कहा। जिज्ञासावश इसबात पर बालक नानक ने इसका प्रयोजन पूछा।
आये पुरोहितों में से एक ने उन्हें समझाते हुए कहा – “धर्म की रक्षा, परंपरा और मर्यादा के अनुसार यह पवित्र धागा प्रत्येक मनुष्य को इस संस्कार के द्वारा धारण करना चाहिए। इसलिए तुम्हें भी इस धर्म में दीक्षित कराया जा रहा है।”
यह सुन बाल नानक ने कहा – “मगर यह तो एक धागा है, क्या यह गंदा नहीं होगा?
इस पर पुरोहित ने जवाब दिया – “हां, लेकिन यह साफ भी तो होगा।”
बाल नानक ने दुबारा कहा – “यह धागा टूट भी सकता है।”
यह सुन पुरोहित ने कहा – “हां बिल्कुल, पर टूटने पर नया भी तो धारण किया जा सकता है।”
इसबार नानक थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोले – “अच्छा, मृत्यु के उपरांत यह भी तो शरीर के साथ जलता ही होगा। यदि, इसे धारण करने से भी मन, आत्मा, शरीर तथा स्वयं यज्ञोपवीत में पवित्रता नहीं रहती तो इसे धारण करने से क्या लाभ?
यह सुन उपस्थित पुरोहितों और अन्य लोगों को कोई उत्तर न सुझा। वे सब एकदूसरे का मुंह देखने लगे।
इस पर बाल नानक ने कहा – “यदि यज्ञोपवीत संस्कार के द्वारा धागा ही पहनना है तो ऐसा धागा पहनों कि जो न टूटे, ना गंदा हो और ना ही बदला जा सके। वह ईश्वरीय हो, उसमें दया का कपास हो और संतोष का सूत। वैसा धागा पहनना ही सच्चा यज्ञोपवीत संस्कार है पुरोहित जी। क्या, आपके पास ऐसा यज्ञोपवीत धागा है?”
बालक की बातें सुनकर सब अवाक रह गए। किसी को कोई उत्तर न देते बना। और सब ने यह मान लिया कि बाल नानक की वाणी किसी दिव्य ज्योति की है।
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