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भारतीय संघ में कोल्हान के विलय का कोई मजबूत दस्तावेज है ही नहीं। तो क्या वाकई में भारत में आज भी जिंदा है कोल्हान देश? आइये जानते हैं इसकी सच्चाई।

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कोल्हान देश : सोमवार 24  जनवरी 2022

कोल्हान देश बनाने की मांग और नियुक्ति पत्र बांटने को लेकर मुफस्सिल थाना अंतर्गत सदर प्रखंड लादुराबासा गांव के निवासियों के साथ पुलिस की हिंसक झड़प रविवार 23 जनवरी को हुई थी। इस मामले में कुल 17 लोग गिरफ्तार किये जा चुके हैं।

जिसे देखते हुए आज पुलिस ने मुफस्सिल थाना अंतर्गत सदर प्रखंड लादुराबासा गांव में पूरे दल बल के साथ फ्लैगमार्च किया। और हमले में शामिल लोगों को गिरफ्तार किया गया। वहीं आज दिनभर पुलिस बल स्थानीय इलाकों में तैनात रह कर सक्रिय रही।

बता दें कि कोल्हान देश के लिए फर्जी तरीके से शिक्षकों व पुलिस की बहाली की जा रही थी। जिसकी गुप्त सूचना पुलिस को दी गई। सूचना मिलते ही पुलिस हरकत में आई और मौके पर पहुंच कर संलिप्त चार अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया था। जिस कारण कोल्हान देश के समर्थक पुलिस से उलझ गये।

क्या है कोल्हान देश का इतिहास? क्या वाकई में हम सभी अंजान हैं कोल्हान देश से?

झारखंड राज्य के पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां जिले का हिस्सा कोल्हान कहलाता था।

आजादी कब और कैसे मिली आज भी देश के कई लोग नहीं जानते। अंग्रेजों से सत्ता भारतीय गणतंत्र को मिला इससे भी अंजान हैं। और जो लड़ाई की बिगुल 1857 में बजी थी वह आजतक इनके मन में शांत नहीं हुई। इसी क्रम में कोल्हान देश के समर्थकों का मानना है कि कोल्हान देश आरम्भ से स्वतंत्र रहा है। और जब उन्हें यह समझ आया कि कोल्हान भारत देश के अंतर्गत आनेवाला क्षेत्र है तो उन्होंने भारत से अलग देश की मांग कर दी। आपको जानकर हैरानी होगी कि पहली बार कोल्हान देश की स्वतंत्रता के लिए हजारों की संख्या में हो आदिवासी (लकड़ा-कोल) 30 मार्च 1980 में चाईबासा बाजार के मंगला हाट में पहुंच कर आंदोलन की थी। और यही से कहानी शुरू होती है – कोल्हान देश की।
इस भीड़ का नेतृत्व कोल्हान रक्षा संघ के नेता नारायण जोनको, क्राइस्ट आनंद टोपनो और कृष्ण चंद्र हेम्ब्रम (केसी हेम्ब्रम) कर रहे थे। इनका मानना था कि कोल्हान इलाके पर भारत का कोई अधिकार नहीं बनता है। साल 1837 ईस्वी के विल्किंसन रूल का हवाला देते हुए उन्होंने यह बात कही।

क्या है विल्किंसन रूल?

बात कोल विद्रोह के समय की है। साल 1837 में आदिवासियों को सहयोग करते हुए ब्रिटिश शासनकाल में सर थामस विल्किंसन ने  ‘कोल्हान सेपरेट एस्टेट’ की घोषणा कर दी थी और चाईबासा को इस स्टेट का मुख्यालय बनाया था। उन्होंने भोली भाली आदिवासी जनता को लुभाते हुए वहां आदिवासी नियम ही लागू कर दिए। और पहले से चली आ रही मुंडा-मानकी स्वशासन की व्यवस्था लागू कर दी। इस व्यवस्था को ही ‘विल्किंसन रुल’ कहा जाता है। अब इस नियम के आते ही स्थानीय मामले मुंडा-मानकी जाती को दे दिए गए। सिविल मामलों के निष्पादन का अधिकार मुंडा जाती को और आपराधिक मामलों के निष्पादन का कार्य मानकी जाती को दिया गया।

अंग्रजों के समय से आरम्भ हुआ कोल विद्रोह आज भी है जारी।

अंग्रेजी सरकार के अत्याचार के खिलाफ साल 1831 ईसवी में कोल जनजाति द्वारा किया गया विद्रोह कोल विद्रोह कहलाता है। यह विद्रोह अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ बदला लेने के नियत से किया गया था। आपको बता दें कि छोटा नागपुर के पठार इलाकों में कोल आदिवासी सदियों से शांतिपूर्वक रहते आए थे। वे जंगलों की सफाई कर बंजर जमीन को खेती लायक बनाकर उस पर खेती करते थे। उनकी जीविका का मुख्य आधार खेती और जंगल था। इसलिए वे जंगल और जमीन पर अपना नैसर्गिक अधिकार मानते थे। अंग्रेजी हुकूमत के वक्त अंग्रजों के बढ़ते प्रभाव और अत्याचार को खत्म करने के लिए कोल जनजाति ने आंदोलन तेज कर दिया। कोल विद्रोह को दबाने के लिए सर थामस विल्किंसन आये और सैन्य बल के द्वारा कोल्हान के 620 गांवों के मुखिया (मुंडा) को ब्रिटिश सेना के समक्ष आत्मसमर्पण करने को मजबूर कर दिया। 

भारतीय संघ में कोल्हान के विलय का कोई मजबूत दस्तावेज है ही नहीं।

मुगल काल में कोल्हान पोड़ाहाट के राजा की रियासत थी। और ब्रिटिश काल में सर थामस विल्किंसन ने  ‘कोल्हान सेपरेट एस्टेट’ की घोषणा कर दी थी। अब कोल्हान एस्टेट बनने के बाद यहां के सारे अधिकार मुंडा (प्रधान) के हाथों में आ गए। मुंडा इस इस्टेट का प्रमुख था। आजादी के समय  ‘कोल्हान सेपरेट एस्टेट’ स्वतंत्र था। भारतीय संघ में विलय की जब बात आई तो इसका कोई मजबूत दस्तावेज ही नहीं बना। इस कारण भारत की आजादी के बाद भी यहां विल्किंसन रूल प्रभावी बना रहा जो आज भी जारी है।

 

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